Monday, July 24, 2023

बेनीप्रसाद वर्मा और सीपी जोशी

 दसे'क साल पहले की बात है, अब के केन्द्रीय भूतल परिवहन मंत्री सीपी जोशी तब सूबे में शिक्षामंत्री थे। बातचीत में अपनी सरकार के बारे में फीडबैक लेना चाहा तो उन्हें कहा गया कि सरकार को अब रोजगार के अवसर मुहैया करवाने के लिए सरकारी पदों की भरती खोलनी चाहिए। अन्यथा बेरोजगारों की यह निराशा सरकार को ले बैठेगी। तब जोशी ने बहुत सामान्य सा जवाब दिया कि गांव-गांव सड़कें बन रही हैं, और सड़कें बनते ही बेरोजगारी और गरीबी, दोनों दूर हो जायेगी। जब उनसे प्रतिप्रश्न किया गया कि यह सब सम्भव होगा कैसे? तो उन्होंने बहुत लापरवाह ढंग से जवाब दिया-कि देख लेना। उस बात को दस साल हो गये-प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री ग्रामीण सड़क योजना और मनरेगा के तहत गांवों को जोडऩे को खूब सड़कें बन गईं। बावजूद इसके गरीबी और बेरोजगारी ज्यों की त्यों हैं। और यह भी कि सूबे में पांच साल तक कांग्रेस सत्ता से बाहर रहने के बाद जो लौटी भी तो सीपी जोशी अपनी विधायकी नहीं बचा पाये।

इस घटना का स्मरण कल तब हो आया जब केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनीप्रसाद वर्मा ने कहा कि महंगाई होना अच्छी और खुशी की बात है। यह बेनीप्रसाद वर्मा उन कुछ में से एक हैं जिन्हें यूपी विधानसभा चुनावों में मीर मारने के लिए राहुल गांधी कांग्रेस में लाए थे-बावजूद इन सबके उत्तरप्रदेश के चुनावों में कांग्रेस की क्या स्थिति रही, सभी जानते हैं। बात दरअस्ल यह है कि वो चाहे सीपी जोशी हों या बेनीप्रसाद वर्मा ऐसे सभी नेता राजनीति में कॅरिअर बनाने को आए हुए हैं। अन्य किसी प्रोफेशन में तो बिना डिग्री-डिप्लोमे या ट्रेनिंग के रिक्रूटमेंट नहीं होता, लेकिन राजनीति ऐसा प्रोफेशन है जिसमें दंद-फंद या पहुंच के अलावा कुछ भी जरूरी नहीं।

अन्यथा देश के सामाजिक ताने-बाने, परिस्थितियां और भूगोल को बिना जाने-समझे यह लोग इन पदों तक नहीं पहुंचने चाहिए थे! देश-समाज की यदि इन्हें वाकफियत होती तो न तो सीपी जोशी उस तरह का लापरवाह जवाब देते और न ही क्रूर-मजाकिया बयान बेनीप्रसाद वर्मा देते।

टीवी-अखबारों के पाठक-दर्शकों ने यह भी देखा होगा कि इस्पात मंत्रालय द्वारा विभिन्न अवसरों पर जारी विज्ञापनों में-केवल और केवल-बेनी प्रसाद वर्मा ही सुशोभित रहते हैं, न संप्रग सुप्रीमो सोनिया होती हैं और न हीं सरकार के मुखिया मनमोहनसिंह। जबकि वर्मा संप्रग सरकार में ही केन्द्रीय मंत्री का पद पाए हैं। ऐसा अति आत्मविश्वास उन्ही में देखने को मिलता है जिन्हें पार्टी में पलक-पांवडे बिछा कर लाया गया हो, और इस तरह लाए गये लोग हीक-छडि़न्दे हुए बिना नहीं रहते। पाठकों को ध्यान होगा कि यूपी चुनावों में बेनीप्रसाद वर्मा ने भी विवादास्पद बयान देकर खुर्शीद आलम खान से कम सुर्खियां नहीं बटोरी थी।

महंगाई से बढ़े दामों का लाभ किसान और उससे भी आगे खेतिहार मजदूर को कितना मिलता है यह किसी से छिपा नहीं है। अपने बीकानेर की ही बात करें तो पिछले वर्ष ग्वार के भावों में लगी आग खेतिहार मजदूर की गरीबी की ठिठुरन में कितना राहत दे पायी-यह किसी से छिपा नहीं है। निहाल तो सटोरिये और जमाखोरिए ही हुए हैं।

—दीपचन्द सांखला

21 अगस्त, 2012

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