Monday, July 24, 2023

सुचारू कैसे हो शहर की सफाई व्यवस्था

 बीकानेर शहर में सफाई कार्य के नए ठेके पर गतिरोध बना हुआ है और वर्तमान में ठेके पर चल रही आधे से ज्यादा शहर की सफाई व्यवस्था भी संतोषजनक नहीं कही जा सकती। नगर निगम के नियमित कर्मचारियों से करवाई जा रही शेष शहर की सफाई व्यवस्था से भी नागरिक संतुष्ट नहीं हैं। ऐसे में लगभग पूरे शहर में सफाई व्यवस्था एक तरह से भगवान भरोसे ही है। हाल की बरसात में अवरुद्ध नालों के कारण जगह-जगह बरसाती पानी के जमाव और इसे लेकर नागरिकों के रोष प्रदर्शन का सिलसिला शहर की सफाई व्यवस्था को आईना दिखाने के लिए पर्याप्त है। नियमित सफाई तो दूर बरसाती पानी की निकासी के लिए नालों के अवरोध तक नहीं हट पाना अव्यवस्था का ही नतीजा है।

नगर निगम में नियुक्त सफाई कर्मचारियों की संख्या निरंतर घटती जा रही है। अभी लगभग 750 सफाईकर्मी नियुक्त हैं। हर माह होने वाली सेवानिवृत्ति से यह संख्या भी निरंतर कम हो रही है। तीन दशक पहले जहां 1600 से ज्यादा सफाईकर्मी नियुक्त थे, उनकी संख्या घटते हुए अब एक-तिहाई रह गई है। इस बीच शहर की जनसंख्या और आबादी क्षेत्र का लगातार विस्तार होता जा रहा है। इससे सफाई व्यवस्था पंगु हो चुकी है। सड़कों और मोहल्लों में नियमित सफाई नहीं होने को अब शहर के बाशिंदों ने सामान्य अवस्था मानकर इसकी शिकायत करना ही बंद कर दिया है। अब शिकायतें कचरे की ढेरियां हटाने अथवा अवरुद्ध नालों से फैलने वाले कीचड़ और गंदगी तक ही सीमित हो गई हैं।

सफाईकर्मियों की नई नियुक्तियां करने के बजाय स्थानीय निकाय प्रशासन ने ठेके पर सफाई कार्य करवाने की व्यवस्था कुछ वर्ष पहले प्रारंभ की थी। इसका नतीजा तो नियमित सफाईकर्मियों के कामकाज से भी बदतर ही निकला। वर्तमान में भीतरी शहर के 28 वार्डों में निगम के नियमित कर्मचारी सफाई का कार्य करते हैं। शेष 32 वार्डों की सफाई ठेके पर होती है। इसके लिए भी ठेका 450 श्रमिकों के लिए था लेकिन ठेकेदार 250 से ज्यादा श्रमिकों की व्यवस्था ही नहीं कर पाया। प्रत्येक वार्ड में दस श्रमिकों को तैनात करने के मापदंड के विपरीत कहीं 6 तो कहीं 7 श्रमिक ही काम कर रहे हैं। श्रमिकों की इस कमी का खमियाजा कई कॉलोनियां व मोहल्ले भुगत रहे हैं। इन इलाकों में सफाई तो दूर ये ठेका श्रमिक ही वर्ष भर में कुछ ही दिन दिखाई देते हैं। ठेकेदार पर दबाव पर जुर्माने लगाने का भी कोई नतीजा नहीं निकल रहा। प्रति श्रमिक प्रतिदिन 135 रुपए के न्यूनतम भुगतान के अलावा इन श्रमिकों के जीपीएफ व दुर्घटना बीमा की राशि भी ठेकेदार को जमा करानी होती है। इसके बगैर निगम इन्हें भुगतान ही नहीं करता। नरेगा श्रमिकों की ही दिहाड़ी जब बढ़ गई है तो सफाई जैसा दुष्कर कार्य 135 रुपए की दिहाड़ी पर कैसे होगा? इसका नतीजा यह है कि ठेकेदार को काम के लिए पर्याप्त श्रमिक ही नहीं मिलते। फलत: मंजूरशुदा संख्या की तुलना में आधे श्रमिक ही सफाई कार्य कर रहे हैं। अब 450 श्रमिकों के नए ठेके को लेकर भी गतिरोध उत्पन्न हो गया है। ठेकेदार दो पारी में काम करने तथा कार्य का प्रमाणीकरण संबंधित वार्ड पार्षद से कराने की शर्त मानने को तैयार नहीं है।

उधर नगर निगम के सफाई कर्मचारियों सहित विभिन्न संगठन नई नियुक्तियों की मांग को लेकर आंदोलन करते रहे हैं। राज्य सरकार ने हाल ही में 328 सफाईकर्मियों की नियुक्ति के लिए मंजूरी दी है। इसके लिए नगर निगम ने आवेदन भी प्राप्त कर लिए लेकिन नियुक्ति प्रक्रिया अब तक शुरू नहीं हो पाई। राज्य सरकार बीकानेर सहित छह संभाग मुख्यालयों व अजमेर तथा पुष्कर में सफार्ई कार्य विदेशी ठेकेदार को देने की तैयारी कर रही है। ऐसे में नियमित नियुक्तियां भी खटाई में पड़ती लग रही हैं।

कुल मिलाकर नागरिक तो सुचारु सफाई व्यवस्था चाहते हैं। वह चाहे नियमित कर्मचारी करे अथवा ठेका श्रमिकों के जरिये करवाई जाए। इसके लिए निगम प्रशासन को ही पार्षदों व आम लोगों का सहयोग लेकर सार्थक प्रयास करने होंगे अन्यथा शहर के गली-मोहल्ले ऐसे ही सड़ते रहेंगे और निगम प्रशासन को आए दिन नागरिकों के विरोध प्रदर्शनों का सामना करते रहना पड़ेगा।

—दीपचन्द सांखला

31 अगस्त, 2012

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