Friday, July 21, 2023

श्रीकोलायत तहसील दफ्तर के बहाने

 श्रीकोलायत तहसील के हवाले से खबर है कि वहां के तहसीलदार के यहां काम से आया व्यक्ति अपने प्रार्थनापत्र की रसीद चाह रहा था। प्रार्थी की मंशा थी कि रसीद मिलने पर अधिकारी लोक सेवा गारंटी कानून से पाबंद होंगे और उसका काम तय समय सीमा में हो जायेगा। इसी मुद्दे को लेकर दोनों के बीच कुछ सवाल-जवाब हुए और तहसीलदार आवेश में आ गये। न केवल आवेश में आए बल्कि वह अपनी सीट से उठ कर उस प्रार्थी को थप्पड़ मारने को उतारू हो गये। क्योंकि इन अधिकारियों के आगे अधिकतर प्रार्थी गिड़गिड़ाते रहते हैं-इससे इन्हें यह वहम हो गया कि वे ही माई-बाप हैं। जबकि असल में वे लोकसेवक हैं। उन्हें तनख्वाह इसी बात की मिलती है और यह भी कि आम आदमी विभिन्न तरीकों से जो राजस्व चुकाता है, यह तनख्वाह उसी में से दी जाती है।

दफ्तरों के सामान्य कायदे और आला अफसर पर भरोसे के चलते यह प्रक्रिया रही है कि अधिकारी को दिये जाने वाले दस्तावेजों की रसीद नहीं दी जाती है। यदि आपको रसीद चाहिए तो दफ्तर के जिस कर्मचारी के पास डाक का जिम्मा है उसे प्रार्थनापत्र या दस्तावेज देकर रसीद ले सकते हैं। अधिकारी द्वारा रसीद न देना या अधिकारी से रसीद न मांगना मोटा-मोट दफ्तर के मुखिया पर यह भरोसा जताना भर है कि नीचे कहीं गड़बड़ हो सकती है या होगी तो वह आला अधिकारी न्याय करेगा! स्थितियां खराब इसलिए होने लगी हैं कि अधिकतर अफसर भी भरोसे लायक नहीं रहे हैं। श्रीकोलायत तहसील कार्यालय की उक्त घटना बताती है कि अब दफ्तर के मुखिया पर से भी भरोसा उठता जा रहा है।

भ्रष्टाचार की जड़ें इतनी गहरी हो गई हैं कि किसी को किसी पर भरोसा रहा ही नहीं! दफ्तरों में यदि लेन-देन का प्रतिशत और अधिकारियों-कर्मचारियों का हिस्सा-पांती तय है और काम करवाने वाला इसका निर्वहन करता है तब तो सब काम 'स्मूथलीÓ होते चले जायेंगे। लेकिन कई कार्यालय ऐसे हैं जहां 'अकेले जीमने की नीयत के चलतेÓ इस तरह की आपसी 'सेटिंगÓ नहीं है, वहां शामत प्रार्थीगण की आती है।

इस सबके बीच सरकार ने लोक सेवा गारंटी कानून लागू तो कर दिया-लेकिन ऊपर बताये बंधे-बंधाए दफ्तरी ढर्रे को तोडऩा मुश्किल जरूर लगता है, लेकिन मुश्किल है नहीं। सरकारी दफ्तरों से जिनका काम पड़ता है वे सभी लोग श्रीकोलायत के काश्तकार राजकुमार की तरह लोक सेवा गारंटी कानून के साथ सज के और बिना लिए-दिये काम करवाने की मंशा से जायें तो दफ्तरों की फिजा बदलते देर नहीं लगेगी-बशर्ते आपका काम खरा हो।

इन दफ्तरों में लेना-देना उन्होंने ही शुरू किया है जिनके काम में कोई न कोई कमी होती है। इस तरह के लोग होते कम ही हैं-लेकिन ले-देकर खोटा-खरा करवाने की उनकी फितरत ने दफ्तरों और दफ्तरियों की आदतों को खराब कर दिया है। इसके चलते वे अधिकतर लोग जिनका काम सही भी होता है तो भी यह दफ्तरी अधिकारी-कर्मचारी उसे बिना लिए इसलिए नहीं करते हैं कि उन्होंने कुछ लेकर ही काम करने की आदत बना ली है।

कुछ ले-देकर काम करवाने के हिमायती ज्यादातर वे लोग ही होते हैं जिन्हें हक से ज्यादा पाने-कमाने की आदत पड़ जाती है। इस बुरी आदत का खमियाजा उस आम-आवाम को उठाना होता है जो आबादी का बड़ा हिस्सा है और जिनका साबका इन दफ्तरों से कभी-कभार ही पड़ता है। सूचना का अधिकार कानून और लोकसेवा गारंटी योजना आम आवाम के हाथ ऐसा अस्त्र है जिनका उपयोग करने की शुरुआत भर से भ्रष्टाचारी कांपने लगता है-बशर्ते आपका काम और आपकी नीयत दोनों सही हो।

—दीपचन्द सांखला

25 जुलाई, 2012

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