Friday, July 21, 2023

पुलिस महकमे की साख

 शहर के वे बाशिन्दे जो हल्लर-फल्लर का थोड़ा-बहुत भी शौक फरमाते हैं, वे यह वाकफियत-टुकड़ों में ही सही, मोटा-मोट रखते हैं कि इस शहर में कहां-कहां पर्ची सट्टा होता है। क्रिकेट के बड़े बुकी कौन-कौन हैं और उनके अड्डे कहां-कहां चल रहे हैं। कौन-कौन औरतें कहां-कहां शरीर बेचने को मजबूर होती हैं, कौन जेबकतरा है, कौन चोरियां करता है। कौन है जो 'हफ्ते'-'महीने' की उगाही करता है, पुलिस की दलाली कौन करता है, अवैध जिप्सम से कौन माला-माल हो रहे हैं, नकली देशी घी की बड़ी मण्डी के रूप में शहर को बदनाम करने में कौन-कौन लगे हैं और यह भी कि चाहे जिस ब्राण्ड का देशी घी, चाहे जैसी पैकिंग में हासिल कर सकते हैं। शराब कहां-कहां अवैध रूप से बिकती है और शराब के कौन-कौन से ठेके पर या अंग्रेजी शराब की दुकान में किस तरफ खिड़की है जिसे खटखटाने पर आठ बजे के बाद या तड़के शराब मिल सकती है। शहर में कितने ऑटो अवैध चल रहे हैं, और कितनी अवैध बसें और अन्य चौपहिया वाहन सवारियां ढो रहे हैं।

और भी बहुत कुछ ऐसा होता है, सबकी अपनी-अपनी सेटिंग है, इसलिए सभी कुछ 'स्मूथली' होता चला जा रहा है। कोई पकड़ा तो तब जाता है जब वह बिना सेटिंग के कुछ करने का दुस्साहस करता है या फिर पुलिस को अपने मासिक-वार्षिक रिकार्ड को दुरुस्त करने को कुछ करना होता है।

यह सब बातें तब 'रिकलेक्टÓ हो गईं जब कल शहर के एक ज्वैलर्स के यहां डकैती का प्रयास हुआ-शायद वे नौसिखिये थे। तभी 'प्रथम ग्रास: मक्षिका पातÓ हो गया और जल्दी पकड़े भी जाएं। वे जो गाड़ी लाए उस पर नं. नहीं थे और हों तो भी उससे क्या फर्क पडऩे वाला था। नकली नं. प्लेट लगाने की कहां मनाही है। कई गाडिय़ों पर अध्यक्ष, उपाध्यक्ष, महामंत्री और कोई नामी-बेनामी संगठन का नाम या फिर किसी गाड़ी पर सरकार से तो किसी पर पुलिस से अनुबन्धित होने की मुनादी लिखी होती है। यह भी देखा गया है कि अनुबन्ध समाप्त होने पर भी यह मुनादी नहीं हटाई जाती। इस तरह की गाडिय़ों को अवैध कामों के लिए ज्यादा सुरक्षित माना जाता है। ऐसा भी देखा गया कि कुछ लोग गाड़ी के सिर या ललाट पर घूमती हुई लाल या ब्ल्यू बत्ती लगाने से भी नहीं चूकते।

यह तो ध्यान नहीं आ रहा कि पिछले कुछ वर्षों से इस तरह के वाहनों की नम्बर प्लेटों को लेकर या इस तरह की मुनादियों या बत्तियों को लेकर पुलिस ने कोई अभियान चलाया हो। कोई बेचारा कान्स्टेबल या होमगार्ड अपनी ड्यूटी करने का साहस भी कर ले तो उसे जलील ही होना पड़ता है। जैसे एक ऑटो रिक्शा वाले के दुव्र्यवहार से परेशान महिला कांस्टेबल द्वारा उसके शीशे तोड़ दिए जाने पर उस महिला सिपाही को टैक्सी वाले से सार्वजनिक रूप से माफी मांगनी पड़ी। हालांकि शीशा तोडऩे का एक्शन गलत था लेकिन उससे माफी मंगवाना भी एसपी के अच्छे प्रशासनिक अधिकारी होने पर सवालिया निशान लगाता है। ऐसे ही पिछले दिनों म्यूजियम तिराहे पर एक होमगार्ड ने एक वाहन को रोकने की कोशिश की तो वह गाड़ी वाला उसे ठोक कर ही चला गया-इस घटना को पुलिस ने गम्भीरता से लिया हो, इस तरह की कोई सूचना नहीं है।

यह सब कुछ अपने बीकानेर में ही होता हो ऐसा नहीं है। पूरे देश में कमोबेश ऐसा ही कुछ होता रहा है, बस घटनाएं, अवैध काम, स्थान और पात्र आदि बदलते हैं।

'विनायक' अपनी धारणा पहले भी जाहिर कर चुका है कि पुलिस महकमे को यह लकवा राजनेताओं का दिया हुआ है, जो अपने स्वार्थों के लिए पुलिस का दुरुपयोग करने से कभी नहीं चूकते।

—दीपचन्द सांखला

30 जुलाई, 2012

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