Thursday, July 27, 2023

ये मेले : ये दुर्घटनाएं

 शहर के लिए बुरी खबर यह है कि आज तड़के रामदेवरा जातरुओं की मार्ग सेवा के लिए जाने वाला एक ट्रक मालगाड़ी से टकरा गया। गजनेर के चानी गांव के पास मानव रहित रेलवे फाटक की यह घटना बताई जा रही है। सम्पादकीय लिखे जाने तक : मोतों की पुष्टी हुई है और पन्द्रह घायलों में सात को गम्भीर हालात में बीकानेर के पीबीएम में लाया गया है। घटना स्थल पर पहुंची रेलवे की एम्बुलेंस को गुस्साए लोगों ने आग लगा दी। ऐसी स्थिति में होना यह चाहिए था कि घायलों को एम्बुलेंस से अस्पताल पहुंचाया जाता। लेकिन यह घटना इस बात का बड़ा उदाहरण है कि एक विवेकहीन की अगुवाई पूरे समूह की अकल निकाल कर किस तरह उसे भीड़ में बदल देती है।

आजादी बाद के पिछले 65 वर्षों में भ्रष्टाचार में उत्तरोत्तर डूबती हमारी व्यवस्था की यह विडम्बना ही है कि आज भी सैकड़ों रेलवे क्रॉसिंग मानव रहित हैं और आये दिन उन पर दुर्घटनाएं होती रहती हैं-लेकिन क्या रेलवे को या व्यवस्था मात्र को भुण्डाने से काम चल जायेगा। क्या ऐसे रेलवे क्रॉसिंगों से गुजरने वालों की यह जिम्मेदारी नहीं बनती है कि उसे क्रोस करने से पहले केवल एक-दो मिनट रुक कर यह पुख्तगी करलें कि रेलगाड़ी तो नहीं रही है। तड़के की घटना ट्रक ड्राइवर की लापरवाही का नतीजा था जिससे पता नहीं कितने घरों में आग लगी होगी।

पिछले एक अर्से से यह मेले श्रद्धा के कम और मौज-शोक के हेतु ज्यादा होते जा रहे हैं। पिछले वर्ष हमने इस पर विस्तार से बात की थी। उसे दोहराना उचित नहीं होगा लेकिन इतना तो कह ही सकते हैं कि इन मेलों में बढ़ती अनाप-शनाप भीड़ श्रद्धा से कम मौज शौक के मकसद के चलते ज्यादा होने लगी है। और जरूरत से ज्यादा होने लगी ये मार्ग सेवाएं इस तरह के श्रद्धाहीन लोगों को बढ़ावा भी देती है।

समाज को इस पर गम्भीरता से विचार करना चाहिए कि भादवे के इन मेलों के पदयात्रियों के लिए होने वाली मार्ग सेवा पूरी तरह बन्द करके-इस धन को किसी सार्थक कामों में लगाया जाय। विशुद्ध रूप से यह केवल गोधों को खेत खिलाने जैसा है बल्कि ऐसा करके हम प्रकारान्तर से श्रद्धा और भक्ति पर चोट भी कर रहे होते हैं। एक उपाय यह हो सकता है कि इस तरह के सेवासंघों के अगुवाओं को हतोत्साहित किया जाय। दूसरा उन्हें किसी तरह का सहयोग करें। और भी तरीके खोजे जा सकते हैं। जो व्यक्ति यह पदयात्रा सचमुच की श्रद्धा और भक्ति भाव से करता है वह हैसियत के अनुसार अपनी मार्ग व्यवस्था खुद करेगा तभी उनकी यात्रा फलीभूत होगी। अन्यथा सभी जानते हैं और कहते भी हैं कि इन मेलों के रास्तों में दुर्घटनाओं के अलावा वो सबकुछ भी होता है जो कम से कम रामदेव बाबा, पूनरासर बाबा आदि के नाम से तो हरगिज नहीं होना चाहिए। समाज इस तरह से भी विचार करने की जरूरत समझेगा कि यह सब यों ही चलता रहा तो केवल यह मेले अपना मकसद खो देंगे बल्कि हो सकता है यह देवता भी अपना करण्ट दिखाना बंद कर दे।

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दीपचन्द सांखला

17 सितम्बर, 2012


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