Monday, July 24, 2023

इस जीत में हार है

एक अरसे से पदोन्नति में आरक्षण का मुद्दा ताप लिए हुए है-कहें तो पदोन्नति में आरक्षण के खिलाफ जब से उच्चतम न्यायालय का फैसला आया है तभी से पदोन्नति में आरक्षण के विरोधी इस बात से आशंकित थे कि पदोन्नति में आरक्षण के पक्ष में संविधान में संशोधन लाया जायेगा। पदोन्नति में आरक्षण के विरोधियों को जब इतनी बात समझ आती है तो यह समझ में क्यों नहीं आता कि देश के सभी कानून-कायदे बनाने वाली संसद ही जब वोटों से चुनी जाती है तो एक लोकतान्त्रिक देश में देर-सबेर होगा वही जो अधिकतर वोटर चाहते हैं। यह कहने बे मानी यह कतई नहीं है कि आरक्षण और पदोन्नति में आरक्षण के विरोधियों को अपनी बात रखने का हक नहीं है-उन्होंने अपनी बात रखी-कल के बन्द को पुरजोर और प्रभावी भी बनाया लेकिन स्थानीय बोली में बात करें तो इससे बटेगा क्या?

मिशन-72 के नाम पर वे दोनों जातिय दबावसमूह एक हैं जो सन् 1990 में मंडल कमीशन की सिफारिशें लागू किए जाने पर एक-दूसरे के विरोध में खड़े थे। यह सब बताने के मानी यह भी नहीं है कि हम कहें कि इन्हें आपसी दुश्मनी हमेशा बनाए ही रखनी चाहिए। विरोध में थे तो अपने-अपने हितों को लेकर थे-अब साथ हैं तो भी अपने हितों को लेकर- फर्क सिर्फ इतना ही है कि मिशन-72 में दोनों समूहों के हित समान हो लिये हैं।

समस्याएं तभी पैदा होती हैं जब हम देशीय मुद्दों को समूह हितों की नजर से देखने और बरतने लगते हैं। लागू होने से आज तक आरक्षण व्यवस्था इसी मानसिकता की सबसे बड़ी शिकार रही है। लागू किया तब भी इसके दूरगामी व्यावहारिक पक्षों पर ध्यान नहीं दिया गया-अन्यथा इसमें तब ही क्रीमीलेयर का प्रावधान कर दिया जाता तो इस आरक्षण व्यवस्था का असली मकसद पूरा होता और अन्य प्रभावी-जातिय समूहों में इसका विरोध भी उस तरह नहीं होता-जैसा कि अब हो रहा है।

क्रीमीलेयर के बिना लागू आरक्षण व्यवस्था ने आरक्षित वर्ग में ही एक लाभान्वित आरक्षित समूह बना दिया जो इस अपूर्ण या दोषयुक्त आरक्षण का ही पक्षधर हो गया। बिना इसकी परवाह किये कि बिना क्रीमीलेयर को बाहर किये उन्हीं के जातिय समूह का एक बड़ा हिस्सा इस आरक्षण व्यवस्था का लाभ लम्बे समय तक नहीं ले पायेगा। लेकिन उन्हें इससे क्या? वे और उनकी पीढिय़ां तो लाभान्वित हो रही हैं!

पदोन्नति में आरक्षण के समर्थकों की इस बात में दम है कि आरक्षण के बावजूद केन्द्र सरकार के 45 कैबिनेट  सचिवों में एक भी आरक्षित वर्ग से नहीं है और उसी केन्द्र सरकार के लगभग 250 अतिरिक्त सचिवों और उपसचिवों में मात्र एक ही आरक्षित वर्ग से है। इस पर आरक्षण विरोधी मेरिट की बात करने लगते हैं-लेकिन तब वे भूल जाते हैं कि विज्ञान ने साबित किया कि प्रत्येक व्यक्ति की बौद्धिक क्षमता उसके पैदा होने के समय समान होती है-बाद का सारा बौद्धिक विकास उसके परिवार, मोहल्ला, सामाजिक-आर्थिक परिवेश आदि पर निर्भर करता है। विज्ञान और समाज विज्ञान की बात को सही मानें तो फिर हमारे भारतीय समाज का दबा-कुचला वर्ग क्या हमेशा उन्हीं परिस्थितियों में रहने को अभिशप्त है। कुछेक का तर्क होता है कि इस दबे-कुचले वर्ग के बच्चों के लिए आरक्षण की बजाय विशेष कोचिंग की व्यवस्था कर दी जानी चाहिए। तब वह बालक जिस परिवेश से आ रहा है और उस परिवेश के चलते जो मन:स्थिति अपनी वह बना चुका है-क्या केवल कोचिंग मात्र से उसकी उस मन:स्थिति में बदलाव आ जायेगा? देखा गया है कि अच्छे-भले घरों के बच्चे भी किसी गैर-संगति के चलते बिगड़ जाने पर सबल और सम्पन्न परिवारों द्वारा भी उनमें बदलाव लाना नामुमकिन हो जाता है तो दबे-कुचले वर्ग के बच्चों की संगति तो क्या पूरा परिवेश ही शोषित होता है। तब क्या केवल कोचिंग मात्र से उसमें प्रतिभा आ जायेगी!

बात बहुत लम्बी हो जायेगी। कहने का भाव इतना ही है कि इस तरह के मुद्दे केवल विरोध और समर्थन से हल नहीं हो सकते है। ऐसे मुद्दों पर सभी प्रकार के व्यक्तिगत और समूहगत हितों से ऊपर उठ कर विचार करने की आज जरूरत है। कल के सफल बंद को जीत मानने वालों को यह समझ लेना चाहिए कि सही मायनों में यह हार ही है क्योंकि जिस मैदान में आप जीते हो वहां आपको हराने वाला था ही नहीं। अधिकांश व्यापार आरक्षण विरोधियों के हाथ में है और नौकरियों में आरक्षण के बावजूद अधिकांश दफ्तरों में बहुमत भी आरक्षण विरोधियों के पास है। मीडिया पर भी पूरा कब्जा अनारक्षित वर्ग का ही है।

इस तरह का विरोध या परिस्थितियां समाधान की बजाय उन आरक्षण समर्थकों में नया जोश या कहें गुस्सा ही बढ़ाएगा, क्योंकि अन्तत: वोट की ताकत तो उनके पास ही है, केवल उसे कास्ट करने का विवेक नहीं है। और जिस दिन उनमें यह विवेक आ जायेगा तो राज भी वही करेंगे। तब अगर यह वर्ग सैकड़ों वर्षों का बदला लेने की ठान लेगा तब क्या होगा! हम तो नहीं रहेंगे, लेकिन तब हमारी पीढिय़ां तो होंगी! तब क्या बची-खुची मनुष्यता कायम रह पायेगी?

—दीपचन्द सांखला

23 अगस्त, 2012

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