Monday, July 17, 2023

बीकानेर और देश : उलटबांसी योग

 लगता है इन दिनों प्रत्युत योग चल रहा है। या कह सकते हैं आमने-सामने का-बरअक्स योग है। यूपीए के एक घटक दल की मुखिया होते हुए भी ममता बनर्जी यूपीए के मुख्य घटक से ताल ठोके खड़ी हैं तो अपने शहर में ऊन के व्यापारी और धान के व्यापारी आमने-सामने हैं, निजी और सरकारी क्षेत्र के वेटेनरी कॉलेजों के छात्र भी इसी योग से प्रभावित लग रहे हैं। यह सभी आमने-सामने इसलिए नहीं हैं कि सभी किसी शाश्वत सत्य के लिए लड़ रहे हों। सभी ने अपने-अपने सत्य घड़ लिए हैं-यह छोटे-छोटे सत्य एक तरफ निजी स्वार्थों की उपज हैं तो दूसरी ओर का सत्य उनके अस्तित्व के संकट की उपज है।

कभी एशिया में ऊन की सबसे बड़ी मण्डी के रूप में ख्यात बीकानेर का ऊन का व्यापार बड़े संकट से गु•ार रहा है, हालांकि जब यह व्यापार रोशन था तब उससे आलोकित न भेड़ पालक होते थे-न ऊन की कोटडिय़ों और फैक्ट्रियों में काम करने वाले श्रमिक। ऊन के इस व्यापार से पुर-रोशन घराने इतने भी नहीं होंगे कि उनकी गिनती तीन अंकों तक पहुंचे। आजीविका के परम्परागत साधनों से विरक्ति के कई कारण हो सकते हैं, अपने उत्तर-पश्चिम राजस्थान के इस ताने-बाने को बिखेरने में राजस्थान नहर की भी बड़ी भूमिका मानी जाए तो इससे भी इनकार नहीं किया जा सकता कि पशु-पालकों को उनके हक का तो क्या न्यूनतम जरूरत भर का न मिलना भी एक कारण है।

ऊन की आवक कम हुई तो व्यापार ठप हुआ। व्यापारियों को लगा कि अनाज की मण्डी में ऊन की मण्डी का विलय हो जाने पर वह अपने धंधे में परिवर्तन कर सकेंगे। लेकिन इस विलय का विरोध करने वाले धान के व्यापारियों का यह तर्क समझ के परे है कि विलय हो जाने पर ऊन जैसे अखाद्य पदार्थ से उनके स्वास्थ्य पर विपरीत असर पड़ेगा-पता नहीं केवल स्वास्थ्य को लेकर वे इतने सचेष्ट हैं या कोई और कारण भी है-होगा ही।

इधर प्रदेश के सात निजी वेटेनरी कॉलेजों में पढ़ चुके और पढ़ रहे छात्रों का भविष्य ही दावं पर लगा है-जिसके लिए छात्र दोषी नहीं हैं। इतना दोष जरूर है कि दाखिला लेने से पहले उन्होंने यह पता करने की कोशिश नहीं की कि कॉलेज ने सभी जरूरी औपचारिकताएं पूरी कर रखी हैं कि नहीं। क्योंकि इन कॉलेजों ने बिना वेटेनरी कौन्सिल की मान्यता के मोटी फीस वसूलकर दाखिले शुरू ही कैसे कर दिये-यह समस्या प्रदेश में केवल वेटेनरी कॉलेजों की नहीं है, अन्य कई तकनीकी कॉलेजों की भी है जिन्होंने इस तरह की औपचारिकताएं पूरी किये बगैर अध्ययन सत्र शुरू कर रखे हैं। होता यही है कि फिर छात्र और उनके अभिभावक परेशान हुए घूमते हैं-पता नहीं सरकार की ओर से ऐसी समस्याओं के लिए निगरानी की कोई व्यवस्था भी है कि नहीं। दूसरी ओर सरकारी वेटेनरी कॉलेज के छात्रों के विरोध के अपने तर्क भी धान व्यापारियों के तर्कों से ज्यादा मजबूत नहीं लग रहे हैं-जबकि ऊन व्यापारियों की तरह ही निजी वेटेनरी छात्रों का भविष्य भी दावं पर है।

पश्चिम बंगाल का चुनाव जीतने के बाद ममता बनर्जी भी बौराई हुई लगती है। वह हर मुद्दे को अपनी हेकड़ी और सनक से हल करना चाहती है-कहीं उसको यह तो नहीं लग रहा है कि कांग्रेस किसी बंगाली को राष्ट्रपति बना कर बंगालियों का दिल जीत लेगी और अगले चुनाव में कांग्रेस उसे पटकनी दे देगी। जबकि लगता नहीं कि कांग्रेस लम्बे समय तक बंगाल में ऐसी स्थिति में आ पायेगी! हां, ममता अगर यूं ही करती रही तो जिन वामपंथियों से बंगाल को मुक्त करवाने की वो बात करती रही हैं, अगर ममता की शैली यही रही तो वामपंथी जरूर ममता को पटकनी दे सकते हैं।

—दीपचन्द सांखला

15 जून, 2012

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