Friday, July 21, 2023

गोगागेट पुलिस चौकी

 कल गोगागेट स्थित पुलिस चौकी का उद्घाटन हो गया। यह चौकी पहले तो बननी शुरू ही बहुत मुश्किलों बाद हुई और निर्माण कार्य शुरू होने के बाद भी कई बार काम रुका और कई बार शुरू हुआ।

कल के समारोह में बी.डी. कल्ला मौजूद थे-इन दिनों हो यही रहा है कि सरकारी समारोहों का पार्टीकरण होने लगा है। पहले स्थानीय सैटेलाइट अस्पताल में हुए शिलान्यास और उद्घाटन समारोह पार्टी के रंग से रंगे गये और कल के कार्यक्रम में यह रंग कुछ ज्यादा ही चढ़ा हुआ था। नतीजा यही कि पुलिस चौकी के उद्घाटन के कार्यक्रम में आला पुलिस अधिकारियों की मौजूदगी में लगभग आधे घंटे तक अफरा-तफरी मची रही। यह बदमजगी करने वाले कोई बाहरी नहीं कांग्रेसी ही थे। ऐसे नजारे आजकल राजनीतिक पार्टियों के कार्यक्रमों में आम हो गये हैं। प्रदेश में कहीं न कहीं से किसी न किसी पार्टी के कार्यकर्ताओं की ऐसी भिड़न्तों के समाचार आए दिन छपते ही रहते हैं।

समाज में आई इस असहिष्णुता और दुस्साहस के एक दोषी तो यह राजनेता ही हैं और दूसरा कारण भ्रष्टाचार को मान सकते हैं। आए दिन देखने को मिलता है कि सरकारी दफ्तरों में जिन कर्मचारियों या छोटे अधिकारियों की पीठ पर नेताओं का हाथ होता है वे दबंगई के अलावा कोई कार्य नहीं करते। इसके बावजूद ऐसे लोग कोई काम करते भी हैं तो ऊपरी कमाई के लोभ में ही करते हैं। इस तरह के कर्मचारियों को कोई अधिकारी टोक भी दे तो यह लोग उस अधिकारी की फीत उतारने में देरी नहीं करते। ऐसा इसलिए भी होने लगा कि फीत उतारने वाले को अपने उस अधिकारी की कोई कमजोरी ज्ञात होती है-अन्यथा खरे अधिकारी की फीत उतारने की हिम्मत किसी की कम ही होती है।

इस तरह के लोग व्यापारियों में भी मिल जायेंगे जो बड़े पैमाने पर मिलावट करते हैं या राजस्व की चोरी करते हैं। देखा गया है कि इनमें से अधिकतर व्यापारियों के तार किसी न किसी नेता से जुड़े होते हैं। इसी के चलते यह व्यापारी किसी टोकने-बरजने वाले अधिकारियों की नहीं सुनते।

सरकारी आयोजनों के राजनीतीकरण को भी अनैतिक ही कहा जाना चाहिए। अब तो इसे टोकने वालों की कमी ही मानी जाने लगी है कि वे इस तरह के अनैतिक आयोजनों से शालीनता की उम्मीद करते हैं।

खैर! राजनीति करने वालों के लिए अब यह बात लगभग आम ही हो गई है कि वह किसी न किसी तरह के भ्रष्ट और अनैतिक आचरण में लिप्त ही मिलेगा। कई नेता तो अब खिसियाकर यह स्वीकारने में भी देरी नहीं करते कि हम तो काजल की कोठरी में रहते हैं।

कहने का कुल जमा भाव यही है कि नेता यदि खरें हों तो उनमें आत्मबल होगा और आत्मबल होगा तो उनकी मौजूदगी में इस तरह की बदमजगी की हिम्मत शायद ही कोई करे।

विनायक ने अपने एक सम्पादकीय में ओम आचार्य के बहाने से जिक्र किया था कि-आज के कई नेता पहले कभी उनके ऑफिस की सीढिय़ां चढऩे से पूर्व पान थूक कर कुल्ला करते थे-नेताओं का इस तरह का रुतबा अब देखने को कम मिलता है।

—दीपचन्द सांखला

24 जुलाई, 2012

No comments: