Friday, July 21, 2023

रामदेव की मंशा

 योग प्रशिक्षक रामदेव कभी शिथिल होते हैं तो कभी हुंकार भरते हैं। कभी यह भी होता है कि इतने भयभीत हो जाते हैं कि उन्हें लगने लगता है कि उन्हें मार दिया जायेगा। भय से इतने आतंकित हो जाते हैं कि भेष बदल कर वे अपने भरोसे आये उन सैकड़ों लोगों को बीच मंझधार में छोड़ भागने के प्रयास में पकड़े जाते हैं।

अन्ना भ्रष्टाचार के खिलाफ अलख जगा रहे हैं तो लगता है कि रामदेव अपने धन्धे को प्रमोट करने को कालेधन की खिलाफत का सहारा ले रहे हैं। आजादी बाद के इन पैंसठ सालों में यह भ्रष्टाचार और उसका बाइप्रॉडक्ट अवैध धन न केवल देश की अर्थव्यवस्था के लिए दीमक का काम कर रहा है बल्कि देश के सामाजिक ताने-बाने को छिन्न-भिन्न करने वाला भी साबित हो रहा है। लगता है तमाम भारतीय समृद्धों और समर्थों ने आजादी का मानी 'खुला खेलो' के रूप में लिया है। देश के किसी भी नियन्ता ने इस भ्रष्टाचार को कभी गम्भीरता से नहीं लिया बल्कि जितना जिससे बन पड़ा उतना इस भ्रष्टाचार को भोगा है। देश के समाज, अर्थतंत्र और राजनीति को घुन की तरह खोखला करता यह भ्रष्टाचार अब लाइलाज लगने लगा है। तभी जब पिछले वर्ष अन्ना इसके खिलाफ खड़े हुए तो एकबारगी तो लगने लगा था कि पूरा देश उनकी ताल को ताली देने को आतुर है। लेकिन जैसा कि कहा गया कि केवल नीयत साफ होने भर से कुछ नहीं हो सकता है, आप जिस मकसद में जुटे हों उसके सभी आयामों की समझ जरूरी है। शायद यहीं अन्ना मात खा गये।

खैर! रामदेव चार सौ लाख करोड़ के कालेधन की बात करते हैं। उनका मानना है कि इतना भारतीय धन अनधिकृत रूप से विदेशों में जमा है। वे अपने भाषणों में यह भी बताते हैं कि यदि यह पूरा धन आ जाता है तो प्रत्येक भारतीय लखपति हो जायेगा। लेकिन वह यह कभी नहीं बताते हैं कि उन्होंने इस आंकड़े की पुष्टि कैसे और किससे करवायी है। लेकिन इससे दो राय नहीं कि देश के भ्रष्टाचारियों ने बहुत मोटी रकम विदेशों में सुरक्षित रख छोड़ी है जो न केवल अवैधानिक है बल्कि अनैतिक भी है। वह कैसे और किस तरह आ सकती है यह बहुत पेचीदा मामला है, क्योंकि जहां भी यह रकम पड़ी है वह भारत के अधिकार और न्यायिक क्षेत्र में नहीं है। अन्तरराष्ट्रीय नियमों-उपनियमों या अन्य देश विशेष के साथ अपने देश की हुई या हो सकने वाली सन्धियों के तहत ही कुछ हो सकता है। लेकिन इसके लिए सरकार की मंशा होना भी जरूरी है-क्योंकि इस तरह की मंशा बनने और बनाने में भी इतने पेच हैं कि उन्हें खोलना लगभग असंभव है।

लेकिन सबसे ज्यादा आश्चर्य और चिन्ता की बात यही है कि रामदेव की इस सबके पीछे की असली मंशा को न समझने की हम कसम खाये लगते हैं-जबकि वे तो तंग चतुराई के चलते अपने व्यापारिक मकसद जाहिर करते रहे हैं। 

—दीपचन्द सांखला

7 जुलाई, 2012

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