Friday, July 21, 2023

गुटखे न खाएं तो अच्छा

 प्रदेश में फिलहाल गुटखों ने अपने आदी लोगों और विक्रेताओं के साथ अखबारों में भी जगह बना रखी है। प्रदेश के दोनों बड़े अखबार गुटखा बंद करवाने के इस अभियान को अपना-अपना अभियान बता रहे हैं।

पिछले एक अरसे से मीडिया ने अपनी भूमिका का विस्तार किया है। कोर्ट में चल रहे मुकदमों के सबूत अपने स्तर पर ढूंढऩा और उन्हें प्रकाशित-प्रसारित करने को आरोप की भाषा में मीडिया ट्रॉयल तक कहा जाने लगा। कहा जाता है कि जेसिकालाल और नीतिश कटारा की हत्याओं के मामले मीडिया की सक्रियता के चलते ही इंसाफ तक पहुंचे।

बात हम गुटखे की कर रहे थे-इसे चबाना या मुंह में रखना एक ऐसा व्यसन है जिसे लगभग सामाजिक स्वीकृति प्राप्त है। यानी गुटखा सेवन करने वाले को समाज में हिकारत से नहीं देखा जाता। इसे पान खाने और जर्दा मुंह में रखने की श्रेणी में मान लिया गया है। जबकि परिणाम बताते हैं कि गुटखा चबाने की प्रवृत्ति बहुत खतरनाक है। इसके अधिकतर आदी भारी पीड़ा भोग कर और इलाज के चलते घर के आर्थिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न कर चले जाते हैं।

अखबारों के आंकड़े बता रहे हैं कि गुटखा बंद कर देने से सरकार को राजस्व की कोई बड़ी हानि नहीं होगी-तो फिर सरकार इसे बंद क्यों नहीं कर रही है? क्या सरकार पर गुटखा लॉबी का कोई दूसरा दबाव काम कर रहा है?

वैसे देखा गया है कि अधिकांश सरकारी प्रतिबंध टूटने को ही लागू होते हैं। जैसे अपने प्रदेश में पॉलीथिन थैलियों पर रोक है-पर धड़ल्ले से उपयोग की जा रही हैं! सार्वजनिक स्थानों पर सिगरेट पीने की और कुछ विशेष स्थानों पर सिगरेट बेचने पर प्रतिबंध है, लेकिन क्या सचमुच ऐसा है? कुछ स्थानों के आस-पास गुटखा बेचने पर अभी भी रोक है, लेकिन सभी जगह बिक ही रहे हैं।

यदि गुटखे पर प्रदेश में प्रतिबंध लगा ही दिया गया तो-आस-पड़ोस के प्रदेशों से यह आने लगेगा। गुटखा व्यापारियों का गुटखे पर टैक्स कम करवाने के पीछे का एक तर्क यह भी तो है कि जितना गुटखा राजस्थान में वैध तरीके से बिकता है उससे ज्यादा पड़ोसी राज्यों से अवैध रूप से लाकर बेचाजाता है।

इस तरह की बातें करने के मानी यह कतई नहीं है कि गुटखों पर प्रतिबंध लगाया ही नहीं जाय, तुरंत ही लगा दिया जाय। साथ ही गुटखों की मचमची के आदी लोगों की आदतें और बेचने वालों का हृदय बदलने की भी जरूरत है, नहीं तो गुटखों को खाने की तलब और बेचने वालों का अवैध व्यापार चोरी-छिपे फलेगा-फूलेगा ही।...

पजाबगरान-शहर के मोहल्ला पजाबगरान में यूआईटी द्वारा बनवाई गई ब्लॉक सड़क के लोकार्पण का कार्यक्रम कल हुआ। इसकी खबरें स्थानीय अखबारों में लगी हैं जिनमें मुहल्ले का नाम पंजाब गिरान छापा गया है-जबकि इस शब्द का पांच नदियों वाले पंजाब से कोई संबंध नहीं है। हमारे यहां अधिकांश उपनाम उन जातीय समूहों द्वारा रोजी के लिए किये जा रहे कार्यों से सम्बन्धित हैं। जैसे सुनार, लुहार, कुम्हार, माली, कसाई, चूनगर, पजाबगर आदि। इनमें पजाबगर उन्हें कहा जाने लगा जो भट्टों पर कार्य करते हैं। पजाब या पजाव ईंट के भट्टों को कहा जाता है और पजाबगरान पजाबगर का बहुवचन है।

—दीपचन्द सांखला

17 जुलाई, 2012

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