Thursday, October 27, 2022

बीकानेर : स्थापना से आजादी तक-25

 इसके बाद इस फटे में पैबन्द लगाने की सादुलसिंह ने कोशिशें बहुत कीं। लम्बे समय से लम्बित उत्तरदायी शासन की स्थापना के लिए नया संविधान लागू किया। लेकिन विधानसभा का गठन ऐसी चतुराई से किया कि जैसा वे चाहें वैसा ही हो। मताधिकार को सीमित करने के बावजूद विधानसभा में मनोनीत लोगों का बहुमत रखा। कथित प्रजा परिषद् के चौ. हरदत्तसिंह को प्रधानमंत्री के साथ गृहमंत्री, चौ. कुम्भाराम को राजस्व मंत्री, गौरीशंकर आचार्य को शिक्षामंत्री और सरदार मस्तानसिंह को स्वायत्त शासन मंत्री बनाया। नये बने मंत्रियों ने रीजनल कौसिल के प्रस्ताव के विरुद्ध और देशहित के खिलाफ बीकानेर राज्य को अलग इकाई की शर्त मान कर मंत्री पद, कार, बंगले हासिल कर लिये। इस सब के बावजूद विधानसभा और सरकार का गठन जिस तरह किया गया, उसकी साख टके भी नहीं बन पायी।

इस कथित प्रजा परिषद् ने जो बीकानेर राज्य से समझौता किया उसे प्रांतीय और केन्द्रीय नेताओं ने स्वीकार नहीं किया। इस समझौते के विरोध में बीकानेर में सभाएं-आन्दोलन हुए, जिनमें सर्वाधिक सक्रिय लोगों में रघुवरदयाल गोईल, गंगादास कौशिक, दाऊदयाल आचार्य, एडवोकेट चेतनदास मूंधड़ा, एडवोकेट केवलचन्द बेहड़, एडवोकेट लखपतराय गांधी, डॉ. छगन मोहता, एडवोकेट हरिशंकर बगरहट्टा, पत्रकार जानकी प्रसाद बगरहट्टा मुख्य थे।

इस बीच राजा ने भी अपने समर्थकों को सक्रिय किया। तब पोस्टकार्ड दो पैसे का था। सरदार पटेल का पता लिखे पोस्टकार्ड में यह संदेश लिखकर शहर में बांटे गये कि हम अपनी रियासत का अलग अस्तित्व चाहते हैं। लेकिन अधिकतर जनता ने इसकी भाषा में यह कारीगरी करके पोस्ट किया कि वह बीकानेर रियासत का भारत संघ में पूर्ण विलीनीकरण चाहते हैं।

इन्हीं सब घटनाओं के बीच छह माह में ही स्थानीय सरकार को इस्तीफा देना पड़ा। इसके बाद कथित प्रजा परिषद् के जाट नेताओं में भ्रष्टाचार को लेकर फूट पड़ गयी। आपसी आरोप-प्रत्यारोपों के बीच नौबत यहां तक पहुंची कि चौधरी दीपचन्द ने एक रात स्वामी आश्रम जाकर कर्मानन्द पर तीन फायर कर दिये। एक गोली कर्मानन्द के पांव में लगी, कर्मानन्द बच गये लेकिन उन्होंने पेम्फलेट निकाल कर नाम के साथ चौधरी कुंभाराम और दीपचन्द पर भ्रष्टाचार के आरोप लगाये।

