Monday, July 24, 2023

एल बी दम्माणी स्कूल प्रकरण

 पहले बारहगुवाड़ स्कूल के और फिर लक्ष्मीबाई दम्माणी स्कूल के नत्थूसर बास में स्थानांतरण के विरोध में चले आंदोलन के कारण इन स्कूलों में शिक्षण व्यवस्था ठप होने के प्रकरण ने स्कूली शिक्षा प्रशासन की क्षमताओं की पोल खोल दी है। ऊपर से तुर्रा यह कि स्कूली शिक्षा का सर्वोच्च प्रशासन यहां बैठता है। इसके बावजूद कल गतिरोध समाप्त भी हुआ तो जिला कलक्टर के हस्तक्षेप से ही। अन्यथा शिक्षा प्रशासन तो शायद यही सोचकर हाथ पर हाथ धरे बैठा रहा कि या तो आंदोलनकारी ही थक-हार कर धरना उठा लेंगे या बंद स्कूल की छात्रायें ही पढ़ाई का सपना लेना छोड़ देंगी।

पहले बाहरगुवाड़ स्कूल को नत्थूसर बास में बने भवन में स्थानांतरित करने के आदेश दिए गए। इसके विरोध और पक्ष में दोनों ही क्षेत्र के लोगों ने धरने-प्रदर्शन व अनशन किए तो जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) ने बारहगुवाड़ स्कूल के स्थानांतरण का आदेश रद्द कर दिया। इसके स्थान पर आनन-फानन में रघुनाथसर कुआं क्षेत्र में चल रहे एलबी दम्माणी उच्च माध्यमिक स्कूल में एक पारी में संचालित उच्च प्राथमिक स्तर तक की कक्षाओं को नत्थूसर बास में स्थानांतरित करने के आदेश जारी कर दिए गए। पहले आदेश से उत्पन्न स्थिति से सबक लिए बगैर जारी दूसरे आदेश का हश्र भी वही होना था जो हुआ। नया आदेश जारी होते ही रघुनाथसर कुआं क्षेत्र के लोगों ने स्कूल स्थानांतरण के विरोध में एलबी दम्माणी स्थूल पर ताला लगाकर धरना शुरू कर दिया। इसका नतीजा यह हुआ कि उच्च प्राथमिक स्तर तक की कक्षाओं की छात्राओं के नए स्थान पर जाने में रुचि नहीं होने के कारण और एल.बी. दम्माणी स्कूल में ही चलने वाली उच्च माध्यमिक स्तर तक की कक्षाओं की पढ़ाई भवन पर ताला जड़ा होने से ठप हो गई। यही नहीं, इस स्कूल के स्टॉफ ने भी बंद भवन के सामने बैठे-बैठे तीन सप्ताह तक अपनी ड्यूटी पूरी करने की औपचारिकता निभाई।

शहर के घनी आबादी क्षेत्र में और समुचित छात्रासंख्या वाले स्कूल को स्थानांतरित करने से पहले बालिका शिक्षा को बढ़ावा देने का ढिंढ़ोरा पीटते नहीं थकने वाले शिक्षा प्रशासन ने यह विचारने की भी जरूरत नहीं समझी कि इसका नतीजा क्या होगा? बालिकाओं को घर से दूरदराज भेजने के बजाय उन्हें घर में ही बैठाये रखने की मानसिकता के चलते इस निर्णय का स्थानांतरित स्कूल की छात्राओं पर क्या असर पड़ेगा? इस आदेश पर अपेक्षित प्रतिक्रिया भी हुई और 21 दिन तक एलबी दम्माणी स्कूल की छात्राओं की पढ़ाई ठप रही। उनकी प्रथम परख की परीक्षा का टाइम टेबल भी गड़बड़ा गया। इस सबके लिए जिम्मेदारी कौन तय करेगा?

बात आनन-फानन में लिए गए अविवेकपूर्ण फैसले तक ही सीमित नहीं है। बगैर आगा-पीछा सोचे निर्णय लिया तो विरोध होना ही था। इक्कीस दिन तक एलबी दम्माणी स्कूल बंद रहा और छात्राओं की पढ़ाई ठप रही तथा स्टाफ को बगैर काम के ही वेतन देना पड़ा। इस बीच छात्राओं ने जिला शिक्षा अधिकारी (मा.) से लेकर शिक्षा निदेशक तक से गुहार की लेकिन मौखिक आश्वासनों के अलावा उनकी पढ़ाई सुचारु करवाने का कोई उपक्रम नहीं हुआ। विभाग के किसी अधिकारी को मौके पर जाकर आंदोलनकर्ताओं को समझाने की फुरसत नहीं मिली। न कहीं प्रशासन या पुलिस की मदद लेकर सख्ती का संकेत देने का ही प्रयास किया गया। इसके बजाय जिला शिक्षा अधिकारी (माध्यमिक) ने तो स्वतंत्रता दिवस समारोह पर उनसे मिलने पहुंची छात्राओं को ही स्कूल भवन का ताला तोडऩे की नसीहत दे डाली। अन्तत: जिला कलक्टर की पहल पर कल मामले का निबटारा हुआ और बंद स्कूल के ताले खोले गए। क्या इसके लिए इक्कीस दिन तक इंतजार करना जरूरी था? शिक्षा प्रशासन की ऐसी अकर्मण्यता क्षम्य नहीं है। इस पर कार्रवाई की जिम्मेदारी कौन निभायेगा?

—दीपचन्द सांखला

25 अगस्त, 2012

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