टीवी और अखबार या उन्हें पोसने वाले अकसर इस तरह के जुगाड़ भिड़ाते रहते हैं। कुछ ऐसे ही उदबुदे प्रयत्न करके खुद और खुद न सही तो अपने किये की चर्चा करवा के सन्तोष का अनुभव कर लेते हैं। पिछले कुछ वर्षों में, खासकर अंकों के ऐसे संयोगों के अपने अर्थ निकालने का चलन सा हो गया है। अब जब कुल जमा 1 से 9 और जीरो मिला कर यही 10 अंक हैं और कायनात इतनी बड़ी तो ऐसे सैकड़ों संयोग बनते रहेंगे और उनके अपने-अपने मतलब भी लोग निकालते रहेंगे। शायद इसी तरह की बातों को मनीषी डॉ. छगन मोहता ने ‘पानी मथना’ कहा है। यानी पानी को मथोगे तो कोरे झाग बनेंगे वो भी कुछ क्षणों के लिए!
--दीपचंद सांखला
11 नवंबर, 2011
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