Monday, July 17, 2023

मुरलीधर व्यास और गोकुलप्रसाद पुरोहित

 गोकुलप्रसाद कुछ ऑफ द रिकार्ड विशेषाधिकारों के साथ बीकानेर आ गये। कहते हैं 1967 के चुनावों से पहले अपनी अनुकूलता बनाने के लिए उन्होंने बहुत से ट्रांसफर-पोस्टिंग करवाई। गोकुल प्रसाद इसके लिए किसी मंत्री को नहीं सम्बन्धित विभाग को सीधे ही मौखिक डिजायर भेजते थे-विभागों को मुख्यमंत्री की मौखिक हिदायत थी कि गोकुलप्रसाद का हर कहा किया जाय। ऐसी पावर बाद के वर्षों में कैबिनेट में रहे लोगों के पास भी नहीं देखी गई। गोकुलप्रसाद जामसर श्रमिक राजनीति में भी घुसपैठ की। व्यास भक्तों की जिन दो घटनाओं का जिक्र पूर्व में किया गया-वैसी छोटी-बड़ी और भी कई बातों ने गोकुलप्रसाद के लिए जाजम बिछा दी थी। सत्यनारायण पारीक के साथ की घटना और मानिकचन्द सुराणा के साथ व्यासजी के मनमुटाव से जहां पढ़े-लिखे वर्ग में व्यास का सम्मान कम हुआ वहीं गोपाल जोशी के मकान के आगे की घटना से पुष्करणा समाज में बाहरी-शहरी का फर्क दीखने लगा। मूलत: बीकानेर के गोपाल जोशी के घर के बाहर जैसलमेरी मुरलीधर के भक्तों की बदमजगी एक ही जातीय समाज में फांक की वजह बन गई। व्यास मूलत: बीकानेर के नहीं थे-कार्यक्षेत्र उन्होंने बीकानेर को बनाया। ठीक उलट गोकुलप्रसाद पुरोहित मूलत: बीकानेर के थे। कार्यक्षेत्र उनका भीलवाड़ा था। इस बिना पर भी एक ही समाज में किस तरह ध्रुवीकरण हो सकता है, यह इसका बड़ा उदाहरण है। क्योंकि बीकानेर शहर सीट पर हमेशा पुष्करणा समाज का रंग ही निर्णायक रहा है, इसके चलते ही 1967 के चुनावों में कुछ तो पुष्करणा समाज के बदले रंग ने और कुछ व्यासजी की चौकसी और समझ की कमी ने मुरलीधर व्यास जैसे जननेता के बीकानेर को दिये 20 वर्षों को बदरंग कर दिया। 30 मई, 1971 को व्यासजी का निधन हो गया।

सन् 1972 के विधानसभा चुनावों तक सूबे की सियासत बदल गई। सुखाडिय़ा को सूबे की राजनीति से अलग कर दिया गया। गोकुलप्रसाद बेरंग हो गये-उन्हीं के राजनीतिक समर्थकों में से एक गोपाल जोशी पार्टी टिकट ले आये और चुनाव जीत गये। नतीजतन वही गोकुलप्रसाद 1975 में लगी आपातस्थिति में मीसा में बंद कर दिये गये। 1977 में आपातस्थिति हटी और चुनाव हुए। चुनावों में उत्तर भारत में कांग्रेस लगभग साफ हो गई-विधानसभा चुनावों में गोपाल जोशी बैकफुट हो लिए-कांग्रेस का टिकट कोई लेने वाला नहीं था-तब उन्हीं गोकुलप्रसाद को दिया गया जिन्हें कांग्रेस की ही सरकार ने मीसा में 19 महीने बन्द रखा। उन्होंने हिम्मत दिखाई पर हार गये-हार निश्चित ही थी-तब के ठिठके गोपाल जोशी को राजनीति की मुख्यधारा ने ऐसा बाहर किया कि 32 साल बाद सन् 2008 में वे विधानसभा में पहुंच पाये-वह भी उस भाजपा के टिकट पर जिसकी खिलाफत की राजनीति वे ताजिन्दगी करते रहे!

समाप्त

दीपचन्द सांखला

2 जून, 2012


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