Monday, July 17, 2023

गंदे पानी के जमाव की समस्या

 बीकानेर शहर के फैलाव के साथ ही यहां से निकलने वाले गंदे पानी के जमाव की समस्या दिनोंदिन विकराल होती जा रही है। दूसरी तरफ इस दूषित पानी के जमाव की समस्या से निबटने के लिए प्रयास या तो हुए ही नहीं और यदि हुए भी हैं तो दशकों तक इससे जूझते लोगों द्वारा अपनी आवाज बुलंद करने के बाद। समस्या के पैदा होते ही अथवा इससे पहले इसका आकलन कर जो उपाय कम खर्च में हो सकते हैं, उन पर संभावित खर्च इतना बढ़ जाता है कि फिर उससे निबटना टेढ़ी खीर साबित होता है।

शहर में घरों तक पाइप लाइन से जलापूर्ति शुरू होने के बाद से और अब शहरी क्षेत्र के लगातार फैलाव से दूषित पानी की निकासी बड़ी चुनौती के रूप में उभर कर सामने आई है। सूरसागर ज्वलंत उदाहरण है। कई दशकों तक आवाज उठने के बाद पिछले दशक में एशियाई विकास बैंक के सहयोग से शहरी ढांचागत विकास परियोजना के तहत सूरसागर में भरे कीचड़ की सफाई कर इसमें गंदे पानी की आवक रोकी गई और इसे स्वच्छ पानी के जलाशय (जैसा कि यह रियासतकाल में था)के रूप में विकसित किया गया। इस योजना का वर्तमान में क्या हश्र हो रहा है, यह अलग विषय है।

इसी तरह का एक और सूरसागर गंगाशहर-भीनासर में बन गया जिसे चांदमलजी के बाग के नाम से जाना जाता है। वहां जमा पानी की निकासी के लिए भी योजना बनी है और उस पर काम भी शुरू हो रहा है। पर ये बढ़ते 'सूरसागरÓ यहीं तक सीमित नहीं हैं। राजस्थान कृषि विश्वविद्यालय के क्षेत्र में भी एक-डेढ़ दशक से ऐसे ही गंदे पानी का तालाब बन गया है। असल में यह घरों से निकले पानी से नहीं वरन्  बीछवाल औद्योगिक क्षेत्र के कारखानों के निकले दूषित पानी के जमाव से बना है। ऐसा ही गंदे पानी का एक और तालाब पूगल रोड पर इंजीनियरिंग कॉलेज के पिछवाड़े आकार लेने लगा है। यह भी करणी औद्योगिक क्षेत्र के कारखानों से निकले दूषित पानी के कारण बना है।

उपरोक्त दोनों औद्योगिक क्षेत्रों के कारखानों से निकलने वाले दूषित पानी का पहले से ही आकलन संभव था। औद्योगिक क्षेत्र विकसित होने के साथ ही दूषित पानी को जन स्वास्थ्य के लिए अहानिकर बनाकर उसके निस्तारण की योजना बननी चाहिये थी। पर ऐसा हुआ नहीं। अब रीको के इन दोनों औद्योगिक क्षेत्रों के दूषित पानी से बने तालाबों ने विकराल रूप ले लिया है। इस पानी से उठती दुर्गंध ने आस-पास रहने वालों अथवा इन इलाकों में काम करने वालों का जीना दुश्वार कर दिया है।

रीको को कृषि विश्वविद्यालय और इंजीनियरिंग कॉलेज के निकट बन गए दूषित पानी के तालाबों से उत्पन्न समस्या का समाधान शीघ्र निकालना चाहिये अन्यथा यह समस्या लाइलाज होती जाएगी। इसके साथ ही जरूरी है कि कारखानों से निकलने वाले दूषित पानी का पहले कारखाने के स्तर पर या औद्योगिक क्षेत्र में ही उपचार कर उसे हानिरहित बनाया जाए। फिर इसे निकाला जाए। उपचारित होने पर इस पानी को खेती-बाड़ी या बागवानी में भी उपयोग किया जा सकता है। ऐसी योजना से पानी का फैलाव तो सीमित होगा ही, पानी की कमी वाले इस क्षेत्र में सिंचाई के लिए भी इसका उपयोग हो सकेगा।

—दीपचन्द सांखला

23 जून, 2012

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