Monday, July 24, 2023

बेलगाम सोशल मीडिया : अंकुश जरूरी

 कहीं बम रखकर कई लोगों को एक साथ उड़ा देने अथवा अंधाधुंध गोलीबारी कर कई लोगों को मौत की नींद सुला देने से ज्यादा खतरनाक साबित हो रहे सोशल मीडिया के दुरुपयोग पर अंकुश लगाने का समय आ गया है। पड़ोसी देश बर्मा (म्यांमार) और हमारे पूर्वोत्तर राज्य असम में मुस्लिमों के प्रति हिंसा की घटनाओं को तोड़-मरोड़कर अथवा अन्य किसी समय, किसी अन्य समूह के साथ हुए अत्याचार के किस्सों व दृश्यों को एसएमएस, एमएमएस, फेसबुक, ट्विटर आदि के जरिये प्रचारित-प्रसारित किए जाने का नतीजा सामने है। असम की हिंसा को किसी तरह उचित नहीं ठहराया जा सकता। इसके कारण कुछ भी हों पर इससे सख्ती से निबटे जाने पर कोई दो राय नहीं हो सकती।  इन घटनाओं का संदर्भ लेते हुए चीन के भूकम्प में मारे गए लोगों के शवों को म्यांमार की ताजा हिंसा का नतीजा बताने वाली, तिब्बती कार्यकर्ता के आत्मदाह को मुस्लिम युवक को जलाने की घटना के रूप में तथा नौ वर्ष पूर्व थाइलैण्ड के दंगों में मारे गए लोगों की तसवीरों को भी इसी ताजा हिंसा का नमूना बताते हुए सोशल मीडिया के जरिये भारत और अन्य देशों में करोड़ों लोगों तक पहुंचाया गया। इसका परिणाम भी ये तसवीरें भेजने वालों की आशा के अनुरूप ही हुआ। ऐसी ही तसवीरों के कारण मुम्बई में हाल ही में हिंसा भड़की। उत्तरप्रदेश के कई शहरों में हिंसक प्रदर्शन हुए। इसी की प्रतिक्रियास्वरूप भेजे गए धमकी भरे एसएमएस और एमएमएस से डरकर बैंगलुरू से पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन शुरू हुआ। धीरे-धीरे महाराष्ट्र, गुजरात व अन्य शहरों से भी पूर्वोत्तर के लोग पलायन करने लगे। पूरा देश ही सोशल मीडिया के जरिये लोगों को भड़का कर देश में अशांति पैदा करने वालों के मनसूबों का शिकार हो गया। केन्द्र व संबंधित राज्य सरकारों के तमाम आश्वासनों के बावजूद यह पलायन और हिंसक विरोध प्रदर्शनों का सिलसिला थमा नहीं है। लोगों में विश्वास बहाली के प्रयास नाकाफी साबित हो रहे हैं।

हाल ही में मिस्र व लीबिया जैसे देशों में लम्बी चली तानाशाही के खिलाफ लोगों को सोशल मीडिया के जरिये ही लामबंद किया गया था। कुछ देशों में तानाशाही का अंत हुआ तो सोशल मीडिया की इस ताकत की चर्चाएं भी हुई। अब असम और म्यांमार की घटनाओं के सिलसिले में हिंसा भड़काने और आपसी नफरत पैदा करने के षड्यंत्र ने इस सोशल मीडिया के नए अवतार से रू-बरू करवाया है।

हालांकि केन्द्र सरकार ने पूर्वोत्तर के लोगों का पलायन शुरू होने के बाद कल ही बल्क एसएमएस और एमएमएस पर रोक लगा दी है लेकिन इससे इस नये खतरे से निबटने में कोई खास सफलता मिलने की उम्मीद नहीं लगती। संचार और सम्पर्क के इन बेलगाम होते संसाधनों पर कारगर नियंत्रण के लिए ²ढ़ता से समन्वित प्रयास करने का समय आ गया है। यदि ऐसा नहीं हुआ तो शरारती तत्त्वों और षड्यंत्रकारियों के लिए रिमोट से संचालित बमों व ए. के. 56 से भी ज्यादा खतरनाक यह सोशल मीडिया साबित हो सकता है।

—दीपचन्द सांखला

18 अगस्त, 2012

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