Thursday, October 25, 2018

डॉक्टरों का कम होता सम्मान (7 नवंबर, 2011)

पिछले कुछ वर्षों में आम आदमी के मन में डॉक्टरों की इज्जत कम हुई है। इसी का प्रमाण है कि अस्पतालों से आये दिन बदमजगी के समाचार मिलने लगे हैं। आम आदमी के गुस्से का शिकार अभी तो छोटे डॉक्टरों को ही अधिक होना पड़ रहा है। लेकिन आम लोगों की मनःस्थिति और खुले हाव को देख कर लगता है कि वो दिन दूर नहीं जब बड़े डॉक्टर भी इस बदमजगी का शिकार होने लगेंगे। घटनाओं को देखने-समझने से लगता है कि हमेशा डॉक्टरों की गलती या लापरवाही के कारण ही ऐसी घटनाएं नहीं होती। कई बार तो व्यवस्था और साधनों की कमी भी इसका कारण बनती है।
अस्पतालों में बड़े माने जाने वाले डॉक्टरों को ज्यादा खराब तो उन चापलूस लोगों ने किया है जो अपने छोटे-मोटे स्वार्थों के चलते हर समय ही इन डॉक्टरों के सामने पलक-पांवड़े बिछाये रहते हैं। ऐसे लोगों में सभी दफ्तरों के और सभी तरह के व्यापार करने वाले लोग शामिल हैं। ऐसी सुविधाएं मिलने और उसे भोगने वाले यह डॉक्टर ऐसी सुविधाओं को अपना विशेषाधिकार मानने लगते हैं। इन छद्म विशेषाधिकारों के चलते वो और उनका परिवार एक खुमारी में जीने लगता है। ऐसा नहीं है कि इस खुमारी का शिकार केवल डॉक्टर और डॉक्टरों के परिवार ही होते हैं। दूसरे प्रभावी पदों पर पदासीन अधिकारी और उनके परिजन भी इन चापलूसों के कारण ऐसी खुमारी के शिकार होते देखे जा सकते हैं।
लेकिन समाज डॉक्टरों से संवेदनशील होने की उम्मीद ज्यादा करता है। डॉक्टरों को अच्छी-खासी तनख्वाहें सरकार देती हैंं बावजूद इसके वो हर उस जगह से भी पैसा-हड़पू बने रहते हैं जहां उनका वाजिब हक नहीं बनता है। जैसे घर पर मरीज को देखने के लिए तय शुदा फीस से ज्यादा की उम्मीद करना, मरीज की माली हालात की जानकारी किये बिना उनको बिना जरूरत की जांचें लिखना, वो भी लेब विशेष से करवाने के दबावी इशारों के साथ। लेब की दरों को देखेंगे तो उस की दर में और अन्य लेब की एक ही जांच की दर में दुगुने-तिगुने का फर्क होना। दुगुना-तिगुना देकर भी जांच की प्रामाणिकता की कोई गारंटी नहीं होती है। जेनरिक की जगह महंगी दवाई लिखना, अस्पताल में भी जहां मौका लगता है, कमीशन की उम्मीद करना, अपने दलालों को सक्रिय रखना और समयबद्ध ड्यूटी पर न मिलना तो जैसे इनका अधिकार हो गया है। इस सब को देखकर इनके अधीनस्थ भी, चाहे वे डॉक्टर हों या नर्स या तकनीकी या क्लर्की स्टाफ, सभी बे-हक की पाने को प्रेरित होते हैं और यही अधीनस्थ डॉक्टर या कर्मचारी अपनी बे-हक की कमाई को वाजिब ठहराने के वास्ते ऊंचे डॉक्टरों-अधिकारियों की करतूतों का बखान गाहे-बगाहे करते रहते हैं। इस तरह यह बखान धीरे-धीरे आमजन तक पहुंचते हैं और जब तब गुस्से और बदमजगी का कारण बनते हैं।
--दीपचंद सांखला
7 नवंबर, 2011

No comments: