Thursday, July 27, 2023

हाजी मकसूदजी! फर्क दिखना चाहिए

 इसी सात तारीख को नगर विकास न्यास ने बीछवाल और घड़सीसर क्षेत्र की अपनी जमीनों पर हुए कब्जों को हटाया था। हो सकता है इन में से कुछ कब्जे भूमाफियाओं के हों, कुछ जरूरतमंदों के। साल में दो-पांच बार इस तरह की कार्रवाइयां होती ही हैं, कभी न्यास की तरफ से तो कभी नगर निगम की तरफ से। इस तरह की कार्रवाइयों में कई घर उजड़ते हैं-कई सपने चकनाचूर हो जाते हैं तो कुछ मामले ऐसे भी देखे गये कि कोई जिन्दगी भर के लिए गहरे अवसाद में चला जाता है।

भारतीय सामाजिक परम्परा के अनुसार एक स्त्री शादी होने पर अपने माता-पिता का घर छोड़ कर बिलकुल अनजान लोगों के साथ इस उम्मीद में चली आती है कि उसका अपना घर और अपनी गृहस्थी होगी। इस संक्रांति को जितने आसान तरीके से हमने लिख दिया है उससे कई गुणा मुश्किल होता है इससे गुजरना! और ऐसी गृहस्थी में प्रवेश कितना मुश्किल होता है-जहां भरोसे के लिए जमीन का टुकड़ा हो और ही न्यूनतम सुरक्षा हेतु चार दीवारी। ऐसी स्थिति में कोई स्त्री चार टहनियों पर बंधी अपनी फटी ओढ़नी की छत के नीचे जितने सुकून से सो लेती है उतना सुकून तो शायद पक्के मकानों, बंगलों और हवेलियों में सोने वाली स्त्रियों को भी नसीब नहीं होता होगा। और भी बड़ा जीवन संकट तब जब उस जमीनी टुकड़े के लिए किसी भूमाफिया को कुछ रकम दे रखी हो।

यह सब आज इसलिए लिख रहे हैं कि कल ही राजस्थान हाइकोर्ट की जयपुर बेंच के न्यायाधीश मनीष भण्डारी ने एक तल्ख मौखिक टिप्पणी की। उन्होंने जयपुर के रामगढ़ बंधे के बहाव क्षेत्र में हुए अतिक्रमणों पर सुनवाई के दौरान कहा कि जिनके भी निर्माण टूटे हैं उसकी भरपाई उन अफसरों की जेब के पैसों से क्यों करवाई जाय जिनकी जिम्मेदारी ही उस जमीन पर अतिक्रमण रोकने की थी!

अपने बीकानेर में भी नगर निगम और नगर विकास न्यास की करोड़ों-अरबों की जमीनें या तो लावारिस पड़ी हैं या उन पर धड़ल्ले से कब्जे हो रहे हैं या हो गये हैं। विनायक ने अपने पिछले वर्ष के 8 सितम्बर के अंक में इस सम्बन्ध में फ्रंट लीड प्रकाशित कर यह कहा था किन्यास और निगम शहर में बिखरी अपनी जमीनों का श्वेतपत्र जारी करेंताकि उन भूमाफियाओं की करतूतों पर अंकुश लग सके जो समानांतर यूआइटी चला कर यूआईटी निगम की जमीनें प्लॉट काट कर बेचने से गुरेज नहीं करते। कल जब न्यायाधीश भण्डारी ने इस सम्बन्ध में टिप्पणी की तो हमने अपने उस स्कूप की सुध ली।

विनायक अतिक्रमणों पर सिरे से खिलाफ है। लेकिन अपने देश ने जो विकास का मॉडल अपनाया है वह विकास गांवों की कीमत पर शहरों के विकास का है। इसके चलते शहरों पर इस तरह के दबाव बढ़ेंगे और दबा कुचला वर्ग भी रोजी-रोटी की तलाश में शहरों में ही आयेगा और जब शहरों में आयेगा तो वे लोग हवा में तो रहने से रहे-रहेंगे जमीन पर ही-फिर चाहे वे लावारिस दीखी किसी जमीन पर डेरा डालें या फिर किसी भूमाफिया से ठगीज कर!!

न्यास की 7 सितम्बर की अतिक्रमण हटाने की कार्यवाही का तरीका शुद्ध ब्यूरोक्रेटिक था जबकि फिलहाल न्यास के अध्यक्ष सरकारी अफसर नहीं जनता के नुमाइन्दे हाजी मकसूद अहमद हैं। तो उम्मीद की जाती है कि अतिक्रमण हटाने की कार्रवाई में भी यह फर्क दीखना चाहिए था। हाजी मकसूद नवाचार करते, अतिक्रमियों का पुख्ता सर्वे करवाते-भूमाफियाओं और जरूरतमंदों को अलग-अलग करते और असल जरूरतमंदों को उस बीपीएल आवासीय योजना में बसाने की गुंजाइश देखते जिसका उद्घाटन इस कब्जे हटाने की कार्यवाही से मात्र आठ दिन पहले उन्हीं के मुख्यमंत्री गहलोत द्वारा आहूत और उन्हीं की पार्टी की राष्ट्रीय अध्यक्ष ने बाड़मेर किया था। हाजी मकसूद यदि ऐसा कुछ करते तो उस दिन वह भद्दा दृश्य उत्पन्न नहीं होता जिसमें एक स्त्री अपने कपड़े उतार कर अपनी अंतस् पीड़ा को जाहिर कर रही थी।

दीपचन्द सांखला

13 सितम्बर, 2012


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