Thursday, July 27, 2023

भाजपा और भारत बंद

 2004 के लोकसभा चुनावों में जारी भारतीय जनता पार्टी केविजन डाक्यूमेंटमें शत-प्रतिशत प्रत्यक्ष विदेशी निवेश (एफडीआइ) की वकालत की गई थी जबकि कांग्रेस ने तो इक्यावन प्रतिशत की ही छूट दी है! अलावा राजग सरकार के तब के वित्तमंत्री जसवंतसिंह ने भी एक से अधिक बार इसका समर्थन किया था। मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ जहां भाजपा की सरकार है और पंजाब जहां भाजपा सरकार में साझीदार हैं-इन तीनों ही राज्यों में वालमार्ट जैसी विदेशी कम्पनियों के थोक के स्टोर खुले हैं और खुलते जा रहे हैं। थोक के स्टोर खुदरा बेचने से गुरेज नहीं करते। इस सबके बावजूद एफडीआइ के साथ-साथ डीजल और एलपीजी के मुद्दों पर भाजपा की अगुवाई में कहें या बन्द करवाने वालों में मुख्य दल कहें-आज भारत बन्द है। भाजपा को यह समझ नहीं रहा है कि कोल आवंटन जैसे मुद्दे को छोड़ कर भाजपा कांग्रेस की चतुराई का शिकार कैसे हो गई है। कोल आवंटन का मुद्दा वहीथाजिस पर भाजपा ने संसद के पूरे मानसून सत्र को हंगामे की भेंट चढ़ा दिया।विनायकएक से अधिक बार जाहिर कर चुका है कि वह इस तरह की अर्थव्यवस्था का हिमायती नहीं है-लेकिन जो रास्ता देश ने अपना लिया उसके दस्तूर पूरे नहीं करेंगे तो नुकसान ज्यादा होगा। हालांकि पूरे विश् में अब इन आर्थिक नीतियों पर पुनर्विचार की जरूरत महसूस की जाने लगी है।

विचारधारा को लेकर भाजपा अपने स्थापना से ही भारी असमंजस में रही है-मुम्बई के स्थापना अधिवेशन में पुराने समाजवादी बीकानेर के महबूबअली ने चतुराई से गांधीवाद समाजवाद को चर्चा का विषय बना दिया था-दीनदयाल का एकात्म मानववाद जनसंघ के विलय के साथ विलुप्त-सा हुआ तो स्वदेशी जैसा मुद्दा जब तक दत्तोपंत ठेंगड़ी और राजीव दीक्षित थे तब तक ही सुर्खियों में रहा। देखा जाय तो जनसंघ से लेकर आज तक भाजपा का कोई ठोस वैचारिक आधार या एजेन्डा नहीं रहा। बानगी दें तो कश्मीर के विशेष दर्जे की धारा ३७० जैसे देश को गुमराह करने वाले राग को वह अकसर अलापती है जबकि सभी जानते हैं इसे खुर्दबुर्द तो किया जा सकता है हटाया नहीं जा सकता। पिछले एक अरसे से भाजपा की स्थिति और भी विचित्र हो गई है। सभीबड़े नेताअपनी-अपनी डफली बजा रहे हैं-अपना-अपना एजेन्डा रख रहे हैं-एक की बात या एजेन्डे को दूसरा ओवरटेक कब कर जाता है, पता ही नहीं चलता। कोल आवंटन के मामले का अचानक नेपथ्य में चले जाना इसका बड़ा उदाहरण है। कांग्रेस अपनी प्रमुख विपक्षी भाजपा की इस पोल से भली-भांति वाकिफ है और इसी के चलते वह अकसर इसका लाभ भी उठाती रही है।

कांग्रेस अपने बुरे दौर से गुजर रही है। इसके मानी कतई यह नहीं है कि भाजपा अच्छे दौर में है। हाल फिलहाल भाजपा अपने स्थापना के बाद के सबसे बुरे दौर में है, और इसीलिए राजनीतिक विश्लेषक तीसरे मोर्चे की सम्भावनाओं को गंभीरता से आंकने लगे हैं।

आज बन्द है। आए दिन-बन्द होते हैं, हड़तालें होती हैं। बिना इस पर विचार किये कि इन बन्द से या हड़ताल से देश को और गरीब को कितना नुकसान होता है। बन्द और हड़तालों के मुद्दों की पड़ताल करें तो हेकड़ी दिखाने, ताकत दिखाने, समूहविशेष द्वारा अपनी सुविधाएं बढ़ाने से आगे तो यह जाती ही नहीं है। अधिकतर बन्द लाठी के जोर पर हीसफलहोने लगे हैं। हो सकता है कभी-कभार यह मांगें जायज भी हों। लेकिन प्रत्येक नागरिक यथा व्यापारी, कर्मचारी, अधिकारी आदि-आदि कभी अपने कर्तव्यों के प्रति सचेष्ट देखे गये हों, याद नहीं पड़ता! ‘कर्तव्यशब्द ही अब आउटडेटेड सा लगने लगा है।

लम्बे अरसे से याद नहीं पड़ता कि कोई ऐसा बन्द हुआ हो जिसे सचमुच मुकम्मल कहा जा सके-जबरदस्ती के ये बन्द 2-3 बजे के बाद टिकते दिखाई नहीं देते। इस सबके बावजूद टीवी-अखबारों में मुकम्मल बन्द की सुर्खियां पाते हैं-हम मीडिया वाले भी अपने खरे होने के कर्तव्य का निर्वहन कब करेंगे, पता नहीं??

दीपचन्द सांखला

20 सितम्बर, 2012


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