Friday, July 21, 2023

मंडी व्यापारियों का भ्रम दूर हो

 पूगल रोड स्थित ऊन मण्डी के गंगानगर रोड स्थित अनाज मण्डी में विलय की अधिसूचना के बाद एक माह पहले ऊन मण्डी की 80 हेक्टेयर भूमि और सम्पत्तियां अनाज मण्डी को हस्तांतरित तो हो गई लेकिन विलय की प्रक्रिया को लेकर अनाज मण्डी के व्यापारी अभी भी सवाल खड़े कर रहे हैं। बीकानेर कच्ची आढ़त व्यापार संघ ने तो इस बारे में ज्ञापन भी मण्डी प्रशासन और राज्य सरकार को भेजे हैं। सबसे बड़ी आपत्ति ऊन के साथ अनाज का व्यापार शुरू करने की इजाजत देने पर है। व्यापारियों का कहना है कि एक तरफ फूड ऐक्ट लागू किया जा रहा है और दूसरी तरफ ऊन की खुली ढेरी के साथ अनाज की खुली ढेरी करवाना आमजन के स्वास्थ्य से खिलवाड़ ही होगा।

एक मुद्दा यह भी उठाया जा रहा है कि जहां वर्षों से ऊन का कारोबार हो रहा है उसी परिसर में इसे जारी रखा जाए और खाली पड़े स्थान को अनाज व्यापारियों को दिया जाए ताकि दोनों तरह की जिन्सों में संभावित घालमेल से जन स्वास्थ्य के साथ खिलवाड़ नहीं हो। इसके साथ ही ऊन मण्डी के खाली क्षेत्र में दुकानों के भूखण्ड का आकार 20×40 फीट रखने की बात भी कही जा रही है ताकि सभी व्यापारियों को आसानी से भूखण्ड मिल सकें। इसके साथ ही डीएलसी दर के वर्षों से लटके मामले को लेकर भी अनाज मंडी के व्यापारियों में असंतोष है।

ऊन मंडी के अनाज मंडी में विलय के बाद पहली बार आज कृषि उपज मंडी समिति की बैठक हो रही है। इस बैठक से पहले ही कच्ची आढ़त व्यापार संघ ने मंडी प्रशासन को सौंपे अपने ज्ञापनों के माध्यम से एक तरह से बैठक का एजेण्डा तय कर दिया है। उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बैठक के जरिये व्यापारियों के मन में दोनों मंडियों के विलय से उत्पन्न भ्रम को दूर करने के साथ ही मंडी विकास के लिए उठाए गए मुद्दों पर भी सार्थक चिंतन किया जाकर सर्वजन हिताय निर्णय लिए जाएंगे।

विद्युत मण्डल विघटन

बारह साल पहले राज्य विद्युत मण्डल का विघटन कर इसे पांच निगमों में विभाजित करने की वर्षगांठ को कल जोधपुर विद्युत वितरण निगम लि. के कर्मचारी व मजदूर संघ ने काले दिवस के रूप में मनाया और विरोध प्रदर्शन किया। कर्मचारी नेताओं का यह आरोप तो ठीक ही लगता है कि विघटन के समय जो उम्मीदें बंधाई गई थी, उनके विपरीत मण्डल के समय का घाटा कम होने के स्थान पर बढ़ता जा रहा है। पांच-पांच निगम बनने से अधिकारियों की फौज भी बढ़ी है और भर्ती पर अंकुश के कारण रख-रखाव जैसे कार्य स्टाफ की कमी के कारण प्रभावित हो रहे हैं। नीचे के स्तर के कर्मचारियों व अभियंताओं को आए दिन जनता के असंतोष का सामना करना पड़ रहा है। बिजली के प्रेषण और वितरण में होने वाला घाटा भी जहां का तहां खड़ा है। ऊपर से आवश्यकता के अनुरूप उत्पादन नहीं होने से बिजली कटौती ने अब स्थायी रूप ले लिया है। कर्मचारियों के अपने हित हो सकते हैं लेकिन उनके उठाए मुद्दों पर दो राय नहीं है। यह ऐसा अवसर है कि विद्युत मण्डल के विघटन से बने निगमों की कार्यप्रणाली पर नए सिरे से विचार किया जाना चाहिए ताकि बिजली के उत्पादन और आपूर्ति के अंतर को पाटा जा सके तथा बिजली की हानि को न्यूनतम स्तर तक लाया जा सके।

—दीपचन्द सांखला

20 जुलाई, 2012

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