Thursday, October 25, 2018

बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल : बाहैसियत प्रवक्ता न्यायालय (2 नवंबर, 2011)

बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल के बैनर से आज के अखबारों में एक सार्वजनिक सूचना विज्ञापन के रूप में प्रकाशित हुई है। यह विज्ञापन बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल के सदस्यों को और सर्वसाधारण को संबोधित है।
इस विज्ञापन पर बात करें, इससे पहले पाठकों की जानकारी के लिए इस संगठन की संक्षिप्त पृष्ठभूमि बताना जरूरी है। यह मंडल पिछले साठ से भी ज्यादा वर्षों से अपने को बीकानेर के व्यापारियों और उद्योगपतियों का प्रतिनिधि संगठन बताने का दावा करता रहा है और ऐसा ही माना जाता रहा है। क्योंकि अधिकांश व्यापारिक संगठन और 250 से ज्यादा व्यापारिक प्रतिष्ठान इसके सदस्य हैं। संगठन के इस रूप की बदौलत ही शासन-प्रशासन ने भी इस व्यापार उद्योग मंडल को अघोषित मान्यता दे रखी है।
शुरुआती कई दशकों तक इस संगठन के आर्थिक हालात ठीक नहीं थे। औपचारिक सहयोग छोड़ दें तो कोई व्यापारी समय देने को ही उत्साहित नहीं था। इसीलिए लंबे समय तक सोमदत्त श्रीमाली ही अध्यक्ष बने रहे। जैसी कि लोक में कैबत है कि झगड़े की जड़ अधिकांशत जर, जोरू और जमीन ही होती है। इस संगठन में भी झोड़ के दो कारण उल्लेखित  कारणों में से रहे हो सकते हैं।
यूआईटी ने जमीन दे दी तो जैसे-तैसे भवन बन गया। जमीन की लोकेशन आबाद हुई तो एक बैंक और अन्य किरायेदार के रूप में आ गये। मंडल के आर्थिक हालात ठीक हुए तो ऐसे लोग जो संपन्न थे या जो बहुत संपन्न नहीं भी थे, उन्हें भी इसके माध्यम से अपनी छोटी-मोटी राजनीतिक-प्रशासनिक महत्वाकांक्षाएं पूरी होती दीखने लगी। अहम् और स्वार्थ टकराने लगे, मंडल के उद्देश्य गौण हो गये। बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल की वर्तमान अराजक स्थिति के कमोबेश यही कारण हैं।
आज जो अखबारों में सूचना साया हुई है, उसे पढ़ने से तो लगता है यह व्यापार उद्योग मंडल के एक समूह और न्यायालय की ओर से संयुक्त रूप से जारी सार्वजनिक सूचना है। आप भी पढ़े :
‘.......कोई भी व्यक्ति अपने आपको गलत तौर पर पदाधिकारी बताते हुए चुनाव की कार्यवाही या गतिविधि करता है तो यह न्यायालय आदेश की अवमानना की श्रेणी में आयेगा। उसके लिए बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल के अध्यक्ष एवं सचिव किसी भी तरह से दायित्वाधीन नहीं हैं। अतः सार्वजनिक तौर पर सूचित किया जाता है कि कोई भी व्यापार उद्योग मंडल का सदस्य अथवा पदाधिकारी ऐसी कोई गतिविधि नहीं करें जिससे कि मंडल की छवि खराब हो तथा न्यायालय के आदेश की अवमानना होती हो।’
अब यह तो माननीय न्यायालय को ही देखना है कि कोई भी व्यक्ति या संगठन इस तरह की लगभग चेतावनी की भाषा में, वो भी इस तरह कि जिससे लगे कि इस चेतावनी में न्यायालय भी शामिल है, जारी कर सकता है क्या? क्या ऐसी सूचना खुद न्यायालय की अवमानना नहीं है?
दूसरी बात जिन्होंने भी इस विज्ञापन को जारी किया है, उनकी बीकानेर व्यापार उद्योग मंडल में वैधानिक हैसियत क्या है, क्या कोई निर्वाचित अध्यक्ष इस्तीफा देकर किसी को भी एक संविधान सम्मत और लोकतान्त्रिक संस्था का बिना ववैधानिक प्रावधानों के कार्यवाहक अध्यक्ष बना सकता है? और क्या वो कार्यवाहक अध्यक्ष उस संगठन के सचिव (जबकि मंडल के संविधान में इस नाम से कोई पद ही नहीं है) की नियुक्ति और संगठन संबंधी अन्य सभी आर्थिक और अनार्थिक कार्यों को निष्पादित कर सकता है?
देखने वाली बात यह भी है कि मंडल के एसोसिएट सदस्य अन्य एसोसिएशनों की कार्यकारिणी या साधारण सभा की ओर से मनोनीत होते हैं। क्या यह सभी एसोसिएशन खुद वैधानिक रूप से कार्य कर रही हैं? यथा उन एसोसिएशनों में तय सीमा में संगठन के चुनाव, साधारण सभा और कार्यकारिणी की बैठकें हो रही है? यदि ऐसा नहीं है तो एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में उन एसोसिएट सदस्यों का अस्तित्व क्या है!
--दीपचंद सांखला
2 नवंबर, 2011

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