यहां यह सब कुछ चलता रहा वहीं सरदार पटेल ने राजस्थान की रियासतों के भारत संघ में पूर्ण विलीनीकरण की प्रक्रिया शुरू कर दी। पहले-पहल अलवर, भरतपुर, करौली और धौलपुर रियासतों को मिलाकर 'मत्स्य संघ' बनाया। फिर कोटा, बांसवाड़ा आदि नौ रियासतों का एकीकरण कर राजस्थान यूनियन का विधिवत निर्माण किया गया। बीकानेर के सादुलसिंह इसके खिलाफ रहे और उदयपुर महाराणा को अपने साथ कर लिया। लेकिन उदयपुर महाराणा जल्द ही सादुलसिंह का साथ छोड़ एकीकरण में शामिल हो गये। इससे सादुलसिंह का हौसला तो पस्त हो गया लेकिन आखिरी कौशिश में उन्होंने देशभक्तों के मुकाबले डाक्टरों, प्रोफेसरों, वकीलों, पूर्व न्यायाधीशों और सेवानिवृत्त उच्च अधिकारियों जैसे रियासती भक्तों का 'विलीनीकरण विरोधी मोर्चा' खड़ा किया। राजपूत सभा नाम से जागीरदारों का मोर्चा बनवाया। अब तक मुस्लिम समुदाय आजादी के आन्दोलन में शामिल नहीं था उन्हें भी उकसाया कि राजा के प्रति अपनी वफादारी का प्रदर्शन करें। इसके लिए सादुलसिंह ने हिन्दू महासभा, आरएसएस की ही तरह देश के बंटवारे के लिए जिम्मेदार मुस्लिम लीग की सेवाएं लेने से भी संकोच नहीं किया। संस्कृत विद्वान् विद्याधर शास्त्री के नेतृत्व में राजा समर्थक 'प्रजा सेवक संघ' खड़ा किया तो पूर्व न्यायाधीश बद्रीप्रसाद व्यास के नेतृत्व में बीकानेर 'लोक सेवक संघ' का गठन किया। हुआ यह कि देश भर में जो जागरूकता फैली, उसमें सादुलसिंह की उक्त सभी कारस्तानियां बेअसर साबित हुईं। 

दूसरी ओर बीकानेर की असल प्रजा परिषद् वाले महात्मा गांधी की प्रेरणा से सामाजिक कार्यों में जुट गये। 26 सितंबर, 1948 से हजार से ज्यादा लोगों ने हरिजन बस्ती में केवल स्वच्छता अभियान चलाया बल्कि हरिजनों के साथ खानपान भी किया। इस अभियन के मुख्य कार्यकर्ताओं में 18 ब्राह्मण थे जिनमें दाऊदयाल आचार्य के अलावा दुर्गादत्त किराड़ू, गंगादत्त रंगा, लक्ष्मीनारायण हर्ष और डॉ. छगन मोहता। इन सभी को बद्रीप्रसाद व्यास ने जाति से बाहर करवा दिया। इनमें एक युवा छोटूलाल व्यास भी थे जो नियमित दर्शन के लिए लक्ष्मीनाथ मन्दिर जाते थे। उक्त स्वच्छता अभियान के बाद बीकानेर लोक सेवक संघ के बद्रीप्रसाद व्यास ने सादुलसिंह की शह पर छोटूलाल व्यास को लक्ष्मीनाथ मन्दिर में प्रवेश यह कहकर नहीं करने दिया कि तुम अब से हरिजन हो, न्यात से बाहर हो। इस पर 27 सितंबर को छोटूलाल व्यास मन्दिर के गेट पर अपने तीन साथियोंचिरंजीलाल स्वर्णकार, सोहनलाल मोदी और किशनगोपाल गुट्टड़ के साथ अनशन पर बैठ गये। इस अनशन की चर्चा और चिंता पूरे देश में प्रकट की गयी। इन 4 अनशनकारियों के काउण्टर में रियासत ने 14 लोगों को अनशन पर बिठवाया, लेकिन वे दो दिन में फिस गये। गुंडों को भी भेजा गया, पर पार नहीं पड़ी। इन बदमजगियों को करवाने के इनाम के तौर पर सेवानिवृत्त बद्रीप्रसाद व्यास को सादुलसिंह ने बीकानेर हाईकोर्ट का जज नियुक्त कर दिया।

17 अक्टूबर को इनका अनशन तुड़वाने खुद विनोबा भावे आये। उन्होंने इन चारों को इस बात पर मनाया कि जिस मन्दिर में हरिजनों का प्रवेश वर्जित है, उस मन्दिर में हमें नहीं जाना चाहिए। इस प्रकार छोटूलाल व्यास के नेतृत्व में 23 दिन चला अनशन समाप्त हुआ। 

लेकिन हर रात्रि के बाद पौ फटती है। बीकानेर रियासत के असल सेनानियों का संकल्प पूरा हुआ। देश चाहे 15 अगस्त, 1947 को आजाद हो गया लेकिन बीकानेर रियासत के बाशिन्दों को आजादी 7 अप्रेल, 1949 को तब मिली जब अपनी सभी करतूतों के बावजूद महाराजा सादुलसिंह को विलीनीकरण प्रपत्र पर हस्ताक्षर करने पड़ गये।      

   —दीपचंद सांखला

27 अक्टूबर, 2022