Monday, July 24, 2023

सड़क हादसे कम कैसे हों

 सड़क हादसों की संख्या निरंतर बढ़ती ही जा रही है। इसके साथ ही इनमें मरने वालों अथवा घायल होकर जीवनभर के लिए अपाहिज होने वालों का आंकड़ा भी बढ़ता जा रहा है। शनिवार को जयमलसर क्षेत्र में ट्रोले की टक्कर से बीकानेर के दो युवकों को जान से हाथ धोना पड़ा। आमतौर पर आबादी क्षेत्र में ऐसे हादसे का शिकार यदि कोई स्थानीय व्यक्ति होता है तो कुछ समय के लिए वहां के बाशिंदे रास्ता रोक कर विरोध जताते हैं, स्पीड ब्रेकर बनाने जैसी मांग रखते हैं और थोड़ी समझाइश के बाद जाम खत्म। भीड़ भी यह हादसा भुला देती है और प्रशासन भी राहत की सांस लेकर रोजमर्रा की दिनचर्या में व्यस्त हो जाता है। हादसों में किसी के बुढ़ापे का इकलौता आसरा छिन जाता है तो किसी परिवार की रोजी-रोटी का साधन ही खत्म हो जाता है। कहीं पूरा का पूरा परिवार ही इन हादसों में 'अकाल मृत्यु' का शिकार हो जाता है। हम रस्म अदायगी के बाद फिर अपने-अपने कामों में जुट जाते हैं, आगे नया हादसा होने तक।

लगातार बढ़ रहे इन हादसों के कारणों की पड़ताल करने और फिर कारणों का निराकरण करने की दिशा में सोचने की फुर्सत न तो शासन-प्रशासन को है और न उन लोगों को जो, मामूली झगड़ों को लेकर जातिय आधारों, राजनीतिक कारणों अथवा अन्य किसी स्वार्थ के चलते इतने उद्वेलित हो जाते हैं कि कानून और व्यवस्था से खिलवाड़ करने से भी नहीं चूकते। इसी संवेदनहीनता का नतीजा है कि नित्य ही किसी की आंखों का तारा बिछड़ जाता है तो कहीं बड़े-बूढ़ों को कांधा देने वाला तक नहीं रहता। तेज प्रतिक्रिया हुई तो ज्यादा से ज्यादा मृतक के परिजनों को अधिकाधिक मुआवजे की मांग कर इतिश्री कर ली जाती है।

इन हादसों के लिए जिम्मेदारों पुलिस प्रशासन, परिवहन विभाग, नगर निगम व नगर विकास न्यास जैसे स्थानीय निकाय और सड़क निर्माण सहित अनेक सरकारी विभाग तो शामिल हैं ही, गैर-जिम्मेदार वाहन चालक के रूप में हम स्वयं भी कम दोषी नहीं हैं। पुलिस प्रशासन को दुपहिया वाहनों की चैकिंग अथवा  शहर के चौराहों पर जांच के नाम पर वसूली से ही फुर्सत नहीं है। यही हाल परिवहन विभाग का भी है। यातायात नियमों की पालना करवाना, ओवर लोडिंग पर अंकुश, फिटनेस की जांच, नशे में वाहन चलाने वालों पर सख्ती, गैर यात्री वाहनों में अंधाधुंध सवारियां बैठाना, गति सीमा की अवहेलना, राजमार्गों अथवा ज्यादा व्यस्त मार्गों पर यत्र-तत्र वाहनों की पार्किंग जैसे मुद्दों पर विशेष अभियानों को छोड़ दें तो कभी कोई कार्रवाई होती दिखाई नहीं देती। यही हाल स्थानीय निकायों का है। सड़कों पर सीवर अथवा नालों के मैनहॉल खुले पड़े रहते हैं तो रात के समय रोशनी की व्यवस्था चरमराई रहती है। कहीं सड़कों पर गड्ढ़े महीनों तक बने ही रहते हैं तो कहीं सड़क ही अधूरी छोड़ दी जाती हैं। कहीं सड़कों के किनारे पटड़े बनाये ही नहीं जाते तो कहीं तीखे मोड़ दुरुस्त करने पर ध्यान ही नहीं दिया जाता। रोड साइन कहीं लगाये भी जाते हैं तो इनका मतलब नहीं समझने वाले वाहन चालकों को भी लाइसेंस जारी कर दिये जाते हैं। कारणों की फेहरिस्त काफी लम्बी है। पर हमारे जागरूक हुए बगैर इनका निराकरण संभव नहीं है। जरूरत तो इस बात की है कि ऐसे प्रत्येक हादसे के बाद उसका विश्लेषण कर अनुकूल कदम उठाने के लिए हमें शासन-प्रशासन पर दबाव बनाना होगा। साथ ही हादसों के प्रति आम लोगों में जागरूकता पैदा करनी होगी। तभी सड़क दुर्घटनाओं में होने वाली अकाल मौतों का सिलसिला कुछ कम से सकता है। 

—दीपचन्द सांखला

20 अगस्त, 2012

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