Thursday, July 27, 2023

रू-बरू अभियान

 प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की शहर इकाई और विधायक रू--रू अभियान के तहत विभिन्न वार्डों-मोहल्लों में जा रहे हैं, और वहां की समस्याओं को उठाते हैं। बीकानेर नगर निगम और नगर विकास न्यास को कोसते हैं। महापौर और न्यास अध्यक्ष को भुण्डाते हैं। इसमें दो राय नहीं कि शहर में सड़कों-नालियों और रोडलाइटों के रख-रखाव से लेकर साफ-सफाई तक की समस्याएं हैं, भ्रष्टाचार और नौकरी के कर्तव्य को निभाने में कोताही के चलते जन समस्याएं आम हैं। नगरवासी भी अब इन सभी समस्याओं के बीच रहने के आदी हो गये हैं। केवल आदी बल्कि इन सभी समस्याओं में बढ़ोतरी करने में ही लगे रहते हैं। एक ओर नगर निगम जहां अपने सीमित आर्थिक संसाधनों और सफाईकर्मियों की कमी का बहाना बनाती है तो वहीं नगरवासी भी हमारे ऐसे हैं कि वे गंदगी की एक कारक पॉलीथिन की थैलियों का उपयोग करना कानूनी रोक के बावजूद नहीं छोड़ते हैं। इन थैलियों और घर के कचरे-फूस को गली-सड़क की नालियों में डालने की आदत पुरानी है-इससे केवल नालियां रुकती हैं-बल्कि सीवर लाइनें भी जाम हुए बिना नहीं रहतीं-इन्हीं सब के चलते गंदा पानी और कीचड़ सड़कों पर पसरा रहता है और इसी कारण सड़कें उखड़ती रहती हैं।

रू--रू अभियान को सत्तापक्ष चुनावी स्टंट बताता है क्योंकि अगले ही वर्ष विधानसभा चुनाव होने हैं। हो सकता है भाजपा का मकसद भी सुर्खियां पाना ही हो। लेकिन क्या केवल इससे उनके द्वारा उठाये मुद्दों की गम्भीरता कम हो जाती है! देखा गया कि किसी भी समस्या पर निगम और न्यास तब तक ध्यान नहीं देते हैं जब तक कि या तो वह समस्या विकराल नहीं हो जाती या फिर आमजन का गुस्सा आपे से बाहर नहीं हो जाता।

नौ मन तेल होगा...

दीखते चुनावों के चलते ही भाजपा यदि यह सब कर रही है तो कांग्रेस भी वोट बटोरू योजनाएं लाने से नहीं चूक रही है-हालांकि इनसे चुनावों में दोनों को लाभ कितना होगा देखने वाली बात होगी। जैसे कोटगेट रेलवे फाटक के अण्डरब्रिज को लें तो कहा जा रहा है कि कल्ला और उनके सहयोगी न्यास अध्यक्ष हाजी मकसूद इस कोशिश में हैं कि इसे आगामी चुनावों से पहले पूरा करवा लिया जाय। क्योंकि इस आरयूबी से लाभान्वित होने वालों में अधिकांश बीकानेर की पश्चिमी विधानसभा के वोटर होंगे; कल्ला का परम्परागत चुनाव क्षेत्र भी यही है। लेकिन कल्ला में इतना आत्मबल नहीं है कि वे दृढ़ता से इसके समर्थन में खड़े दिखाई देवें। महात्मा गांधी रोड के प्रभावित कुछ व्यापारियों का एक समूह उनसे मिल क्या लिया-कल्ला डगमगा गये और रेल बायपास के लिए मुख्यमंत्री के पास प्रतिनिधिमंडल भेज दिया। किसी भी बड़े काम में किन्हीं थोड़े से लोगों का अहित या थोड़े समय के लिए उन्हें असुविधा हो सकती है, केवल इसके चलते योजनाओं को आगे-पीछे नहीं किया जाता-इसी तरह से एलिवेटेड रोड की योजना ठण्डे बस्ते में चली गई थी। याद नहीं पड़ता तब कल्ला समेत किसी भी कांग्रेसी ने या भाजपा के किसी नेता ने इस पर मुंह भी खोला हो।

रेल बायपास वह राधा है जो बिना नौ मन तेल के नहीं नाचेगीˆइस शहर की जन सुविधाओं की योजनाएं किसी किसी प्रभावशाली के स्वार्थ, जिद या सनक की भेंट चढ़ जाती हैं। सातों सम्भागों में ऐसा नजारा सिर्फ बीकानेर में ही देखा जा सकता है जहां योजनाएं किन्हीं के स्वार्थ, सनक और जिद की शिकार होती रही हैं, अभी कुछ दिन पहले ही गोचर के नाम पर देवीसिंह भाटी ने भी यही किया था। तब भी यह तथाकथित सभी जननेता मुंह पर पट्टी बांधे रहे। इसका नकारात्मक पक्ष यह भी है कि यदि ऐसा नहीं होगा तब हमारे नेता बीकानेर के पिछड़े होने की जगह कौन-सा राग अलापेंगे!!

दीपचन्द सांखला

03 सितम्बर, 2012



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