Thursday, July 27, 2023

अभिनेता दिनेश ठाकुर

 कल दोपहर फेसबुक पर दिनेश ठाकुर के अवसान की सूचना से सन्न रह गया। लम्बे समय से पक्षाघात और गुर्दे की व्याधि के बावजूद फोन पर उनसे बात करने वाले को लगता कि दिनेश ठाकुर अब भी ऊर्जा और उम्मीदों से लबरेज हैं।

दिनेशजी से पहली पहचान पिछली सदी के आठवें दशक में आई फिल्मरजनीगंधाके नवीन के रूप में हुई। फिर एक लम्बा अन्तराल, कोई तीस वर्ष बाद 2006 में एक फोन आता है, दूसरी ओर से आवाज, ‘मैं मुम्बई से दिनेश ठाकुर बोल रहा हूं।इसके बाद जो रिश्ता बना उसमें दृश्य परिवर्तन इस तरह भी होगा, नहीं सोचा था।

उनके बुलावे पर 2006 में ही मुम्बई गया। दिनेशजी खुद बान्द्रा टर्मिनस स्टेशन पर लेने आये हुए थे। सुरुचि से सज्जित अंधेरी स्थित उनके निवास का तीन दिवसीय प्रवास अविस्मरणीय है। अपने नाटकों की तरह ही मेहमाननवाजी के प्रत्येक क्षण को मानो पहले से डिजाइन कर रखा हो उन्होंने। बावजूद इसके खुद उनकी दिनचर्या बदस्तूर रही। तड़के पांच बजे उठ जाना, चिट्ठी-पत्री, लिखने-पढ़ने से निवृत्त होना, तय समय पर नाश्ता। साढ़े आठ के लगभग पत्नी प्रीता माथुर ठाकुर का मेरिन लाइन स्थित अपने आफिस हेतु निकलना, प्रीताजी किसी कॉर्पोरेट आफिस की प्रबन्धकीय सेवा में हैं। उसके बाद बाजार का छोटा-मोटा काम, मुझ जैसे आये के साथ काम के सिलसिले में बैठक। इस बीच पूरी तरह सजी टेबल पर दोपहर का खाना, खाने के दौरान ही बताया कि आप नहीं होते तो भी खाना मैं इसी तरह सजी टेबल पर ही लेता हूं। दोपहर बाद घर पर हीअंकके कलाकार आने शुरू हो जाते हैं, अंक उनकी नाट्य संस्था का नाम है जो पिछले पैंतीस वर्षों से भी ज्यादा समय से मुम्बई में निरन्तर सक्रिय है और देश के अन्य हिस्सों में भी यदा-कदा दस्तक देती रही है। मेरे प्रवास के उन दिनों में एक नाटक का पाठ चल रहा था, कलाकारों में कुछ पुराने और कुछ नये; ठाकुर संवादों की खूबियों, उच्चारण और लय की खामियों को बारीकी से पकड़ते और बताते, जरूरत होने पर प्रशिक्षित भी करते। प्रीताजी का देर शाम लौटना फिर रात का खाना उनके अपने उसी अन्दाज में ही। पूरे दिन देखा कि अपने मेहमान की हर जरूरत को भांपते और मेहमान के बिना कहे उसे पूरा करते।

प्रीताजी भी दिनेश ठाकुर के नाटकों की महत्त्वपूर्ण भूमिकाओं में होती हैं, बातचीत में उन्होंने बताया कि वे संवादों को याद करने का काम आफिस आते-जाते लोकल ट्रेनों में लगने वाले घंटे-सवा घंटे में कर लेती हैं। मंचीय रिहर्सल और शो के दिनों में प्रीताजी अपने आफिस से सीधे पृथ्वी थिएटर पहुंचती हैं।

दिनेशजी के अस्वस्थ होने के बाद दो साल पहले उनसे मिलने एक दिन के लिए उनके घर पहुंचा, हिन्दी के कवि और कला समीक्षक प्रयाग शुक्ल भी वहीं थे। घर की सुुरुचि में कमी थी मेहमाननवाजी में और खाने की टेबल पर। वही ऊर्जा, वही उत्साह और ढेर सारी योजनाएं थी, वह लम्बे समय से मंचन पर केन्द्रित अपनी पुस्तक पर काम कर रहे थे और तब उसे अन्तिम रूप देने में लगे थे। उनका मानना था कि नाटकों के सैद्धान्तिक पक्ष पर तो हिन्दी में बहुत पुस्तकें हैं लेकिन व्यावहारिक पक्ष पर कोई पुस्तक देखने में नहीं आयी है।

इन दो वर्षों के बीच में जब भी फोन पर बात होती, जल्दी ही पाण्डुलिपि भिजवाने की बात कहते। अस्वस्थता के बावजूद नाटक का मंचन उनकी पहली प्राथमिकता थी, शायद इसीलिए पाण्डुलिपि नहीं भिजवा पाये। अभी एक माह पहले ही उन्होंने निमन्त्रण भेजा था, गुरुदेव रवीन्द्र पर अपनी प्रस्तुतिरवीन्द्राञ्जलिका; गए 31 अगस्त से 2 सितम्बर तक पृथ्वी थिएटर की 6 प्रस्तुतियों का।

दीपचन्द सांखला

21 सितम्बर, 2012


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