Monday, July 24, 2023

बेरुतबा एस पी और बेधड़क होते अपराधी

 कोई तीन दशक पहले बीकानेर में एक एसपी थे-जेपी मिश्रा। शाम को वह अकेले ही खुले हुड की जीप को खुद ड्राइव करते पान खाने के बहाने शहर में आ जाते थे। गर्मी हुई तो टी-शर्ट में और सर्दियों में ब्लेजर पहन कर। धीरे-धीरे शहरी उन्हें सदेह पहचानने लगे और शहर की हथाई में उन्होंने जगह भी बना ली। केवल इस भर से उन्होंने शहर में दबदबा बना लिया था। पुलिस महकमे का आज जो जुमला है 'आमजन में विश्वास-अपराधियों में डरÓ। मिश्रा ने इस जुमले को शहर में तब साध लिया था जब पुलिस महकमे ने इसे अपनाया ही नहीं था।

शहर के भीतरी हिस्से में कल शाम बाद एक आंगडि़ए के यहां भरोसाई कदमताल के साथ पहुंचे लुटेरे असल में कितने जेवरात ले गये वह कभी दर्ज नहीं हो पाएगा। क्योंकि जेवरात का अधिकांश काम दो नम्बर का होता है और जो यह आंगडि़ए होते हैं उनकी साख ही भरोसे से बनती है। इन्हें कुरियर नहीं कहा जाता है-आंगडिय़ों का काम और कार्यशैली दोनों ही कुरियर से भिन्न होती है। लूट की रकम बाकाडाक से ही तय होगी और कह सकते हैं कि जितने मुंह उतनी ही रकम।

खैर, बात लूट की कर रहे थे-और शुरू में एक पुराने एसपी की कथा भी हमने की है तो वहीं लौटते हैं-कुछ दिन पहले भी कुछ लुटेरे शहर के बाहरी हिस्से पवनपुरी में एक ज्वैलर्स के यहां भी लूट कर गये थे-कुछ लुटेरे पकड़े भी गये। उस लूट पर लिखे सम्पादकीय में विनायक ने तभी लिख दिया था-यह लुटेरे नौसिखिये हैं और जल्द ही पकड़े भी जाएंगे और वैसा ही हुआ। हालांकि पुलिस ने उन्हें शातिर कह कर गिरफ्तार किया है-यदि वे शातिर होते तो न तो लूट की घटना को उस तरह अंजाम देते जिस तरह दी और न ही इस तरह पकड़े जाते। अलबत्ता कल की लूट के लुटेरे उनसे ज्यादा शातिर और दुस्साहसी हैं। बड़े आत्मविश्वास से उन्होंने इस लूट को अंजाम तक पहुंचाया है, यह लूट जहां हुई वह स्थान शहर का वह अंदरूनी हिस्सा है, जहां से दुपहिया वाहन से भी फर्राटे से निकल कर शहर से जल्द बाहर नहीं आ सकते। यह लुटेरे अपने वाहन को कहीं ऐसी जगह खड़ा करके आए जहां से आसानी से निकल बाहर हुआ जा सकता हो-लूट की जगह से लगभग आधा किलोमीटर तक तो ऐसा स्थान कोई है नहीं। आप अंदाज लगा सकते हैं उन लुटेरों के शातिरपने का। वे इतमीनान से पैदल चल कर आए-लूट की और फिर बिना किसी बौखलाहट के न केवल अपने वाहन तक लौट गये बल्कि पुलिस जब तक चाक-चौबंद होती तब तक उसकी जद से शायद बाहर भी हो लिए।

लूट हो गई-अब कितना नुकसान किसको हुआ यह कभी चौड़े नहीं आएगा-न वे बोलेंगे जिन ज्वैलर्स ने उस आंगडिय़े की सेवाएं लीं और उनकी हिदायत पर न आंगडिय़ा पूरा खुलेगा। यदि लुटेरे पकड़े भी गये तो माल के दो नम्बर के होने के चलते उसके खुर्द-बुर्द होने में भी देर नहीं लगेगी।

बात 'अपराधियों में भय' की है वह शायद शहर में रहा नहीं है-अपने एसपी पहले तो कई महीने कार्यवाहक रहे और फिर जब फुल टाइम भी हो लिए तब भी उन्होंने कुछ ऐसा नहीं किया कि शहर में उनकी धाक बने-उन्हें शायद जरूरत भी नहीं है-पीठ पर सूबे के गृह राज्यमंत्री का हाथ जो है। और जब कप्तान  वार्मअप नहीं दिखाई देता है तो अधीनस्थ भी आराम से गुजर कर लेते हैं। अतिरिक्त पुलिस अधीक्षक अपना समय पूरा कर चुके हैं, वे शायद केवल ट्रांसफर सूची का इंतजार कर रहे हैं और रहे दोनों सीओ, तो डब्बे उसी चाल चलते हैं जिस चाल से उनका इंजन चलता और गार्ड चलाता है। कहते हैं पुलिस का आधा काम उसकी धाक से होता है और वह धाक कहीं दिखाई नहीं दे रही है-धाक होती तो लुटेरे उस आत्मविश्वास के साथ लूट को अंजाम नहीं देते जैसे कल गोधूलि शाम में उन्होंने दी है।

—दीपचन्द सांखला

30 अगस्त, 2012

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