Friday, July 21, 2023

आसन्न अकाल का संकट

 सावन का महीना बीतने को है और वर्षा के नाम पर छिट-पुट बूंदाबांदी के अलावा कुछ नहीं हुआ। धरती की प्यास बुझना तो दूर, इस मौसम में गर्मी पर पडऩे वाला अपेक्षित असर भी दिखाई नहीं पड़ रहा। एक तरफ कम वर्षा के कारण बुवाई प्रभावित हुई है तो दूसरी तरफ तेज गर्मी से बिजली की खपत में कोई कमी नहीं आई है। इसका नतीजा यह हो रहा है कि बिजली कटौती लम्बी खिंचती जा रही है। कुल मिलाकर अकाल और अभाव के आसार बनते जा रहे हैं।

बीकानेर जिला ही नहीं, पूरा प्रदेश ही अल्पवृष्टि के कारण कमोबेश अकाल की आशंका से जूझ रहा है। केन्द्र सरकार इस बारे में पहले ही राज्य प्रशासन को चेता चुकी है और अब कल मुख्य सचिव ने जयपुर में बैठक कर स्थिति की समीक्षा की। सभी जिलों से भी दो दिन में वर्षा और बुवाई की स्थिति पर रिपोर्ट मांगी गई है। इन रिपोर्टों के आधार पर केन्द्र सरकार को ज्ञापन भेजा जाकर संभावित अकाल से निबटने के लिए सहायता का अनुरोध किया जाएगा।

अल्पवृष्टि की मार से सबसे ज्यादा प्रभावित प्रदेश के पांच जिलों में बीकानेर का नाम सबसे ऊपर है।  कम वर्षा का असर यह हुआ है कि खरीफ में अभी तक 15-20 प्रतिशत रकबे में ही बुवाई का काम हो पाया है। अब मानसून कमजोर पडऩे से आगे समुचित वर्षा होने की उम्मीद भी नहीं है। ऐसी स्थिति में खरीफ की बुवाई का लक्ष्य पूरा होने की संभावना भी नहीं लगती। इसका सीधा असर कृषि उत्पादन पर तो पड़ेगा ही, खेती पर निर्भर रहने वालों की आमदनी भी प्रभावित होगी। कृषि कार्यों पर रोजगार पाने वाले भी इसकी  चपेट में आयेंगे। हालांकि मनरेगा जैसी सरकारी योजनाओं के चलते काम मांगने वालों को कुछ रोजगार तो मुहैया हो जाएगा पर असली संकट पानी और पशुधन के लिए होगा।

कम वर्षा के कारण भूमिगत जल का पुनर्भरण नहीं होने से यह और भी नीचे चला जाता है। तालाब और पोखर सूखे रह जाते हैं। ऐसे में पशुओं के पीने के पानी का संकट खड़ा हो जाता है। खेतों में फसलें नहीं लग पाने का एक असर यह होता है कि पशुओं के लिए चारे का भी अभाव रहता है। इन दोनों की व्यवस्था आने वाले समय में बड़ी चुनौती बन सकती है। हालांकि पशुओं के लिए पड़ोसी राज्यों पंजाब व हरियाणा से चारा मंगवाया जाता है। इससे पूरा पोषण तो नहीं मिलता लेकिन पशु को भूखे मरने से बचाने का साधन हो जाता है। पर इसके लिए भी अभी से प्रबंध करने होंगे।

सबसे बड़ा संकट पीने के पानी का है। तीन-चार सौ फुट गहरे चले गए भूमिगत जल का थोड़े से लालच में निर्ममता से दोहन किया जा रहा है। यह भूमिगत जल ही अल्पवृष्टि के समय पशु और मानव आबादी की प्यास बुझाने के काम आता है। पर लगातार हो रहे अतिदोहन और दोहन की तुलना में कम पुनर्भरण का ही नतीजा है कि भूमिगत जलस्तर लगातार नीचे जा रहा है। कम से कम अकाल के हालात में तो इस दिशा में विचार कर अतिदोहन रोकने के सख्त उपाय किए जाने चाहिए। पाइपों से घरों तक जलापूर्ति के बढ़ते इलाके के साथ ही इसका दुरुपयोग भी बढ़ रहा है। इसे रोकने के लिए भी जागरूकता लाने की जरूरत है। पानी का मूल्य समझे बिना अकाल की स्थिति में ऐसे ही संकट आते रहने को टाला नहीं जा सकेगा।

—दीपचन्द सांखला

26 जुलाई, 2012

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