Monday, July 17, 2023

शिक्षा और शिक्षण संस्थान

 शिक्षण संस्थानों में दाखिले का मौसम है। चाहे नर्सरी, प्रि-नर्सरी, केजी हो या मिडिल, सैकण्डरी, सीनियर सैकण्डरी तथा कॉलेजों और कोचिंग इन्स्टीट्यूट के दाखिले हों। विचारणीय यह भी कि क्या हम इन कोचिंग इन्स्टीट्यूट को शिक्षण संस्थानों की श्रेणी में गिनेंगे? सभी संस्थान अपनी-अपनी हैसियत के अनुसार थड़ी, दुकान, डिपार्टमेन्टल स्टोर बने हुए हैं। मीडिया की बहार है, खूब विज्ञापन मिल रहे हैं। कह सकते हैं कि समर्थ मीडिया की इस समय पांचों घी में हैं।

विज्ञापनों में देखें तो अधिकांशत: ऐसे संस्थान का विशेष कोण से खींचा हुआ भवन का ऐसा फोटो लगा होगा कि लगे कि संस्थान नालन्दा, तक्षशिला से कम नहीं है। अगर उस फोटो से प्रभावित होकर संस्थान परिसर में पहुंच गये तो ज्यादातर निराशा ही हाथ लगती है। पाठकों से अनुरोध है कि इन संस्थानों का ऐसा कोई विज्ञापन ध्यान में आये (कुछ कोचिंग इन्स्टीट्यूट को छोड़ दें) जिसमें उस संस्थान की फैकल्टी में किसी प्रतिभा संपन्न अध्यापक-अध्यापिका, प्राध्यापक-प्राध्यापिका और आचार्य-आचार्या का उल्लेख हो तो जरूर अवगत करवायें-आभारी होंगे।

इन अधिकतर संस्थानों में जो पढ़ाने वाले हैं उनकी निजी और पारिवारिक जिन्दगी विचारणीय ही मिलेगी-बहुत कम तनख्वाह में बहुत ज्यादा समय तक काम, ऊपर से जब चाहे डांट-डपट। बोनस यह कि तनख्वाह में प्राप्त राशि से ज्यादा राशि के वाउचर पर हस्ताक्षर। इस तरह की अवमानना के बाद भी क्या अभिभावक यह उम्मीद करते हैं कि उनके बच्चों को अध्यापक पूर्णनिष्ठा और कर्तव्य समझ कर पढ़ायेंगे। चाहे भवन कितना भी अच्छा क्यों न बना हुआ हो-वातानुकूलित हो या एयरकूल, डिजिटल तकनीक से सज्जित हो या फिर नेटवर्किंग से जुड़ा हुआ।

लगता है सभी अभिभावक अपने बच्चों को घुड़दौड़ में शामिल करवा कर खुश हैं। इस दौड़ में शामिल बच्चों में से शायद ही किसी को आपने खुश देखा हो-न पढ़ते हुए और न पढऩे के बाद जॉब करते हुए ही। हां, पैसा कमाने की मशीन वे जरूर बन जाते हैं-तब भी वे अपने पैकेज से कभी संतुष्ट नहीं देखे जाते-हमेशा उनकी टकटकी हासिल पैकेज से ऊपर के पैकेज पर लगी देखी है।

ऊपर से शिकवा यह कि हमारे देश की किसी प्रतिभा को नोबेल क्यों नहीं मिलता है। हममें से ऐसे कितने'क होंगे जिनकी और जिनके बच्चों की यह इच्छा थी या होगी कि वे-वैज्ञानिक-विज्ञानी बनें, दार्शनिक बनें, शिक्षाविद्, इतिहासकार बनें, राजनीतिविज्ञ बनें, विधिवेत्ता बनें या पंडित बनें। लगभग सभी बच्चे डॉक्टर, इंजीनियर, वकील, सीए, सीएस आर्कीटेक्ट, फैशन डिजाइनर, विशिष्ट प्रबंधक या होटल प्रबंधक आदि-आदि तो बनना चाहते हैं पर विषय विशेषज्ञ बनने की आकांक्षा हमारे देश में देखी ही नहीं जाती है। विदेशी विषय विशेषज्ञों के किये को करते रहना और उससे धन अर्जित करना भर रह गया है हमारा काम!

—दीपचन्द सांखला

12 जून, 2012

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