Tuesday, October 30, 2018

गोपाल गहलोत (7 दिसंबर, 2011)

विभिन्न राजनैतिक पार्टियों से नाउम्मीद हुए नेताओं में से कुछ खुलेआम और कुछ ने ठिठकते हुए दलित, पिछड़ा और अल्पसंख्यक महासभा के गठन के साथ ही अपनी खुदमुख्त्यारी की घोषणा कर दी है। इनमें प्रमुख हैं गोविन्द मेघवाल और गोपाल गहलोत। गोविन्द मेघवाल तो पहले से भाजपा से बाहर हैं, इसलिए उन्होंने खुलकर अपना एजेन्डा जाहिर कर दिया। गोपाल गहलोत अभी भाजपा की प्रदेश कार्यसमिति के सदस्य हैं। पार्टी ने पहले भी एक से अधिक बार न केवल उनमें भरोसा जताया बल्कि मौके भी दिये हैं। वे शहर भाजपा के अध्यक्ष रहे हैं, विधानसभा का टिकट भी उन्हें दिया गया और महापौर का भी। शायद इसीलिए आयोजन में वे ठिठके-सहमे रहे। यह भी हो सकता है गोपाल गहलोत इस तरह से दबाव बना कर पार्टी से कोई पुख्ता आश्वासन चाहते हों। लेकिन इसकी संभावना कम इसलिए लग रही है कि गहलोत कोलायत से चुनाव लड़ना नहीं चाहेंगे, बीकानेर पूर्व से सिद्धिकुमारी की दावेदारी पुख्ता है। बीकानेर पश्चिम में कांग्रेस हो या भाजपा किसी गैर पुष्करणा को टिकट देने का साहस जुटा नहीं पायेगी। शायद यही सब सोच कर और पार्टी ने पूर्व में जताये भरोसे के दबाव में गोपाल गहलोत ऊहापोह में हैं। गोविन्द मेघवाल ने गोपाल गहलोत की इसी ऊहापोह को भांप लिया होगा तभी उन्हें नवगठित महासभा का न केवल अध्यक्ष मनोनीत कर दिया बल्कि कार्यालय भी गहलोत के हीरालाल मॉल में खोलने की घोषणा कर दी!
हो सकता है खम्मा धणी संस्कृति और सिद्धिकुमारी की थोड़ी बहुत सक्रियता के चलते कम से कम अगला एक चुनाव वो और जीत सकती हैं। गोपाल गहलोत यदि ऐसा ही सोचते हैं तो बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र में बिना ऊहापोह के और एक निश्चित रणनीति के और योजनाबद्ध तरीके से अल्पसंख्यकों, दलितों और पिछड़ों का भरोसा हासिल कर सकते हैं। नन्दू महाराज इसके उदाह़रण हैं, उन्होंने भाजपा में अन्दर और बाहर रहते हुए अल्पसंख्यकों के एक हिस्से का और पिछड़ों का भरोसा हासिल किया है और यही उनकी हेकड़ी की ताकत है।
राजनीति में लोग कई कारणों से आते हैं, कुछ तो केवल सहती-सहती राजनीति करने के लिए कि कभी कोई पद, प्रतिष्ठा मिल जाये तो ठीक नहीं तो इसी से खुश हो लेते हैं कि कुछ बड़े नेताओं का हाथ उन पर है। कुछ अपने व्यापार-उद्योग में लाभ और सुविधाएं हासिल करने के मकसद से आते हैं। कुछ ही साहसी होते हैं जो चुनाव का सामना करने के हौसले के साथ राजनीति करते हैं। गोपाल गहलोत और गोविन्द मेघवाल इसी तरह के हिम्मती हैं। विधानसभा चुनावों में अभी दो साल हैं, बहुत समझदारी और साहस के साथ रणनीति बनायें तो दोनों कुछ हासिल भी कर सकते हैं।
--दीपचंद सांखला
7 दिसंबर, 2011

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