Friday, July 21, 2023

देवीसिंह भाटी का धरना

 2003 के विधानसभा चुनावों में जब देवीसिंह भाटी ने अपनी अलग पार्टी 'राजस्थान सामाजिक न्याय मंच' बना कर चुनाव लड़ा तो उन्होंने कमल को उखाड़ फेंकने का आह्वान किया था। वह खुद तो चुनाव जीत गये-लेकिन उन्होंने जिस कमल को उखाडऩे की बात की थी उस पर आज भी असमंजस है। 1993 और 1998 के चुनावों में उन्होंने जिस भारतीय जनता पार्टी के चुनाव चिह्न 'कमल' से जीत हासिल की वह 2008 के चुनावों में भी न केवल बीकानेर में बहुमत से खिला है बल्कि स्वयं देवीसिंह भी उसी 'कमल' चुनाव चिह्न से विधायक हैं। अगर उन्होंने श्रीकोलायत सरोवर में पसरे कमल की बात की तो वह भी ज्यों का त्यों आज भी जड़ें जमाए है।

अभी इन दिनों जब देवीसिंह का शहर से लगी गोचर के प्रति प्रेम जागा है तो अचानक जगे इस प्रेम का कारण समझ से परे हैं। हालांकि उल्लेखनीय यह भी है कि इसी गोचर की रक्षा के लिए 1984 में शुरू हुए भीनासर आंदोलन के प्रति देवीसिंह भाटी पूरी तरह साथ थे। देवीसिंह का इससे पहले पर्यावरण के प्रति प्रेम कभी रहा होता तो उनके अपने क्षेत्र के पौराणिक श्रीकोलायत तीर्थ का यह हश्र नहीं होता। श्रीकोलायत सरोवर की आगोर लगभग खुर्द-बुर्द हो रही है, सरोवर के पानी का व्यावसायिक उपभोग होने लगा है। हालांकि इनके लिए कभी-कभार की उनके द्वारा की जाने वाली कारसेवा के समाचार आते रहे हैं। लेकिन इसके  असरकारक परिणाम देखने को नहीं मिले। देवीसिंह भाटी जिस मुद्दे पर आज धरना दे रहे हैं-उस पर किसी का विरोध भला क्यों होगा-गोचर है तो रहना ही चाहिए। इसके लिए उन्होंने बीकानेर के अधिकतर सनातनी सन्तों की शुभाकांक्षा भी हासिल कर ली है। लेकिन क्या इस तरह के मुद्दों को अब प्रासंगिक सोच के साथ नहीं उठाया जाना चाहिए? क्या इस आंदोलन को सड़कों जैसी जनसुविधाओं के खिलाफ ध्वनित करने की बजाय इस बात को पुरजोर तरीके से उठाया जाना चाहिए कि इससे पहले सड़कों, संस्थानों या अन्य जनसुविधाओं के नाम पर जितनी गोचर भूमि अवाप्त की गई है पहले उतनी ही भूमि उसके एवज में गोचर के लिए आवंटित की जाये और फिर इसके बाद प्रस्तावित या निर्माणाधीन सड़कों के लिए जितनी भूमि ली जा रही है उतनी भूमि गोचर को दी जाने की बात करना न केवल सकारात्मक सोच को दर्शाएगी बल्कि प्रासंगिक भी होगी-अन्यथा सड़कें बनाने का ही सिरे से विरोध करना जनसुविधाओं में अड़चन डालना कहलाएगा।

दीपचन्द सांखला

9 जुलाई, 2012

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