Saturday, October 27, 2018

सुख के लालच के दु:ख (24 नवंबर, 2011)

कहावत है ‘लालच बुरी बलाय’। जिन घटनाओं की पुनरावृत्ति होती है उनको संकेतों से समझाने के लिए यह कहावतें बनती हैं। यह घटनाएं अच्छी और बुरी दोनों हो सकती है? उक्त कहावत में साफ कहा गया है कि लालच कष्टों को निमंत्रण है। यह लालच की प्रवृत्ति कभी-कभार पशुओं में भी देखने को मिल जाती है, लेकिन इसका निर्णय करने के लिए उनके पास विवेक नहीं होता। मनुष्य को प्रकृति ने विवेक दिया है ताकि वो अच्छे-बुरे का निर्णय कर सके। मनुष्य में यह लालच की प्रकृति उसके उद्भव से मानी जाती है। ईसाइयत में तो इस दुनिया की उत्पत्ति ही लालसा से मानी जाती है। कहते हैं प्रथम पुरुष आदम और प्रथम स्त्री हव्वा को एक सेव उपलब्ध करवा कर आगाह कर दिया गया था कि तुम्हें यह नहीं खाना है। अगर खाने का लालच किया तो हमेशा भुगतना होगा।
इस रूपक का उल्लेख इसलिए किया गया कि वित्तीय विशेषज्ञों द्वारा बार-बार यह बताए जाते रहने के बावजूद कि कोई भी वित्तीय संस्था पांच वर्ष से कम समय में धन को दुगुना करके नहीं दे सकती, हम बार-बार ऐसे ठगोरों के चक्कर में पड़ते हैं और गाढ़े पसीने की अपनी कमाई खो बैठते हैं। इन दिनों जो खबर गरम है वो गोल्ड-सुख की है। कम्पनी पर आरोप है कि इसने ढाई साल में धन दुगना करने का लालच देकर हजारों लोगों से कोई 300 करोड़ रुपये इकट्ठे किये। इसके नियंता गायब होने की फिराक में थे। कुछ पकड़े भी गये हैं। इसी तरह कोई पंद्रह से बीस साल पहले भी एक कंपनी आई थी गोल्डन फोरेस्ट। उसने भी ढाई वर्ष में धन दुगुना करने का लालच देकर कई सौ करोड़ रुपये का चूना लगाया था। बीकानेर के कई अच्छे-भले लोग आज भी उस टीस को नहीं भुला पाए हैं।
आधे मूल्य में ब्रांडेड घरेलू सामान, सोने को चमकाने, सोने को दुगुना करने, आधे भाव में सोना बेचने और रुपयों को दुगुना करने जैसी घटनाएं देश में आये दिन होती हैं। इन घटनाओं की पुनरावृत्ति इसलिए भी होती है कि जिनको यह पता चल जाता है कि यह गड़बड़ हो रही है, उसके बावजूद वे यह सोच कर चुप रह जाते हैं कि हमें सचेत रहना है। दूसरा ठगा जाए तो उनका क्या जा रहा है! वे यह भूल जाते हैं कि ऐसे ठगोरों के हौसले बढ़ेंगे तो अपने को समझदार मानने वालों का विवेक भी कभी खूंटी पर टंगा रह जाएगा। वे अपना काम कर जायेंगे।
--दीपचंद सांखला
24 नवंबर, 2011

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