Monday, July 24, 2023

हजार-लाख-करोड़ की चकरघिन्नी

 केन्द्र में यूपीए-दो की और कर्नाटक में येदुरपा की सरकारों के दौरान खुले सैकड़ों, हजारों या लाखों करोड़ के घोटालों के खुलासों से आम-आदमी चकर घिन्नी हो रहा है।

आजादी बाद 1952 के चार सौ करोड़ के पहले केन्द्रीय बजट और इस वर्ष 2012 के चौदह लाख करोड़ के बजट में तीन हजार गुणा से ज्यादा की बढ़ोतरी है। इसे देख कर कह सकते हैं कि रुपयों की बात चढ़दी कलां हैं।

विदेशों में जमा कालेधन की बात करने वाले योग प्रशिक्षक रामदेव ने इन दिनों कालेधन की रकम पर फर्राटा लगा दिया। कहां तो वे चार सौ लाख करोड़ की बात कर रहे थे और अभी की उनकी रामलीला ग्राउंड की लीला में वे बीस हजार लाख करोड़ के कालेधन की बात करने लगे! अभी तो उन्होंने बात को शुरू ही इस तरह किया कि अब तो उनके पास नाम सहित आना-पाई का हिसाब है। उनके ऐसा कहने पर हम भी एक बार सकते में आकर सहम गये। जैसे यह धारणा है कि दुनिया में तीन लोग हूबहू शक्ल और कद-काठी के होते हैं तो हो सकता है इस तरह हमारे ही नाम उपनाम का कोई व्यक्ति हो और उनके नाम से विदेशों में कालाधन जमा हो। और अगर सचमुच ऐसा रामदेव की सूची में हुआ तो क्या हमारी पूछ और पूंछ अचानक बढ़ नहीं जायेगी! खैर, रामदेव ने सूची जारी न कर हमें इस संभावित दुविधा से बचा लिया।

अभी एक घोटाले की चर्चा बड़ी गरमा-गरम है। गरम इतनी की मुख्य विपक्षी दल भाजपा के सांसदों की संसद की सभी सीटें इतना ताप देने लगी कि उनके लिए उन पर बैठना नामुमकिन हो रहा है? कैग कहें या सीएजी या 'नियंत्रक और महालेखा परीक्षक'-ने रिपोर्ट दी है कि कोल ब्लॉक यानी कोयले की खानों के आवंटन में एक लाख छियासी हजार करोड़ रुपये की गड़बड़ी पायी गई है और यह गड़बड़ी तब की हैं जब कोयला मंत्रालय खुद प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के पास होता था। इसलिए भाजपा के लाल मचल-मचल के कह रहे हैं कि कोई भी बात तभी होगी जब मनमोहन अपने पद से त्यागपत्र दे देंगे। इसी सिलसिले में मौन से मोह त्याग कर दिये गये प्रधानमंत्री के कल के बयान और प्रेस में तोड़-मरोड़ कहे एक शेर के जवाब में लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने प्रेस कांफ्रेंस की, जिसमें उन्होंने कोयला घोटाले में कांग्रेस को मिले 'मोटे माल' की बात को इस भाव-भंगिमा से कहा कि-लगने लगा कि सुषमा को पीड़ा इस बात की ज्यादा है कि 2004 में यदि केन्द्र में उनकी सरकार पुन: बन जाती तो यह 'मोटा-माल: उनका होता। खैर, कैबत तो कोयले की दलाली में हाथों के काले होने की है लेकिन अपने राजनेता तो सभी काजल की कोठरी में रहने लगे हैं। अत: उनको इसकी चिन्ता नहीं है कि इस दलाली में हाथ काले होते हैं या मुंह! क्योंकि अपनी देह पर उन्होंने कहीं कुछ गोरापन बचाए भी रखा है तो कोठरी की पड़ती छाया गोरापन दिखने नहीं देगी!

अपने देश की आधी जनता गरीबी की रेखा के नीचे गुजर-बसर करती है-यानी मोंटेक अहलुवालिय की बात मानें तो उनकी प्रतिदिन की आय 27 से 32 रुपये से भी नीचे है-ऐसे लोगों के हिसाब का कैलकुलेटर तीन अंकों से ज्यादा की गणना करता ही नहीं है-और शायद यही उनका सबसे बड़ा सुख भी है कि वे इस हजार-लाख-करोड़ की चकरघिन्नी से मुक्त हैं-शेष आधों में से गिनती के ही कुछ होंगे जो ऊपर दिये सभी आंकड़ों को अंकों में लिख सकें। इन आंकड़ों को शब्दों में लिखने का विकल्प हमारे पास यदि नहीं होता तो कोयला या अन्य सभी घोटालों और कालेधन के आंकड़ों के आगे के शून्य लगाने में हमारी सम्पादकी खूंटी टंग जाती!

—दीपचन्द सांखला

28 अगस्त, 2012

No comments: