Thursday, July 27, 2023

न्याय के घर देर भी, अंधेर भी

 कहावत तोभगवान के घर देर है अन्धेर नहींहै लेकिन लगता है न्याय के घर देर और अन्धेर दोनों है। गोधरा कांड के बाद गुजरात के अधिकांश हिस्सों में करवाये गये सुनियोजित दंगों पर एक फैसला आया है। अहमदाबाद के नरोदा पाटिया इलाके में 97 लोगों को जिनमें बच्चे, मासूम, बूढ़े भी थे-को बेरहमी से मार दिया गया, औरतों के साथ सामूहिक बलात्कार किया गया। यह कुकृत्य करने वाले जनप्रतिनिधि और तथाकथित जननेता थे-कायदे से जिनकी जिम्मेदारी दंगों, बलात्कार और हत्याओं को रोकने की होती है।

2002 में गुजरात में हुए दंगों पर न्यायिक लड़ाई का इतिहास बहुत हैरत-अंगेज है। कई बार जज तक झुंझला गये हैं। आप उस तरह की न्यायिक प्रक्रिया का अंदाजा लगायें, जिसमें वहां का शासन-प्रशासन बहुत शातिराना तरीके से पूरी न्यायिक-प्रक्रिया का असहयोग करने पर उतारू हो-ऐसे में जजों की झुंझलाहट स्वाभाविक है। 2002 के दंगों के समय और दंगों के बाद से अब तक वहां वही नरेन्द्र मोदी मुख्यमंत्री हैं जिनके साथ गुजरात के 2002 के दंगों का मास्टर माइन्ड होने का आरोप साये की तरह लगा है। मोदी की करीबी पूर्वमंत्री और विधायक माया कोडनानी को 18 और 10 साल की दो सजाएं दो अलग-अलग मामलों में सुनाई गई हैं। सजा में माननीय जज ज्योत्स्नाबेन याग्निक ने यह स्पष्ट किया है कि यह दोनों सजाएं साथ-साथ नहीं एक के बाद एक चलेंगी यानी ऊपरी अदालतें यदि फैसले को कायम रखती है तो 57 वर्षीया माया को 28 वर्ष जेल में बिताने होंगे। इसी तरह एक अन्य आरोपी हैं बाबू बजरंगी-यह तब बजरंग दल में थे और अब शिवसेना में है-बातचीत में हत्याएं करना बेशर्मी से कबूलतें भी हैं-इन बाबू बजरंगी को सजा के तौर पर उनकी प्राकृतिक मृत्यु तक जेल में रहना होगा-यानी सचमुच का आजीवन कारावास! मौत और भय का पर्याय बने इन बाबू ने अपना उपनाम ब्रह्मचर्य की मिसाल उन बजरंगबली के नाम पर रखा हुआ है जो हमारे यहां निर्भय के देवता भी माने जाते हैं।

गुजरात दंगों की जब भी बात होती है तो 1984 में इंदिरा गांधी की हत्या के बाद देश के कई हिस्सों और राजधानी दिल्ली में हुए सिख विरोधी दंगों की बात भी हुए बिना नहीं रहती। जिनके पीड़ितों को आज 28 साल बाद भी न्याय का इंतजार है। इसीलिए आज की बात का शीर्षक हमनेन्याय के घर देर भी और अन्धेर भीदिया है। अंग्रेजी में एक कहावत भी है किदेरी से किया न्याय न्याय नहीं होता।सिख विरोधी दंगों में अधिकतर नामजद कांग्रेसी थे। कुछ बड़े नेता भी। यह आरोपी नेता 1984 के बाद अधिकतर लोप्रोफाइल में रहे। पार्टी में इनका सम्मान कम हुआ और सभी न्यायिक प्रताड़ना से लगातार गुजर रहे हैं-और यह भी इन अट्ठाइस वर्षों में डराने-धमकाने से लेकर प्रलोभन, दाबा-चींथी जैसी करतूतें भी वे करते रहे होंगे! इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि न्याय में देरी नहीं होनी चाहिए। लेकिन 1984 के दंगों की न्यायिक प्रक्रिया इतनी लम्बी हो गई है कि वह देर नहीं अंधेरे की श्रेणी में आने लगी है। वैसे भी भारतीय न्यायप्रणाली की आलोचना इसलिए ज्यादा होती है कि वह कुछ ज्यादा ही लेट लतीफ है।

1984 के दंगों और 2002 के दंगों में एक बड़ा अन्तर है। यहां यह स्पष्ट कर दें कि यह सब बताने का मकसद किसी भी हिंसा को कमतर आंकना नहीं है-दोषी है तो उसे कानून सम्मत सजा होनी चाहिए और तय समय में होनी चाहिए!

बात हम दंगों के पीछे की मानसिकता की कर रहे हैं। 1984 के सिख विरोधी दंगे अधिकांशत: गुस्से, बदले की भावना और अपने राजनीतिक आका की नजरों में चढ़ने की परिणति थे तो 2002 के गुजरात दंगों के पीछे की मानसिकता एक समुदाय विशेष को व्यावसायिक और राजनीतिक क्षेत्रों से हटाने की घृणित मानसिकता लिए हुए थे। मुसलिम समुदाय को नरेन्द्र मोदी की पार्टी भारतीय जनता पार्टी की विरोधी कांग्रेस पार्टी का वोटबैंक माना जाता है, जिसके चलते चुनावी राजनीति में अन्य परिस्थितियां समान रहने पर भी मुसलिम वोटों के चलते कांग्रेस के वोटों की बढ़त की सम्भावना हमेशा बनी रहती है। दूसरा कारण यह कि दूसरे समुदाय के मध्यम, उच्च मध्यम और मजदूर वर्ग की इस मानसिकता को क्रूर और घृणित तरीकों से हवा दी गई कि यह एक समुदाय यदि रहेगा ही नहीं तो आपके लाभ के अवसर बढ़ेंगे। गुजरात के दंगों में इस तरह की अमानवीय और क्रूर-आकांक्षाओं ने ज्यादा काम किया जो बेहद खतरनाक है।

जहां सिख विरोधी दंगों और स्वर्णमंदिर में सेना के प्रवेश पर केवल कांग्रेस ने बल्कि कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने स्वर्ण मंदिर जाकर माफी मांग ली है, इसके ठीक उलट नरेन्द्र मोदी हमेशा इन बातों पर बेहद ढिठाई की मुद्रा में पेश आते हैं। हालांकि माफी मांगने से किसी के गुनाह माफ नहीं होते हैं-जो दोषी हैं उन्हें सजा मिलनी ही चाहिए। हां मृत्युदंड किसी को नहीं-कल ही फैसला सुनाती विद्वान न्यायाधीश ज्योत्स्नाबेन याग्निक ने भी कहा है कि मृत्युदण्ड से मानवीय गरिमा कम होती है।

दीपचन्द सांखला

01 सितम्बर, 2012


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