Monday, July 24, 2023

सिद्धिकुमारी की गुमशुदगी

 परसों सोमवार को कुछ भाजपाई पार्षद बीकानेर महापौर भवानीशंकर शर्मा की गुमशुदगी की रिपोर्ट लिखवाने एसपी के पास पहुंचे थे। उसी घटना काउण्टर करने के लिए कल कुछ कांग्रेसी पार्षद  बीकानेर पूर्व की विधायक सिद्धिकुमारी की गुमशुदगी रिपोर्ट लिखवाने सदर थाने पहुंच गये। जो भाजपाई पार्षद एसपी के पास महापौर की गुमशुदगी दर्ज करवाने गये उनका और जो कांग्रेसी पार्षद सदर थाने गये उनका भी मकसद केवल सुर्खी बटोरना ही था। पार्षद हैं तो उन्हें इतना तो पता ही होगा कि इस तरह की रिपोर्टें किस तरह और किन परिस्थितियों में दर्ज होती हैं। दरअसल यह एक मजाक है जो कहने को तो महापौर या विधायक के साथ किया दिखाई देता है लेकिन यह मजाक-बहुत ही भद्दा मजाक है उन वोटरों के साथ, जिन्होंने इन सबको वोट किया है। अधिकतर पार्षदों की क्या छवि है उससे आम मतदाता तो वाकिफ कम होगा। लेकिन जो शहर से प्यार करते हैं या शहर में रुचि रखते हैं या जो बातेरी हैं या हलर-फलरियें है, ऐसे सभी को पार्षदों के असल की वाकफियत है। अन्तर इतना ही है कि इन जानकारों में से कुछ चिन्ता करके रह जाते हैं तो कुछ चटखारा लेकर। कुछेक ऐसे भी होते हैं जो ऐसा मौका खुद को न मिलने से कुढ़ते भी रहते हैं।

बात वापस गुमशुदगी पर ले आते हैं। अपने महापौर तो लगभग शहर में ही रहते और सुलभ भी हैं। लेकिन वह शहर के प्रथम नागरिक की भूमिका में ज्यादा नजर आते हैं, महापौर की भूमिका में कम। उम्मीद उनसे यही की जा सकती है कि प्रथम नागरिक तो वे वैसे ही रहेंगे, कुछ महापौरी करके भी दिखाएं जिसकी जरूरत उनके मतदाताओं को भी है और इस शहर को भी।

सिद्धिकुमारी कहने को सूबे में आधे शहर की नुमाइंदगी करती हैं। कहा यह भी जा सकता है कि उन्हें इस सिलसिले में सूबे की राजधानी जयपुर भी रहना होता है, लेकिन उन्हें यह देखना होगा कि उनके मतदाता तो यहां रहते हैं, इन मतदाताओं को उनसे कई काम हो सकते हैं। एक लोकतांत्रिक व्यवस्था में वोटरों को यह जानने का हक है कि पिछले तीन साल में उनका विधायक अपने क्षेत्र में कितना रहा और राजधानी में कितना? विधायक का जवाब यह हो सकता है कि उनकी निजी जिन्दगी भी कुछ होती है-उनके इस जवाब से कोई दो राय नहीं हो सकती। लेकिन जिन्होंने सार्वजनिक जीवन को अपना लिया है, उसके बाद इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि यह जीवन-शैली उन्होंने प्रोफेशन के रूप में अपनाई है या सेवा के रूप में। सार्वजनिक जीवन शैली अपनाने के बाद जीवन के उन थोड़े से अंतरंग और पारिवारिक समय को छोड़कर शेष समय आम-आवाम का हिस्सा हो जाता है। इसे अगर इस तरह जो नहीं समझ जाता है, उसे जनता देर-सबेर बाहर भी कर देती है।

सिद्धिकुमारी यहां होती भी हैं तो कहा जाता है कि उनके निवास पर उनसे मिलना आसान नहीं है-मतदाता का वेदनापत्र उनका कोई सहायक ले लेता है। विधायक जरूरी समझती हैं तो उस 'बेचारे-भाग्यशाली' मतदाता को पुन: बुला लिया जाता है। हां, सिद्धीकुमारी कभी-कभार जरूर अपनी गाड़ी रुकवा कर-किसी घर को खटखटाकर दु:ख-सुख पूछ लेती हैं, लेकिन यह है सामंती स्वांग ही। उन्हें अपने इस प्रोफेशन की लम्बी पारी खेलनी है तो इस लोकतंत्र में यह स्वांग कितने दिन चलेंगे यह सिद्धिकुमारी को जरूर समझ लेना चाहिए।

—दीपचन्द सांखला

8 अगस्त, 2012

No comments: