Monday, July 24, 2023

वैभव विधानसभा में बरास्ता बीकानेर

 कोई बंगाली इस शीर्षक को उच्चरित करेगा तो यह आनुप्रासिक वाक्य बन जायेगा। 'बैभव बिधानसभा में बरास्ता बीकानेर' क्योंकि बांग्ला भाषा में 'व' नहीं होता। वे 'व' को 'ब' ही उच्चरित करते हैं। वाह...बैठे तो हम राजनीति की क्लास में हैं और बात भाषा की करने लगे। खैर-वैभव गहलोत सूबे के मुख्यमंत्री के पुत्र हैं-पिता के दुबारा मुख्यमंत्री बनने के बाद से वे राजनीति में जोर आजमाने की जुगत में हैं-हमारे यहां कहावत भी है कि 'उन्दरे रा जायेड़ा बिल ही खोद सी' चाहे इससे लोकतन्त्र पर सामन्ती बट्टा ही क्यूं न लगता हो। वैभव पिछले तीन वर्षों से राजनीति के सभी दस्तूर पूरे करने में लगे हैं जो जरूरी भी हैं-जैसे आरसीए (राजस्थान क्रिकेट एसोसिएशन) की सदस्यता और पीसीसी (प्रदेश कांग्रेस कमेटी) की सदस्यता आदि-आदि।

लेकिन राजनीति का असल संस्कार तो चुनावी अनुष्ठान में ही होता है-इसलिए अगले वर्ष होने वाले विधानसभा चुनावों के लिए बनने वाली दो सौ कांग्रेसी उम्मीदवारों की सूची में वैभव को भी होना है। अत: सुरक्षित और अनुकूल सीट की तलाश जारी है। हो सकता है इनमें बीकानेर की पूर्व और पश्चिम, दोनों ही विधानसभा सीटें निशाने पर हों। शायद इसीलिए पिछले एक अरसे में वैभव एकाधिक गोपनीय-अगोपनीय यात्राएं बीकानेर की कर चुके हैं। यह भी हो कि तय तो वे बीकानेर को कर चुके हैं लेकिन पूर्व और पश्चिम में से कौन-सी सीट होगी, शायद यह निर्णय वे जातिय जनगणना के नतीजों के बाद करें।

बीकानेर विधानसभा की पूर्व सीट यदि तय होती है तो उसमें कोई पेंच नहीं-शायद तनवीर मालावत को चुनावी राजनीति से छुटकारा बलिदान के इस बहाने मिले। मालावत को इससे बेहतर अवसर मिलना भी नहीं है। रही बात जीतने की तो यह मुकाबला दो वंशजों के बीच होना है और यदि वैभव के साथ जनार्दन कल्ला जैसे चुनावी प्रबंधक हों तो यह खास मुश्किल भी नहीं होगा-क्योंकि चुनाव तो कहीं भी जाकर लड़ा जा सकता है पर चुनाव प्रबंधक आयात नहीं किया जा सकता। जनार्दन कल्ला इस उम्र में भी यह क्षमता रखते हैं कि वे धार लें तो बीकानेर की दोनों सीटों का प्रबन्धन बखूबी कर सकते हैं। बीकानेर की चुनावी नब्ज पहचाने वाले यह भी कहते हैं कि डॉ. बीडी कल्ला ऊपर चाहे कुछ भी 'मैनेज' कर लें-चुनावी बिसात पर वे बिना 'भाईसा' जनार्दन कल्ला के लगभग पचीस प्रतिशत ही ठहरते हैं।

रही बात बीकानेर पश्चिम की तो वैभव की ऐसी मंशा यदि मार्च के बाद बनी है तब कुछ कह नहीं सकते और यदि कुछ पहले से थी तो गहलोत को गोटियां इस तरह बिठानी चाहिए थीं कि मार्च में हुए चुनावों में बीडी कल्ला को राज्यसभा में भेज देते। क्योंकि अगले विधानसभा चुनाव से पहले राज्यसभा के चुनाव राज्य में अब होने नहीं हैं। चुनावी बाथेड़ों से ऊब चुके कल्ला तब इसके लिए पुरजोर प्रयासरत भी थे। अन्यथा इस पश्चिमी सीट पर कल्ला की दावेदारी को नजरंदाज करना स्वयं गहलोत के लिए मुश्किल होगा-कल्ला अपने को ऐसी हैसियत में तो ले ही आए हैं। और इसकी उम्मीद भी कम ही है कि भविष्य के आश्वासनों के भरोसे कल्ला यह सीट छोड़ दें।

कल्ला बंधुओं ने अपनी बिसात सजानी शुरू कर दी है। कई छुटभैयों के साथ उन्होंने रामेश्वर डूडी को भी राजी कर लिया है। ईद के अवसर पर कल्ला और डूडी द्वारा बचकाने अंदाज में खिंचवाएं फोटो इसके गवाह हैं। हालांकि इस राजीनामे में फायदा केवल कल्ला को ही होना है! डूडी इन बन्धुओं के दिये किस मुगालते में आ गये, इसका पता चलना बाकी है।

—दीपचन्द सांखला

22 अगस्त, 2012

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