Monday, July 24, 2023

वर्षाजल निकासी पर नये सिरे से हो विचार

 लगातार की वर्षा और शहर के लगभग सभी सड़क मार्गों या उनके किनारे तथा गली-मोहल्लों में जमा होते बरसाती पानी की समस्या से जल निकासी की चरमराई व्यवस्था ने ध्यान आकृष्ट किया है। इस निकासी व्यवस्था की खामियों का ही नतीजा है कि अब बरसाती पानी का जमाव शहर की निचली बस्तियों या रास्तों तक ही सीमित नहीं रहा। ऊंचाई वाले इलाकों में भी अपेक्षाकृत निचले भू-भाग में बरसाती पानी जमा होकर आवागमन में बाधक बनने लगा है। मकानों में पानी भरने की घटनायें भी इसी समस्या का दूसरा पहलू है। समय गुजरने के साथ ही मानसून के दौरान बरसाती जल के भराव की समस्या हर बार ज्यादा गंभीर रूप लेती नजर आती है। बांसवाड़ा, सीकर व जयपुर जैसी 11-12 इंच तक वर्षा बीकानेर में नहीं हुई है। इस बार वर्षा की समयावधि अवश्य ज्यादा रही लेकिन किसी चौबीस घंटों में वर्षा का आंकड़ा दो इंच से ज्यादा के माप को पार नहीं कर पाया। इसके विपरीत बरसाती जल के जमाव की समस्या पारम्परिक समस्याग्रस्त इलाकों में कुछ ज्यादा रहने के साथ ही कुछ नये क्षेत्र  इस समस्या से दो-चार होते नजर आये। यह तो तब है जब कुछ ही वर्ष पहले एशियाई विकास बैंक की वित्तीय मदद से शहर की जल निकासी व्यवस्था पर ही करोड़ों रुपए खर्च किए गए हैं। इससे यह लाभ तो हुआ कि जूनागढ़ क्षेत्र व पब्लिक पार्क जैसे जल जमाव की समस्या वाले कुछ इलाकों से एकत्र बरसाती पानी अब अपेक्षाकृत जल्दी खाली होने लगा है। पर नए इलाकों में जल जमाव ने इस राहत के असर को भुला दिया है।

शहर में अनियोजित नई बस्तियों के बसने तथा पुराने बसे इलाकों में नवनिर्माणों से बरसाती पानी के निकास के रास्ते धीरे-धीरे बंद होते जा रहे हैं। इसका नतीजा यह हो रहा है कि अन्य कोई रास्ता नहीं मिलने से बरसाती पानी सड़क मार्गों या अन्य छोटे-बड़े रास्तों से बहता हुआ निकलता है और निचले इलाकों में जमा हो जाता है। बरसाती पानी की निकासी के लिए आमतौर पर अन्य शहरों की तरह बीकानेर में नालियां न्यूनतम हैं। पुराने शहर में घरों के पानी की निकासी के लिए बनी नालियां अवश्य इसमें मदद करती हैं लेकिन बाहरी क्षेत्रों में बनी अपेक्षाकृत नई सड़कों के किनारे नालियां अपवाद स्वरूप ही दिखाई देती हैं। यही नहीं, घरों और प्रतिष्ठानों के आगे का तल मिट्टी डालकर ऊंचा करने की प्रवृत्ति के चलते कहीं नालियां हैं भी तो वे निष्प्रभावी साबित होती हैं। ऐसी स्थिति में सड़कें और रास्ते ही बरसाती जल की निकासी का एकमात्र साधन बन जाते हैं। यही पानी आगे रास्ता नहीं मिलने से कुछ समय सड़कों पर ठहरा रहता है। इससे वर्षा होने और इसके कुछ घंटों अथवा कुछ दिनों तक पानी से भरी सड़कों पर आवागमन में व्यवधान आता है। साथ ही जलभराव की शिकार सड़कें क्षतिग्रस्त हो जाती हैं। आमजन को परेशानी के अलावा सीमित संसाधनों से बनी सड़कों को होने वाला नुकसान राजकोष पर भी भारी पड़ता है।

इन हालात में जरूरी है कि बरसाती पानी की निकासी के लिए नए सिरे से योजना बनाकर समन्वित प्रयास किया जाएं। इस कार्य के लिए अकेले नगर निगम से ही अपेक्षा करना उचित नहीं होगा। भवन और सड़कों के निर्माण से जुड़े विभागों में भी इसके लिए समन्वय बनाकर योजना बनाने की जरूरत है। इससे मामूली वर्षा के समय जनजीवन ठहर-सा जाने की समस्या भी दूर हो सकेगी और क्षतिग्रस्त सड़कों के रूप में हर वर्ष होने वाले राजस्व के नुकसान से भी बचा जा सकेगा।

—दीपचन्द सांखला

27 अगस्त, 2012

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