Monday, July 17, 2023

पत्रकारों का आंदोलन

 पिछले तीन दिन से बीकानेर के पत्रकार बन्धु आन्दोलित और उद्वेलित हैं। कारण यह कि नगर विकास न्यास द्वारा अशोक नगर में पत्रकारों को आवंटित भूखंडों के समतलीकरण और अन्य समस्याओं को लेकर लम्बे समय से उनकी सुनी नहीं जा रही है और जब पत्रकारों को लगने लगा कि केवल कहने भर से पार नहीं पड़ रही है तो वे अम्बेडकर भवन पहुंच गये जहां अन्य भूखण्डों की नीलामी घोषित थी। वहां उपस्थित सक्षम अधिकारी से उनकी कहा-सुनी हुई और आवेश में उन अधिकारी ने पत्रकारों को अपशब्द  कह दिये।

आप यह अन्दाजा लगा सकते हैं कि जब पत्रकारों के साथ ऐसा हो सकता है तो आम आदमी के साथ क्या-क्या होता होगा! न्यास और निगम ऐसे कार्यालय हैं जिनसे रोज सैकड़ों लोगों का वास्ता पड़ता है-आम आदमी के साथ वहां के अधिकारी-कर्मचारी अधिकतर सामन्ती या लापरवाह तरीके से पेश आते हैं-छोटे-मोटे काम के लिए भी रुतबा, सिफारिश, मेल-मुलाकात आदि-आदि की जरूरत रहती है। किसी के पास इनमें से कुछ भी नहीं है तो उसका काम तो फिर हुआ ही समझो! यह सब आये दिन इन दफ्तरों में होता है-खबरें कभी नहीं बनती-खबरें तभी बनती है जब किसी पत्रकार का खुद का या उसका कोई सम्बन्धित इससे प्रभावित होता है। लोकतंत्र के चौथे खम्भे कहलाए जाने वाले मीडिया के हम कर्णधारों ने यह मान लिया है कि यह सब ऐसे ही चलेगा। इन पब्लिक डीलिंग के दफ्तरों ने भी एक युक्ति पकड़ ली है कि इन पत्रकारों, कुछ नेताओं और दबंगों के काम सहते-सहते कर दो, इन सबको मैनेज कर लो और उसके एवज में बाकी सभी छूटें ले लो। अन्यथा आम-आदमी की इन दफ्तरों में आये दिन होने वाली परेशानियों को हम आवाज दें तो ऐसा नहीं है कि इनकी कार्यप्रणाली में सुधार नहीं हो सकता-होगा ही। लेकिन पता नहीं क्यों इसे हम अपनी जिम्मेदारी नहीं मानते! अस्पताल भी ऐसा ही महकमा है जहां आम-आदमी को रोजाना परेशान और अपमानित होना पड़ता है। इन सभी जगह काम करने वाले लोग किन्हीं दूसरे देशों और ग्रहों से नहीं आये, अपने समाज के ही अंग हैं। लेकिन वे किस तरह व्यवहार करते हैं-इसका नमूना पत्रकारों ने जब देखा-भुगता तब तो फटाक से उद्वेलित हो लिए। पत्रकारों को न केवल मैनेज न होने की ठाननी होगी बल्कि छोटे-मोटे दबावों से अपने को मुक्त भी करना होगा, और आत्मावलोकन भी करना होगा कि उस अधिकारी ने हमें अपशब्द कहने का अवसर कैसे निकाल लिया।

इस वाकिये के लिए जिम्मेदार अधिकारियों को न केवल प्रभावित पत्रकारों से माफी मांगनी चाहिए बल्कि उन्हें सार्वजनिक रूप से यह संकल्प भी लेना चाहिए कि केवल रसूख वालों के ही नहीं वरन् प्रत्येक आम-आवाम के साथ सम्मान से पेश आयेंगे और उनका काम भी तत्परता से करेंगे।

—दीपचन्द सांखला

9 जून, 2012

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