Monday, July 17, 2023

मुरलीधर व्यास– 3

 बीकानेर के इतिहास में सबसे बड़ा आन्दोलन 1954 में गेहूँ निकासी के विरोध में हुआ था। इस आंदोलन में 23 दिन बाजार बन्द रहा और लम्बी भूख हड़तालें हुईं। इसको नेतृत्व देने वालों में मुरलीधर व्यास प्रमुख थे। आज हम जो खबरें देख रहे हैं कि गेहूँ की पैदावार इतनी हुई है कि गोदाम तो दूर बारदाने भी उपलब्ध नहीं हो रहे हैं। तब की स्थिति ठीक उलट थी-अनाज की बहुत कमी थी-बीकानेर के गोदामों में पड़े अनाज को अन्यत्र ले जाया जाने लगा तो बीकानेर की जनता को लगा कि फिर हमारा क्या होगा। वह अनाज अन्यत्र भी जरूरतमंदों के लिए जा रहा होगा। 

खैर, 1954 में ही गोवा मुक्ति आन्दोलन के लिए देश भर के नौजवानों से गोवा जाने का आह्वान किया गया। गोवा तब पुर्तगालियों के अधीन था। व्यास के नेतृत्व में बीकानेर से भी पांच लोग गोवा मुक्ति आन्दोलन में भाग लेने गये। इनमें से एक भैरूंदत्त भारद्वाज को वहां हुई गोलीबारी में गोली भी लगी। इसी तरह एक आन्दोलन व्यासजी के नेतृत्व में 1956-57 में जामसर की जिप्सम खान के मजदूरों का चला। 35 दिन चले इस आन्दोलन को आज भी याद किया जाता है। छोटे-मोटे आन्दोलन-जुलूस तो व्यासजी जब तब खड़ा करने की क्षमता में आ चुके थे। वे जननेता माने जाने लगे और 1957 का विधानसभा चुनाव वे आसानी से जीत गये। जैसा कि जिक्र किया था-1962 का चुनाव भी व्यासजी ने ही जीता। विधानसभा में व्यासजी के यह दस वर्ष उल्लेखनीय कहे जाते हैं। विधानसभा में वे लगातार सक्रिय रहते और न केवल बीकानेर के मुद्दों पर, बल्कि राज्य के अन्य स्थानों के और राज्य स्तरीय मुद्दों को भी वह जोरदार ढंग से उठाते थे। इन्हीं दस वर्षों में मुरलीधर जरूरत पडऩे पर राज्य के अन्य हिस्सों में भी जाते रहे। धीरे-धीरे व्यास की छवि राज्य स्तरीय नेता की बनने लगी। मोहनलाल सुखाडिय़ा तब मुख्यमंत्री थे। 1954 में मुख्यमंत्री बने सुखाडिय़ा की लोकप्रियता का ग्राफ राज्य की जनता में लगातार गिर रहा था-1962 के चुनावों तक आते-आते वे कांग्रेस के मात्र 88 उम्मीदवार ही जिता पाये-सदन तब 176 का था, यानी बहुमत से भी एक कम।

कहते हैं सुखाडिय़ा ने 1967 के चुनाव में व्यासजी की हार निश्चित कराने के लिए बीकानेर मूल के गोकुलप्रसाद पुरोहित को चुनावों से कुछ पहले भीलवाड़ा से बीकानेर भेजा। गोकुलप्रसाद तब वहां श्रमिक संघों की राजनीति करते थे और 1962 से वहीं की माण्डल सीट से कांग्रेसी विधायक भी थे। कहा जाता है कि राज्य में तब के कांग्रेसी दिग्गज माणिक्यलाल वर्मा के दामाद शिवचरण माथुर के लिए माण्डल सीट खाली भी करवानी थी। शिवचरण माथुर ने 1967 का चुनाव माण्डल से लड़ा, जीते भी। बाद में माथुर राज्य के मुख्यमंत्री भी रहे।

क्रमश:

दीपचन्द सांखला

1 जून, 2012

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