Monday, July 24, 2023

सेवा केंद्र के बहाने रामेश्वर डूडी की बात

 जिले के प्रभारी मंत्री हैं हरजीराम बुरड़क। कल उनका आगमन हुआ, अवसर था राजीव गांधी भारत निर्माण सेवा केन्द्र के शिलान्यास का। इन सेवा केन्द्रों के शिलान्यास कल प्रदेश में कई जगह हुए हैं। लेकिन बीकानेर के जिला परिषद में हुए इस कार्यक्रम को कई कारणों से उदबुदा कहा गया। समारोह स्थल पर आगंतुकों के लिए लगी अधिकतर कुर्सियां खाली थीं, वहीं चेपे-चापी के बाद लगाये गये शिलालेख पर जिन नेताओं, जनप्रतिनिधियों के नाम थे वे भी नहीं पहुंचे। कहा जा रहा है कि ऐसा 'राखपत रखायपत' के चलते हुआ यानी जिला प्रमुख रामेश्वर डूडी जैसा दूसरों के साथ रखते हैं वैसा ही दूसरों ने उनके साथ रखा। इस तरह का स्वभाव केवल रामेश्वर डूडी का ही हो, ऐसा नहीं है। आजकल की राजनीति करने वालों में अधिकतर: आत्मविश्वासहीन और घोर स्वार्थी हैं, फर्क मिले तो थोड़ा बहुत डिग्री का भले ही मिले, वह कम ज्यादा हो सकती है। हां, यह बात जरूर है कि इनमें से कुछ जो पॉलिश्ड या चतुर या शातिर हैं वे जल्दी से या सबके सामने 'एक्सपोजÓ नहीं होते। लेकिन समझ से परे की बात तो यह है कि पचीस साल से ज्यादा समय से सक्रिय राजनीति कर रहे रामेश्वर डूडी यह गुण आत्मसात् क्यों नहीं कर पा रहे हैं। खैर इससे आम आवाम का क्या? इसका खमियाजा तो खुद डूडी ही ज्यादा भुगतते हैं-उनके इस स्वभाव के चलते उनके नेताई-धन्धे को बार-बार धचके लगते हैं और उसमें उतार-चढ़ाव आते हैं। अन्यथा डूडी इस समय सूबे के कैबिनेट नहीं तो राज्यमंत्री तो होते ही और मंत्री हो जाते तो बी.डी. कल्ला की तरह मुख्यमंत्री होने की भी सोचते। रही बात आम आवाम की तो यह शासन-प्रशासन और राजनीति आदि सेवा न होकर जब धंधे ही बन गये हैं तो दिखावे को कितनी ही लोककल्याणकारी योजनाएं ले आएं, हश्र उनका वही होना है जो राजीव गांधी कह गए हैं-कि आम आवाम तक पहुंचता रुपये में पंद्रह पैसा ही है। अब इसमें अधिक से अधिक इतना ही हो सकता है कि पंद्रह पैसे ही न पहुंचे-सो ऐसा भी कुछ मदों में तो होता ही है, आये दिन ऐसे समाचार आते ही हैं कि फलाना काम पूरा का पूरा कागजों में ही हो गया-क्रियान्विति से लेकर भुगतान तक। ऐसा होने की आशंका उन परिस्थितियों में ज्यादा रहती है जिनमें विभाग के लिए चुना हुआ मुखिया कार्यालय में महीने में दो-चार बार भी न जाए और न उसे सम्हाले। जिला परिषद की सूचनाएं कुछ ऐसी ही हैं कि जिलाप्रमुख रामेश्वर डूडी का पगफेरा कार्यालय में कम ही होता है।

कल के उस कार्यक्रम में यह भी हुआ कि उपस्थित कुछ प्रधानों ने सरकारी तंत्र की जमकर आलोचना की और खुद जिलाप्रमुख ने भी उनकी राग में राग मिलाया। लेकिन सरकारी तंत्र की इस सम्बन्ध में सफाई यह है कि वह चौदह-पन्द्रह पैसे आम-आवाम तक पहुंचाने की ईमानदारी तो बरतते हैं, इन जनप्रतिनिधियों में कुछ तो ऐसे हैं कि मुंह पूंछ कर डकार भी नहीं लेना चाहते। बचाव इतना ही है कि इस सरकारी तंत्र और राजनीति तंत्र की जुगलबंदी में पंद्रह प्रतिशत का यह बेसुरापन जब तक कायम है तब तक पन्द्रह पैसा तो आम-आवाम तक पहुंच ही रहा है!

—दीपचन्द सांखला

6 अगस्त, 2012

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