Wednesday, August 30, 2023

बीकानेर पश्चिम विधानसभा क्षेत्र : कांग्रेस की पड़ताल

 राजस्थान सरकार के मंत्रिमंडल में वरिष्ठतम, पूर्व प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष और बीकानेर पश्चिम विधायक डॉ. बी. डी. कल्ला की दाल उम्मीदवारी के मामले में इस बार फिर पकती नहीं लग रही। गत 43 वर्षों से डॉ. कल्ला बीकानेर शहर और परिसीमन के बाद बने बीकानेर पश्चिम से उम्मीदवारी के दावे में कांग्रेस में लगभग चुनौतीहीन रहे, डॉ. गोपाल जोशी जैसे दिग्गज के बावजूद। आखिर पाला गोपाल जोशी को ही बदलना पड़ा।

कल्ला के कुल 9 चुनावों में 6 बार जीत और तीन बार हार का रिकॉर्ड कोई बहुत गड़बड़ तो नहीं है। 2018 के चुनाव में डॉ. कल्ला ने आधिकारिक घोषणा तो नहीं की लेकिन लगातार दो बार हारने के बाद डिगे आत्मविश्वास में अनौपचारिक तौर पर यह जरूर कहा कि यह मेरा आखिरी चुनाव है। शायद यही वजह थी कि गत कुछ महीनों में डॉ. कल्ला की दावेदारी डगमगाने की सुरसुरी चली और किसी युवा चेहरे को उम्मीदवारी देने की बात होने लगी। यह बात इतनी मुखर हुई कि डॉ. कल्ला को बाकायदा कहना पड़ा कि मैं खुद पूर्णत: तंदुरुस्त हूं और अगला चुनाव मैं ही लड़ूंगा। यहां तक तो ठीक थाउसी बयान की पूंछ में उनके इस कहे ने उत्प्रेरक का काम कर दिया कि बीकानेर पश्चिम से दावेदारी लायक कोई युवा है नहीं। उनका यह कहना था, शहर से कई युवाओं ने अपनी दावेदारी केवल जाहिर कर दी बल्कि पूरी तरह चेतन भी हो गये। 

डॉ. कल्ला के दिन ऐसे क्या फिर गये कि टिकट की दावेदारी डगमगाने लगी। सत्ता का आखिरी पड़ाव मान कल्ला कुछ ज्यादा ही सयाने हो गये, उनका यह अति सयानापन प्रदेश हाइकमांड को रास नहीं आया। इसी वजह से मंत्रिमंडल के पुनर्गठन में उनके मंत्रालय बदले गये और अब तो लगता यह है कि उनकी दावेदारी डगमगाने की हवा भी प्रदेश हाइकमांड ने ही चलाई है।

बीकानेर पश्चिम से दावेदारी की सूची उतनी लंबी तो नहीं जितनी बीकानेर पूर्व से दावेदारों की है, लेकिन जितनी भी लंबी है, भारी-भरकम राजनीतिक इतिहास वाले डॉ. कल्ला के सामने कम लंबी नहीं है। 

वहीं बीकानेर पूर्व जब से विधानसभा क्षेत्र बना, तब से कांग्रेस वहां अपना खाता ही नहीं खोल पायी और किसी ने दावेदारी स्थाई तौर पर जमाई, ऐसे में वहां की सूची लंबी होनी थी। लेकिन दावेदारों की जितनी लंबी सूची बीकानेर पूर्व की बनी वह भी कम उल्लेखनीय नहीं है।

खैर! फिलहाल बात बीकानेर पश्चिम की करते हैं। पश्चिम की सूची में डॉ. बीडी कल्ला के अलावा कुछ जो नाम पेपरवेट वाले हो सकते हैं, उनमें गुलाम मुस्तफा बाबू भाई, राजकुमार किराड़ू्र, लोकेश शर्मा, डॉ. राजू व्यास, अरुण व्यास और दीन मोहम्मद मौलानी उल्लेखनीय हैं। कुछ के नामोल्लेख के मानी यह कतई नहीं है कि शेष नाम बट्टे खाते हैं। राजनीति में कुछ भी संभव है, इसी बीकानेर से 1977 में महबूब अली को जनता पार्टी की उम्मीदवारी मिलना इसका प्रमाण है तो 1980 में प्रो. बीडी कल्ला को कांग्रेस का टिकट मिलने की उम्मीद खुद कल्लाजी के 'भाइसा' जनार्दन कल्ला को भी नहीं थी। यहां तक कि कल्लाजी के रिश्ते में बहनोई और पूर्व विधायक गोपाल जोशी के समर्थक डॉ. कल्ला के राजनीतिक प्रदर्शनों को होठों पर दो अंगुलियों रख 'बीड़ी-बीड़ी' कर उड़ाने लगे थे। इतनी ही नहीं, कल्ला को जब टिकट मिल गई तो यह कहा गया कि यह कोई सिनेमा की टिकट नहीं है जो गये सिनेमा देख आये।

लेकिन पहुंच और अनुकूलताएं ऐसी बनी कि 1980 में बीडी कल्ला बीकानेर शहर से केवल कांग्रेस उम्मीदवारी ले आये बल्कि जीत भी गये। नाम के साथ प्रोफेसर लगने का लाभ भी हुआ कि सचेतक-राज्यमंत्री और केबीनेट मंत्री तक बन गये। मिजाज से ब्यूरोक्रेट कल्ला उस रुतबे को अब तक भोग रहे हैं।

सफाई यही है कि दावेदारों की लंबी-चौड़ी सूची में ऐसा भी कोई टिकट ला सकता है जिसका ऊपर नामाल्लेख करना जरूरी नहीं समझा या ऐसा भी कोई जिसने मुखर दावेदारी की हो।

लेकिन उम्मीदवारी को लेकर अपने कुछ रिजर्वेशन हैं। डॉ. राजू व्यास और लोकेश शर्मा जैसे बाहरी लोगों को टिकट नहीं मिलना चाहिए, कांग्रेस ही नहीं भाजपा में भी। दूसरी बात यह कि संघ-भाजपा ने देश में जैसा माहौल बना दिया है उसमें कांग्रेस द्वारा किसी अल्पसंख्यक को टिकट देना फिलहाल सीट खोना होगा। लेकिन गुलाम मुस्तफा जैसे समर्पित कांग्रेसियों की कैसी भी सुध नहीं लेना, कांग्रेस की कृतघ्नता है। ऐसों को चुनावी राजनीति में झोंकने की बजाय यूआईटी अध्यक्षी देना चाहिए थी।

गत चार वर्षों में सूबे की कांग्रेसी सरकार अपने अन्तर्विरोधियों से जूझती रही। जो बहुत उसे करना था, नहीं कर पाई। इन्हीं वजहों का खमियाजा इस वर्ष होने वाले चुनाव में भुगतने से रोकना कांग्रेस के लिए मुश्किल होगा।

दीपचन्द सांखला

31 अगस्त, 2023