Monday, July 17, 2023

2013 के चुनाव और कल्ला परिवार की की सक्रियता

 राज्य विधानसभा के पिछले चुनावों को तीन साल हो चुके हैं। आगामी चुनावों में दो से भी कम साल बचे हैं। शहर भाजपा और शहर कांग्रेस तो पता नहीं चुनावों के लिए कब सक्रिय होंगी लेकिन कल्ला परिवार ने अपने 'अस्त्र-शस्त्र' सम्हालने शुरू कर दिये हैं। 2003 के विधानसभा चुनावों में अपने चाचा डॉ. बी.डी कल्ला के उत्तराधिकारी की भूमिका के स्वांगीय प्रदर्शन से शहर राजनीति में चर्चित हुए अनिल कल्ला कल फिर सक्रिय होते दिखाई दिये-लेकिन 2008 के परिसीमन के बाद के बीकानेर पश्चिम के बदले जातीय समीकरण का शायद उन्हें भान नहीं है, तभी अपने जेबी संगठन राजीव यूथ क्लब के कल के कार्यक्रम के पेटे अखबारों में जिन सिपहसालारों के नाम दिये उनमें अधिकतर अन्य सामान्य वर्ग के ही नहीं केवल ब्राह्मण समुदाय से हैं। गणित के माध्यम से बात करें तो कुल इक्कीस नामों में 18 ब्राह्मण, एक अल्पसंख्यक और दो ओबीसी के नाम हैं। अनिल को चाहे अपने चाचा के लिए जाजम बिछानी हो या खुद अपने लिए बिसात-उन्हें इस गणित को ठीक से समझना होगा।

भाजपा किस मुकाम पे!

राष्ट्रपति चुनाव को लेकर जिस तरह पहले कांग्रेस संकट में घिरी दिखाई दे रही थी, अब प्रणब के उम्मीदवार घोषित हो जाने के बाद ठीक उससे उलट या उससे भी बदतर स्थिति में उसकी प्रमुख विरोधी पार्टी भाजपा दिखाई दे रही है। कांग्रेस ने तो न केवल अपने गठबंधन यूपीए को बड़ी चतुराई और होशियारी से मैनेज कर लिया बल्कि यह भी कि प्रणब के लिए राजग के अब कुल जमा बचे तीनों प्रमुख सहयोगी शिवसेना, जद (यू) और अकाली दल की सकारात्मकता भी हासिल कर ली। इनमें से शिवसेना ने तो प्रणब के समर्थन का एलान भी कर दिया है। नितिन गडकरी के नेतृत्व और उनके अपरिपक्व फैसलों के चलते भाजपा को सांप-छछूंदर की लड़ाई का पात्र बनाकर छोड़ दिया है। इससे भी नीचे स्थिति यहां तक पहुंच गई है कि पार्टी हाईकमान यह तय करने में भी अपने को असमर्थ पा रहा है कि इस लड़ाई में वह सांप की भूमिका में है या छछूंदर की। देखना बस यही है कि नरेन्द्र मोदी नितिन गडकरी को किस मुकाम पर बिठाते हैं।

विचित्र फैसले की मजबूरी

कई बार कोर्ट को विचित्र लेकिन जरूरी फैसला देना पड़ता है। यह बात पाकिस्तानी सुप्रीम कोर्ट के उस फैसले के सम्बन्ध में कह रहे हैं जिसमें पाकिस्तानी प्रधानमंत्री युसूफ र•ाा गिलानी को कोर्ट की अवमानना का दोषी ठहराते हुए पद के अयोग्य घोषित कर दिया गया है। इस फैसले में विचित्रता यह है कि कोर्ट ने उन्हीं राष्ट्रपति आसफ अली जरदारी से यह फैसला लागू करने को कहा है जिनके (जरदारी के) खिलाफ करोड़ों डॉलर की हेराफेरी का केस चलाने का आदेश कोर्ट ने प्रधानमंत्री गिलानी को दिया था। वर्ष 2009 में सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिये गये इसी आदेश को अनसुना करने का दोषी गिलानी को पाया गया है। यानी दूसरा जो भी प्रधानमंत्री बनेगा उसे भी कोर्ट कभी भी उन्हीं राष्ट्रपति जरदारी के खिलाफ केस चलाने का आदेश दे सकता है जिन्हें कोर्ट प्रधानमंत्री को उनके खिलाफ मामला दर्ज न करने पर हटाने को कहता है!

—दीपचन्द सांखला

20 जून, 2012

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