Monday, July 24, 2023

योगधंधी रामदेव का बिजनेस प्रोमो

 जो पाठक या टीवी दर्शक विज्ञापनों को नजरंदाज नहीं करते वे एक अरसे से एक कम्पनी के विज्ञापन देख रहे होंगे। यह विज्ञापन 'एम डी एच' ब्रान्ड मसाला बनाने वाली कम्पनी के हैं, जिसमें इस कम्पनी के नियन्ता धर्मपाल खुद ब्राण्ड ऐंबैस्डर के रूप में दिखाई देते हैं। वैसे तो यह मसाले सिन्धुपार से मुगलों के साथ भारत आये थे लेकिन इन्हें भारतीय मसालों के नाम से पूरी दुनिया में पहले पहल एम डी एच यानी 'महाशियां दी हट्टी' वालों ने ही लोकप्रिय बनाया। दरअसल जो बात बताना चाह रहे हैं वह यह है कि इससे पहले किसी कोर्पोरेट कम्पनी ने अपने विज्ञापनों में 80 पार के अपने ही नियन्ता को ब्रान्ड ऐंबैस्डर के रूप में शायद ही पेश किया हो। एम डी एच ने ऐसा शायद इसलिए भी किया हो कि इन्हें जिन मसालों को भारतीय कह कर बेचना है उसका ब्रान्ड ऐंबैस्डर भी पूरी तरह देशज दिखे।

पिछले एक अरसे से इन्हीं धर्मपाल की तर्ज पर एक व्यवसायी योग प्रशिक्षक अपने उत्पादों के ब्रान्ड ऐंबैस्डर के रूप में प्रस्तुत हैं। अन्तर बस इतना ही है कि धर्मपाल एक व्यवसायी परिवार से हैं और उन्हें अपना जमा-जमाया धंधा विरासत में मिला-व्यवसाय को बंटवारे का दंश जरूर झेलना पड़ा क्योंकि उन्हें सियालकोट (अब पाकिस्तान) से उठा कर अपने धंधे को दिल्ली में जमाना पड़ा। हां, रामदेव को वह अनुकूलताएं नहीं मिली और न उन्होंने तय करके धंधे को अपनाया। हरियाणा के एक किसान परिवार के रामकृष्ण यादव आठवीं तक पढऩे के बाद आश्रमों की शरण में चले गये। आर्यसमाजी संन्यासी बन कर रामदेव हुए, हरिद्वार चले गये। इधर-उधर घूमते-फिरते योग सीख गये, योग करने लगे और फिर योग सिखाने भी लगे।

योग आजकल अच्छा व्यवसाय माना जाता है और फिर आप संन्यासी हैं तो कहना ही क्या! योग सिखाते-सिखाते ही शायद उन्हें लगा हो कि इस प्रोफेशन की अपनी कुछ जरूरतें हैं, कुछ त्याग हैं तो अन्न छोड़ दिया। क्योंकि इस प्रोफेशन में अपने शरीर को एक प्रयोगशाला के रूप में दिखाना होता है, उन्हें लगा अन्न खाना उसमें बाधक है। मुखर ज्यादा शायद इसलिए हो गये कि सुन रखा होगा कि 'बोले जका रा भूंगड़ा (सिके हुए चने) भी बिक जाय'।

इसके बाद रामदेव में धन और प्रतिष्ठा की लालसा हवस की हद तक बढऩे लगी। योग को बेचना शुरू किया, धाप नहीं आयी तो आयुर्वेद को बेचना शुरू किया और फिर घरेलू सामान को बेचने में भी आ गये। संन्यासी होते हुए लिमिटेड कम्पनियां तो बना नहीं सकते होंगे, सो ट्रस्ट बनाये और यह ट्रस्ट बनते-बनते दर्जनों में हो गये। सैकड़ों करोड़ का टर्नओवर हो गया। रामदेव ने संन्यासी होते हुए भी अपने पूरे कुटुम्ब को धंधे में लगा दिया। देश में भगवा कपड़ों को मान दिया जाता है-उसका भरपूर दोहन किया रामदेव ने। बहुत से धर्मभीरु श्रद्धा से जुड़ गये तो अधिकतर अपने किसी न किसी लोभ में। कुछ ऐसे भी होते हैं जो इन 'बड़े' लोगों के नजदीकी होने के सुख से ही राजी हो लेते हैं तो कुछ व्यवसाय में लाभ कमाने के वास्ते जुड़ जाते हैं। इस तरह रामदेव ने एक जमात खड़ी कर ली। रामदेव पर लगभग वे तमाम आरोप हैं जो अधिकतर व्यवसायियों और भूमाफियाओं पर होते हैं-जमीनें हड़पने के, जमीनों की हेरा-फेरी के, आधे-पौने दामों की रजिस्ट्री के (ऐसे में शेष भुगतान काले धन में किया जाता है), टैक्स चोरी के, दवाइयों में मिलावट के आदि-आदि। रामदेव पर ये आरोप उत्तराखण्ड की भाजपा और कांग्रेस दोनों की सरकारों के दौरान लगे हैं।

इनमें से किसी भी आरोप से रामदेव अभी बरी भी नहीं हुए कि वह खुद कालेधन और भ्रष्टाचार का विरोध की बातें करने लगे। अब शायद उन्हें लगता है कि इस तरह की बात करके सत्ता पर भी हावी रहा जा सकता है और लोकप्रियता हासिल कर अपने उत्पादों की बिक्री भी बढ़ा सकते हैं। सो, रामदेव वे सभी दंद-फंद कर रहे हैं जो कोई दूसरा गैर संन्यासी व्यक्ति ऐसी अनुकूलताओं में करता। जरूरत इस सब को समझने की है कि हम ऐसे लोगों की सीढिय़ां और साधन न बनें।

रामदेव के रामलीला मैदान जैसे सभी आयोजन अपनी करतूतों की छूट के लिए और अपने व्यापार- व्यवसाय के 'प्रोमो' के लिए ही हैं।

—दीपचन्द सांखला

10 अगस्त, 2012

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