Monday, July 24, 2023

छात्रसंघ चुनाव और छात्रनेता

 राज्य में बरसात समय बाद आई लेकिन महाविद्यालयी छात्रसंघों के चुनाव तय समय पर हो रहे हैं। सभी कॉलेजों में दाबा-चींथी, समझाने-गिड़गिड़ाने और डराने-धमकाने की रेलमपेल शुरू हो गई है। कहीं किसी कॉलेज में कोई बदमजगी न हो तो तय समय पर मतदान भी हो जाएगा और अध्यक्ष, महामंत्री चुन लिए जाएंगे। इस सत्र के कॉलेज शुरू होते ही छात्र हितों के लिए प्राचार्य का घेराव और कॉलेज गेट पर ताला लगाने का जो 'एक्शन' शुरू हुआ था उस पर अगले सत्र तक के लिए विराम लग जाएगा। यानी छात्रसंघ का चुनाव होते ही छात्रों की सभी समस्याएं छू-मंतर हो जानी हैं! और चुने हुए पदाधिकारी अपना-अपना 'कॅरिअर' तय करेंगे और उसे 'अचीव' करने की जुगत में लग जाएंगे।

कोर्ट के आदेश के बाद जब से छात्रसंघों के यह चुनाव जरूरी हुए हैं तब से चुने गये छात्रनेताओं के कॅरिअर के विकल्प बदल गये हैं।

पिछली सदी के सातवें, आठवें दशक में और बीच में कुछ विराम के बाद नौवें दशक में जब छात्रसंघों के चुनाव होते थे तब के चुने हुए छात्रनेताओं के पास कॅरिअर के विकल्पों की सम्भावनाएं सीमित लेकिन पुख्ता थी-आज के अधिकतर छोटे-बड़े और बड़े नेता उन्हीं दिनों के छात्रनेता रहे हैं, उन कुछेक नेताओं को छोड़ कर जिन्हें राजनीति घुट्टी में ही मिल गई थी। तब के शेष छात्रनेता कोई पत्रकार हो गये तो कोई साहित्यकार तो कोई व्यापारी। लेकिन अभी कोर्ट के आदेश के बाद जो छात्रसंघीय चुनावों का दौर शुरू हुआ है तब से इन छात्रनेताओं के लिए राजनीति में विकल्प सीमित हो गये या कहें आजादी बाद के नेताओं की आयी अगली पीढ़ी ने गैर राजनैतिक परिवारों से आये युवाओं के विकल्प सीमित कर दिये हैं। साहित्यकार, पत्रकार होना आजकल के छात्रनेताओं को अपनी क्षमता के बाहर लगता होगा या यह भी हो कि इस तरह के कॅरिअर को वह हेय समझते हों! रही बात व्यापार की तो परम्परागत व्यापारी परिवारों से आये युवाओं को इस तरह की छात्र राजनीति करना अब रास नहीं आ रहा है या उन्हें यह काम अपने बूते के बाहर का लगता होगा। शायद इसीलिए ऐसे परम्परागत व्यवसायी परिवारों से आये युवा छात्र राजनीति में सक्रिय नहीं दीखते हैं।

इस तरह की बातें करने का मकसद यही है कि राजनीति में कॅरिअर के अवसर सीमित होने के बाद अधिकतर छात्रनेता उस तरह के कामों में लगे देखे गये हैं जो दबंगई से ही सम्भव होते हैं। जैसे-जमीनों के काम, रंगदारी के काम, अवैध शराब व अन्य अवैध नशीली चीजों के काम, अवैध खनन और सरकारी ठेकों के काम आदि-आदि।

'विनायक' के बस का तो नहीं है पर प्रदेश के बड़े अखबार चाहें तो ऐसी सूची बनवाना सम्भव कर सकते हैं जिससे पता चल सके कि पिछले कुछ वर्षों से शुरू छात्रसंघों के इस चुनावी दौर में जीते और हारें युवा इन दिनों किन-किन कामों में लगे हैं। ऐसा करना बड़े अखबारों के लिए मुश्किल नहीं है, लेकिन यह सूची होगी हैरत अंगेज ही।

—दीपचन्द सांखला

11 अगस्त, 2012

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