रामदेवरा जातरुओं की चानी दुर्घटना के हवाले से परसों ही इन मेलों की लडख़ड़ाती चाल और बदलते चरित्र पर बात की थी। कुछ जातरुओं ने कल फिर एक बस को आग के हवाले कर दिया। बस पर आरोप था कि उसने एक स्त्री पदयात्री को टक्कर मार दी जिससे वह घायल हो गई। हो सकता है बस अंधा-धुंध चल रही हो या बस का चालक अपने यात्रियों के साथ बातों में मशगूल हो। लेकिन बौद्धिकों के बीच एक जुमले का अकसर जिक्र किया जाता है कि सिर और दीवार की टक्कर में हमेशा गलती दीवार की ही नहीं होती है।
मानते हैं और अकसर देखते भी हैं कि सड़क पर गुजरती बड़ी या रफ-टफ गाड़ियां अपने से छोटी या नाजुक गाड़ियों को ज्यादा भाव नहीं देती हैं। बड़ी गाड़ियां तो अकसर अपना आतंक जमाने के लिए ऐसा करती होंगी लेकिन बोलेरो-केम्पर-यूटिलिटी और जीप जैसी गाडियां तो इन नाजुक कारों के पास से लगभग छेडख़ानी करती सी गुजर जाती हैं दुपहिया को तो मच्छर-मक्खी से ज्यादा गिनते ही कहां हैं। विषयान्तर जरूर हो गया है लेकिन कहा अनुभूत ही गया है।
बात मेलों की कर रहे थे तो लौट आते हैं। कई जातरू भी जब हाइवे की सड़कों पर या मार्ग-मेलों पर चलते हैं तो अहसान का टोकरा सिर पर लिए ही चलते हैं, मानो वे पैदल क्या जा रहे हैं, बाकी दुनिया पर बड़ी-भारी अनुकम्पा कर रहे हैं। हो सकता है आप मौज-शौक के लिए नहीं श्रद्धा या भक्ति भाव में ही जा रहे हों-तब भी यह आपका व्यक्तिगत मामला हुआ। श्रद्धा और भक्ति ठैठ अन्तस का भाव है इसलिए व्यक्तिगत भी। तो भाई फिर किसी अन्य पर अहसान और अनुकम्पा कैसी। और जिस मार्ग पर आप चल रहे हैं उस पर दूसरों को भी चलने का उतना ही हक है जितना हक आपको है। राष्ट्रीय राजमार्ग है तो उस पर सभी तरह के वाहन भी चलेंगे। यह जरूर उम्मीद की जानी चाहिए कि इन मेलों के दौरान सभी पूरी सावचेती से चलें।
इन मेलों में आए दिन होने वाली अनगिनत दुर्घटनाओं और मौतों से प्रशासन को भी सबक लेना चाहिए, जहां-जहां संभव है-इन राजमार्गों के सामान्तर अस्थाई वैकल्पिक मार्ग बनाए जा सकते हैं-फिर यह भी तय किया जा सकता है कि पदयात्रियों और जातरुओं पर इन राजमार्गों से गुजरने की पाबंदी लग जाए और जहां कहीं इन सड़कों से गुजरने की मजबूरी हो वहां अतिरिक्त जाप्ते की व्यवस्था की जा सकती है या बेरियर लगाये जा सकते हैं। और यह भी हो सकता है कि बढ़ते जा रहे इन अनाप-शनाप सेवा मण्डलों की सेवाएं भी यातायात व्यवस्था के लिए ली जा सकती है। इन वर्षों में देखा गया है कि खान-पान के सेवा मण्डल जरूरत से ज्यादा हो गये हैं। उनमें से कुछ मण्डलों को तो स्वत: ही और कुछ को प्रेरित करके उनकी सेवा का प्रकार बदला जा सकता है ताकि दुर्घटनाओं के होने से भक्तों की तो भक्ति में बाधा न पहुंचे और मौज-शौक के लिए जाने वालों के रंग में भंग न पड़े। यह भी कि दुर्घटनाग्रस्तों के परिजनों को ताउम्र का दर्द भी न मिले।
परिवहन विभाग को भी मुस्तैद होने कि जरूरत है कि वह न तो अवैध वाहन चलने दे और न हीं बिना लाइसेंस धारियों को स्टीयरिंग पर बैठने दे-लेकिन वे ऐसा करेंगे तो ऊपर की कमाई का क्या होगा-ऐसे ही अवसर होते हैं मोटी कमाई के। समाज भ्रष्टों को असम्मान की नजर से जब तक न देखने लगेगा तब तक ऐसा ही चलेगा। शायद इसी नजरअन्दाजी के चलते भ्रष्टाचरण को मान्यता तो दे ही रखी है समाज ने।
— दीपचन्द सांखला
19 सितम्बर, 2012
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