Monday, July 24, 2023

मकसूद अहमद चाहें तो टाउन हॉल हो सकता है सधवा

 यादवेन्द्र शर्मा 'चन्द्र' की जयन्ती के उपलक्ष में कल शहर में एक आयोजन था। इसी अवसर पर जोधपुर के राजस्थानी लेखक अशोक जोशी 'क्रान्त' को चन्द्र स्मृति पुरस्कार से सम्मानित किया गया। साथ ही नगर के महापौर भवानीशंकर शर्मा और नगर विकास न्यास के अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद को आयोजक संस्था चन्द्र स्मृति न्यास की ओर से सम्मानित भी किया गया।

इस अवसर पर अशोक जोशी 'क्रान्त' ने एक संस्मरण सुनाया-क्रान्त ने अपने कहानी संग्रह की पाण्डुलिपि चन्द्रजी को देखने के लिए भिजवाई-चन्द्रजी ने देख कर लौटा दी। बात हुई तो चन्द्रजी ने क्रान्त से पूछा कि तुम्हारी कहानियों में जो 'बींनणी' पात्र है वह सुहागिन है या विधवा। क्रान्त ने कहा, सभी कहानियों में सुहागिन ही है, तब चन्द्रजी ने कहा कि यदि सुहागन है तो उनके बिन्दी लगाओ-बाकी सब ठीक है। हुआ यह था कि उनकी पाण्डुलिपि में उल्लेखित शब्द 'बीनणी' था और कि चन्द्रजी का मानना था कि 'बीनणी' शब्द विधवा के लिए प्रयोग होता है और सुहागिन के लिए 'बींनणी' शब्द का प्रयोग होता है। यद्यपि इस अन्तर की पुष्टि सीताराम लालस का शब्दकोश नहीं करता है। हो सकता है इस शब्द पर लालस की चन्द्र से मतभिन्नता रही हो और यह भी कि लालस की यह चूक हो!

खैर! इस का उल्लेख करने का राग हमारा कुछ दूसरा है-कल जब टाउन हॉल में यह कार्यक्रम चल रहा था तब मंच पर पंखों की पर्याप्त व्यवस्था न होने के चलते मंचस्थ अतिथि लगातार आकल-बाकल दिखाई दे रहे थे। इनमें सबसे ज्यादा व्याकुलता हाजी मकसूद अहमद में देखी गई जो नख से गर्दन तक झक धवल पोशाक में थे। और यह भी कि इस टाउन हाल की व्यवस्था भी वही नगर विकास न्यास देखता है जिसके अध्यक्ष हाजी मकसूद अहमद हैं। पता नहीं टाउन हॉल से निकल वातानुकूलित गाड़ी में बैठने के बाद उनको उस व्याकुलता की स्मृति रही भी या नहीं। लेकिन आये दिन इस टाउन हॉल में आयोजित कार्यक्रमों में शिरकत करने वाले श्रोता-दर्शक कई परेशानियों का सामना करते हैं-जैसे दर्शकदीर्घा में पंखों की हवा की जद में जो बैठ गये वे तो ठीक, शेष सब हाजी मकसूद वाली व्याकुलता में ही समय गुजारते हैं। टाउन हॉल में जो नये वॉल माउंट पंखे लगे हैं उनकी जालियां जालों और फूस से अटी पड़ी हैं। अलावा इसके आयोजक अगर चौकस न हो तो कुर्सियों पर लगी रज्जी उन पर बैठने वालों की पोशाकें उनके बाहर आने पर ध्यानाकर्षित किये बिना नहीं रहतीं। लम्बे समय से टूटी कई कुर्सियां तो अपने पर अनजाने में विराजने वाले को गिरा कर अकसर और अनायास हास्य का पात्र बना देती हैं। और यह भी कि मच्छरों के मौसम में हिट जैसा स्प्रे या कछुआ छाप जैसी मच्छर अगरबत्ती न लगाई जाए तो अधिकतर श्रोता और दर्शक मंच से मुखातिब कम और पांवों व अनावृत हाथों को खुजलाते ज्यादा नजर आते हैं!

कहने को कह सकते हैं कि रवीन्द्र रंगमंच की मरीचिका टूटने वाली है। लेकिन वह प्रेक्षागृह तो उन आयोजनों के लिए व्यावहारिक होगा जिनकी श्रोता या दर्शक संख्या सात सौ से हजार के लगभग होगी। फिलहाल तो लगभग तीन सौ सीटों की संख्या वाले इस टाउन हॉल में पर्याप्त श्रोता या दर्शक जुटाना भी अधिकतर आयोजकों के लिए भारी होता है, यदि कार्यक्रम कुछ पारिवारिक-सामाजिक सा न हो तो! तब आयोजक या तो होटल मरुधर हेरिटेज विनायक सभागार को या फिर नरेन्द्रसिंह प्रेक्षागृह को प्राथमिकता देते हैं। आनन्द निकेतन के लिए तो कहा जाने लगा है कि अब उसकी वो आभा नहीं रही। इस तरह अधिकांश आयोजनों के लिए अभी भी अगले कई वर्षों तक टाउन हॉल ही व्यावहारिक जान पड़ता है। हाजी मकसूद ने कल खुद के साहित्यानुरागी होने की जो बानगी पेश की उसके चलते यह उम्मीद की ही जा सकती है कि उन्हें अपने इस कार्यकाल में टाउन हॉल का भी 'काया-कल्प' करवा देना चाहिए।

-सीटों का पुनर्पंक्तीकरण इस तरह किया जाए कि दो पंक्तियों के बीच कम से कम इतनी जगह तो हो कि पंक्ति के मुहाने पर कोई बैठ भी जाए तो बीच की कुर्सियों तक कोई अन्य आसानी से पहुंच सके। इस तरह व्यवस्थित करने से बैठने की व्यवस्था 15-20 प्रतिशत कम भले ही हो जाए!

-'साउण्ड प्रूफ' के अनुकूल फाल्स सीलिंग और दीवारों पर साउण्ड प्रूफ पैनल लगाये जा सकते हैं ताकि अच्छे ध्वनि संवेदित कार्यक्रम भी इस टॉउन हॉल में आयोजित हो सकें।

-पूरे प्रेक्षागृह को वातानुकूलित भी किया जाना चाहिए। ताकि न तो दर्शकदीर्घा में बैठों को और न ही मंचस्थों को आकल-बाकल होना पड़े।

यानी किसी अच्छे प्रेक्षागृह विशेषज्ञ की सेवाएं लेकर चन्द्रजी की भाषा में ही कहें तो इस टाउन हॉल को नवीकरण की बिन्दी लगाकर विधवा से सधवा बनाया जा सकता है। अशोक जोशी 'क्रान्त' के चन्द्र स्मरण का शुरू में उल्लेख करने का प्रयोजन यह भी था।

—दीपचन्द सांखला

13 अगस्त, 2012

No comments: