Friday, July 21, 2023

स्कूलों में तालाबंदी : जिम्मेदार कौन

 स्कूलों का नया सत्र अभी-अभी शुरू हुआ है और कई स्कूलों पर ताले लगाने की नौबत आ गई है। कारण है शिक्षकों की कमी अथवा सर्वथा अभाव, इससे विद्यार्थियों व अभिभावकों में उपजा रोष। गजनेर के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय के शिक्षकों के रिक्त पद नहीं भरे जाने से नाराज ग्रामीणों ने कल स्कूल पर ताला लगा दिया और धरने पर बैठ गए। बाद में जिला शिक्षाधिकारी के आश्वासन पर स्कूल का ताला खोला गया। इसी तरह बज्जू के राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय में शिक्षकों के एक दो नहीं 15 पद रिक्त पड़े होने से नाराज ग्रामीणों व विद्यार्थियों ने कल बीकानेर पहुंचकर कलक्टरी पर प्रदर्शन किया। जिला कलक्टर को ज्ञापन देकर ग्रामीणों ने चेतावनी दी कि यदि व्यवस्थायें नहीं सुधरी तो 23 जुलाई से स्कूल पर तालाबंदी कर बाजार बंद करवा दिए जाएंगे। शिक्षकों के अभाव के कारण ही सियाणा चारणान के उच्च प्राथमिक विद्यालय पर भी ताला जड़ दिया गया। सत्र की शुरुआत में ही शिक्षकों के रिक्त पदों को लेकर स्कूलों पर तालाबंदी की और घटनाएं भी हो चुकी हैं।

एक ओर शिक्षा का अधिकार जैसे कानून बनाये जा रहे हैं। सर्व शिक्षा अभियान के तहत प्रशिक्षण सहित विभिन्न कार्यक्रमों के माध्यम से शिक्षा के स्तर में गुणात्मक सुधार के उपक्रम किए जा रहे हैं। बच्चों को स्कूलों में ही रोके रखने के लिए पोषाहार कार्यक्रम वर्षों से चलाया जा रहा है। अधिकाधिक बच्चों को स्कूल तक लाने के लिए प्रवेशोत्सव आयोजित किए जा रहे हैं। वहीं स्कूल आने वाले बच्चों को पढ़ाने वाले शिक्षकों की ही व्यवस्था नहीं है।

ऐसी उम्मीद की जा रही थी कि समानीकरण के बाद शिक्षकों की कमी वाले स्कूलों में यह कमी दूर हो जाएगी, पर परिणाम वही 'ढाक के तीन पात' रहा। अभी भी सुविधाओं वाले अथवा शहरों या शहरों के निकटवर्ती स्कूलों में  शिक्षकों की भरमार है जबकि ग्रामीण क्षेत्र के विद्यार्थी शिक्षकों की कमी से जूझ रहे हैं।

शिक्षकों की कमी से तो इनकार नहीं किया जा सकता, इसके लिए भी राज्य सरकार व शिक्षा प्रशासन ज्यादा जिम्मेदार है। राजनीतिक आधार अथवा तुष्टीकरण के लिए स्कूल क्रमोन्नत तो कर दिए जाते हैं लेकिन एक-दो सत्र तक वहां वांछित विषय अध्यापकों की नियुक्ति हो ही नहीं पाती। फिर रिक्त पदों का आकलन कर भर्ती की प्रक्रिया शुरू भी होती है तो बार-बार नियम बदलने अथवा तकनीकी खामियों के चलते प्रकरण न्यायालय में जाने से यह प्रक्रिया ही समय पर पूरी नहीं हो पाती। यह सब कुछ निर्विघ्न हो भी जाये तो पदस्थापन में राजनीतिक सिफारिशों के चलते रिक्त पदों वाले स्कूलों के बजाय सुविधा वाले स्कूलों में सरपलस स्टॉफ भर दिया जाता है। फिर निश्चित अवधि तक ग्रामीण सेवा की शर्तें लगाने वाला शिक्षा प्रशासन ही इन्हें नजरंदाज करते हुए सत्ताबल या धनबल के चलते फिर ग्रामीण स्कूलों को शिक्षकों से खाली कर देता है।

स्कूलों में रिक्त पदों की समस्या को समग्र रूप से देखते हुए शिक्षा प्रशासन इसका समाधान का प्रयास दृढ़ इच्छाशक्ति से नहीं करेगा तब तक स्कूलों में तालाबंदी की ऐसी घटनायें होती रहेंगी।

—दीपचन्द सांखला

18 जुलाई, 2012

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