Friday, July 21, 2023

मोबाइल फोन की घंटी का आतंक

 खबर है कि राजस्थान के सरकारी स्कूलों में अध्यापकगण कक्षा में मोबाइल फोन नहीं ले जा सकेंगे। एक जमाना था कि लैंड लाइन फोन जिसे तब फोन या टेलीफोन ही कहा जाता था, क्योंकि तब मोबाइल फोन की कोई आहट नहीं थी। तब लोकल कॉल करने से पहले भी व्यक्ति तीन बार सोचता था कि जरूरी है तो ही करूं। लेकिन अब इस मोबाइल ने यह झिझक एकदम खत्म कर दी है। होने यह भी लगा है कि एक ही मंजिल पर बैठे व्यक्ति से मोबाइल पर बात करने में भी कोई झिझक नहीं देखी जाती-कॉल चार्जेज लगने के बावजूद।

विज्ञान कहता है कोई भी ध्वनि कभी भी नष्ट नहीं होती है-यानी आप चाहे मुंह से बोलें या किसी कारण-अकारण से ध्वनि उत्पन्न करें। वह ध्वनि या शब्द इस आकाश में अमर हो जाते हैं। विज्ञान अभी यह बताने में अक्षम है कि इस आकाश में या शून्य में कितनी ध्वनियों के बाद क्या अनहोनी हो सकती है लेकिन इसके यह मानी कतई नहीं है कि यह क्षमता हमेशा के लिए असीमित है। कभी कुछ होगा तो असहनीय ही होगा।

खैर! जब हम सभी कुछ का उपयोग और दोहन हवस की हद तक करने लगे हैं तो इसमें भी क्यों रुकें! आये दिन समाचार आते हैं कि इन मोबाइल टॉवरों के आस-पास रहने वालों को रेडिएशन या विकिरण से संक्रमित होने का खतरा है। बावजूद इसका उपयोग हम बेझिझक और बिना जरूरत के करने से नहीं चूकते।

वाहन चलाते हुए मोबाइल फोन पर बात करना नियम विरुद्ध है और दण्ड का प्रावधान है। लगता है यह सरकारी निषेध भी अन्य कई निषेधों की भांति तोडऩे के वास्ते ही है। देखा गया है कि कई मोबाइल धारक मोबाइल फोन की इस घंटी से इतने आतंकित रहते हैं कि जैसे ही घंटी बजती है वे सुध-बुध खोकर उसे अटैण्ड करते हैं। जैसे यदि एक सेकण्ड की देरी भी हुई तो कोई अनर्थ कर देगी। यह हड़बड़ाहट कई दुर्घटनाओं का कारण बनती है।

कई गम्भीर आयोजनों में, जैसे कि कहीं किसी गम्भीर मुद्दे पर चिन्तन-मनन या चर्चा-परिचर्चा चल रही हो या कोई शास्त्रीय आयोजन हो। ऐसे आयोजनों में मोबाइल को निष्क्रिय करने की शुरुआती हिदायत के बावजूद उस पर अधिकतर व्यक्ति न कान देते हैं न ध्यान। घंटी बजने पर कुछ तो कुर्सी या जाजम छोड़कर बाहर हो लेते हैं। लेकिन कुछ ऐसे भी होते हैं जो अपने अंदाज में वहीं बात करने में मशगूल हो जाते हैं। बिना इसकी परवाह किये कि वहां उनकी इस बातचीत से कोई गम्भीर मसले पर चर्चा प्रभावित हो रही है या किसी के रंग में भंग हो रहा है या किन्हीं के रस में विघ्न पड़ रहा है।

ऐसे बेमौकों पर या असहज परिस्थितियों में बात कर लेने के बाद कभी यह विचार तो करें कि वह बात यदि आप नहीं करते तो कुछ अनर्थ या अघटित हो जाता? कभी हजार में ऐसा हो भी तो आप उसे रोकने में कितने सक्षम होंगे। तकनीक ने मोबाइल फोन में यह सुविधा दी है कि आप उसे अटैण्ड नहीं भी करें तो आपको कॉल करने वाले की पहचान और पहचान न भी हो तो कम से कम नम्बर तो सुरक्षित रहते ही हैं-आप उन्हें बाद में सुविधा से कॉल कर सकते हैं या फिर जरूरी लगे तो स्थान छोड़ कर या सड़क के किनारे होकर बात कर सकते हैं। वैसे तो अब कॉल दरें इतनी कम हैं कि मोबाइल धारक को 'कॉलबैक' करने में बड़ी आर्थिक हानि नहीं होती है। फिर भी आपको लगे कि ऐसा है तो आपके पास मिसकॉल करने की सुविधा है ही।

—दीपचन्द सांखला

27 जुलाई, 2012

No comments: