Thursday, July 27, 2023

जिम्मेदारियां काफूर– संवेदनाएं शून्य

 नगर विकास न्यास कल घड़सीसर के हनुमान नगर और श्रीगंगानगर रोड पर बीछवाल के निकट प्रस्तावित अपनी एनआरआइ कॉलोनी पर हुए अतिक्रमण भारी पुलिस लवाजमे की मौजूदगी में हटाकर अपनी पीठ थपथपा रहा है। पर एक्सकेवेटर मशीनों के भारी-भरकम पंजों के नीचे ध्वस्त होकर गिर रहे झोंपड़ों, क्रंदन करते बेघर हुए परिवारों, पुलिसवालों के सामने गिड़गिड़ाते स्त्री-पुरुषों और अपनी ही झोंपड़ियां जलाकर अपने ही मजबूरी भरे गुस्से का इजहार करते फटेहाल लोगों के दृश्य इस पूरी कार्रवाई में मानवीय संवेदनाओं के सर्वथा अभाव का जीता-जागता नमूना है। प्रस्तावित एनआरआइ कॉलोनी में न्यास की पहले की कार्रवाई से तैयार बैठे झोंपड़ावासियों ने तो सरकारी अमले के पहुंचते ही बगैर किसी प्रतिरोध के अपना सामान समेटना शुरू कर दिया। पर घड़सीसर में बगैर किसी नोटिस या पूर्वसूचना के सरकारी लवाजमे का पहुंचना हनुमान नगर के बाशिंदों के लिए किसी बिजली के झटके की तरह ही था। उनका मामूली विरोध भारी-भरकम एक्सकेवेटर मशीनों की गूंज के सामने उनके झोंपड़ों की ही तरह तिनके के समान बिखर गया।

सरकारी जमीन पर से कब्जे हटाते समय यही कहानी, ऐसे ही दृश्य वर्षों में दोहराये जाते रहे हैं। गरीब वोट बैंक की हैसियत नहीं रखने वाले ऐसे ही उजड़ते रहे हैं। लेकिन एक बार भी ऐसा उदाहरण सामने नहीं आया कि नगर विकास न्यास अथवा नगर निगमों या पालिका जैसे निकायों में किसी अधिकारी या कर्मचारी से पूछा तक गया हो कि ये अतिक्रमण होने कैसे दिए गए? इसके विपरीत इन निकायों में कब्जों पर अंकुश लगाने के जिम्मेवार लोग ही इस बुराई को बढ़ावा देने का तंत्र चला रहे हैं। भूमाफिया के साथ इनके गठबंधन ने भूमि हथियाने के नये व्यापार की नींवों को सींचा है। कुछ बाशिंदों की इस हिमाकत को फिलहाल नजरंदाज भी कर दिया जाए तो भी सवाल उठता है कि इन निकायों ने शहरों में श्रमशक्ति की मांग पूरी करने के लिए गांवों से पलायन कर पहुंचने वाले गरीब लोगों को बसाने के लिए क्या किया है? अनियमित मिलने वाली मजदूरी, कचरा बीनने और ऐसे ही छुटकर काम कर पेट पालने वाले ये खानाबदोश परिवार क्या एनआरआइ कॉलोनी, शौकत उस्मानी नगर, शिवबाड़ी, मोहता सराय अथवा ऐसी ही विकसित की जा रही कॉलोनियों में तीन सौ, चार सौ या पांच सौ रुपए वर्गफुट की कीमतों वाले भूखण्ड खरीद कर अपनी झोंपड़ियां बनायेंगे? या फिर प्राइवेट कॉलोनाइजर इन्हें बसने के लिए जमीन देंगे? ऐसा नहीं है तो फिर कल दो स्थानों से हटकर बरसात के इस मौसम में खुले आसमान के नीचे जीवन बसर करने के लिए उजाड़ दिए गए भाट, कालबेलियां, कंजर आदि उपेक्षित जातियों के परिवारों को बसाने की जिम्मेदारी किसकी है? क्या वे इसी समाज के अंग नहीं हैं जिनका सुख-सुविधापूर्ण जीवन इन उजड़े लोगों के पसीने के बगैर एक दिन भी चल पाएगा। एक स्थान से उजाड़कर हड़काए गए ये खानाबदोश किसी स्थानीय निकाय या सरकारी भूमि को ही अपना आशियाना बनाने को विवश हैं, अगली बार उजाड़े जाने तक!

अफसोस तो इस बात का है कि वोटों के लिए ऐसी ही बस्तियां बसाने के जिम्मेदार किसी राजनेता को इन बेघर लोगों के आंसू पोंछने की फुर्सत नहीं मिली। शायद ये किसी के वोटबैंक का हिस्सा हों, पर इंसान मानकर भी सरकारी अमले ने इन्हें फिर से बसने का समय तक देना मुनासिब नहीं समझा। कोई ऐसी भूमि ही चिह्नित की गई जहां ये उजड़े लोग स्थायी रूप से तो नहीं, पर कुछ समय तक अपने झोंपड़े डाल दें।

यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी ने पिछले दिनों बाड़मेर में बीपीएल आवास योजना की नींव रखी है। पर कल उजाड़े गए इन लोगों मेंबीपीएलशब्द तक की समझ नहीं है। क्या ऐसे लोगों के स्थायी आवास के लिए कोई योजना बनाना स्थानीय निकायों अथवा सरकार की जिम्मेदारी नहीं है? क्या ऐसा नहीं हो सकता कि अपनी जमीनें खाली करवाकर उन्हें बेचकर मोटा राजस्व अर्जित करने के लालच को एक बार तिलांजलि देकर ये स्थानीय निकाय नि:शुल्क या प्रतीकात्मक मूल्य पर जमीन देकर ऐसे खानाबदोशों को अपनी झोंपड़ियां डालने का पुण्य अर्जित नहीं कर सकते?

दीपचन्द सांखला

08 सितम्बर, 2012


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