Friday, July 21, 2023

प्रणब के बाद यू पी ए का संकटमोचक कौन

 केन्द्र में सत्तारूढ़ संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के उम्मीदवार के रूप में 76 वर्षीय प्रणब मुखर्जी अपेक्षानुरूप राष्ट्रपति पद का चुनाव जीत गए हैं। वे 25 जुलाई को राष्ट्रपति पद की शपथ लेने के बाद रायसीना हिल्स स्थित राष्ट्रपति भवन में रहने लगेंगे। संभवत: यह पहला अवसर होगा जब प्रणब दा जैसा सक्रिय राजनेता और संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन की सरकार में नम्बर दो का स्थान रखने वाला व्यक्ति राष्ट्रपति के पद पर चुना गया है। हाल के अतीत पर ²ष्टि डालें तो सरकार और राजनीति में ऐसा महत्त्व रखने वाला व्यक्ति कम ही इस पद पर पहुंचा है। ज्यादातर सक्रिय राजनीति से दूर चले गए अथवा डॉ. ए.पी.जे. अब्दुल कलाम जैसे राजनीति से पृथक क्षेत्र की हस्ती ही राष्ट्रपति भवन को सुशोभित करती रही हैं।

लगभग 43 वर्ष के लम्बे राजनीतिक अनुभव वाले प्रणब मुखर्जी अपने नये रोल में क्या कुछ कर पाएंगे यह तो आने वाला समय ही बताएगा लेकिन सक्रिय राजनीति से उनकी दूरी कम से कम यूपीए सरकार के लिए तो भारी पड़ती दिखाई देती है। प्रणब मुखर्जी के राष्ट्रपति पद का नामांकन पत्र दाखिल करने से पहले केन्द्रीय वित्त मंत्री के पद से इस्तीफा देने के साथ ही इस बात पर बहस होने लगी थी कि अब सरकार में नम्बर दो कौन होगा। इसे नम्बर दो की लड़ाई का ही नतीजा कहा जाएगा कि एनसीपी के शरद पंवार ने पैंतरा बदला। कहा यहां तक जा रहा है कि उन्होंने एनसीपी के मंत्रियों के इस्तीफे दिलवाकर सरकार को बाहर से समर्थन देने की बात तक कह दी है। बाद में यूपीए प्रमुख सोनिया गांधी से मुलाकात के बाद उनके तेवर कुछ ढीले हुए और प्रधानमंत्री की अनुपस्थिति में तीन मंत्रियों के समूह को निर्णय लेने  का उत्तरदायित्व सौंपने का फार्मूला तय किया गया। हालांकि एनसीपी को लेकर अभी भी संशय है।

पर सरकार में नम्बर दो होने के अलावा प्रणब मुखर्जी कई दलों के गठबंधन से बनी यूपीए सरकार के लिए संकटमोचक की भूमिका भी निभाते रहे हैं। राष्ट्रपति पद के चुनाव के लिए भी अंत तक पत्ते नहीं खोलने वाली तृणमूल कांग्रेस सुप्रीमो ममता बनर्जी को अन्तत: अपने पक्ष में मतदान के लिए राजी करना एक तरह से प्रणब दा का ही कारनामा है। इससे पहले भी जब-जब यूपीए सरकार पर संकट के बादल मंडराये, तब-तब प्रणब दा ने संकटमोचक की भूमिका निभाई। इनमें से ज्यादा संकट तो उन्हीं के राज्य की तृणमूल सुप्रीमो  ममता बनर्जी के ही पैदा किए हुए थे। इसके अलावा भी संकट के दौर में अधिकांशत: प्रणब दा अपनी सरकार के तारणहार के रूप में पहचाने गए। अब जबकि वे राष्ट्रपति भवन पहुंच गए हैं तो यह सवाल भी मुंह बाये खड़ा है कि यूपीए का नया संकटमोचक कौन होगा। यह ऐसी भूमिका है जिसके लिए नम्बर दो की तरह कोई होड़ भी होती दिखाई नहीं देती। अभी लोकसभा के चुनाव 2014 में होने हैं। तब तक यूपीए के वर्तमान ढांचे को अक्षुण्ण बनाये रखते हुए चुनाव की वैतरणी पार करवा ले जाने के लिए प्रणब दा जैैसे संकटमोचक की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता। पर सवाल यह है कि यूपीए का नया संकटमोचक कौन होगा?

—दीपचन्द सांखला

23 जुलाई, 2012

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