Monday, July 17, 2023

आपातकाल के पगलिये और 25 जून, 1975 की रात

 तब आज की तरह इस भ्रष्ट झाड़-झंखाड़ के अभ्यस्त नहीं थे लोग! आजादी को दो दशक ही बीते थे-नेहरू का बनाया तिलिस्म चटकता दिखाई देने लगा और शास्त्री कुछ अलग तरह की उम्मीदें जगाकर चले गये। कांग्रेस में परिवार पूजा का दौर शुरू ही हुआ था-इन्दिरा गांधी को प्रधानमंत्री बनाया गया  बल्कि एक समूह उन्हें पार्टी से ऊपर देखने लगा। पुरानों का सम्मान कम होने लगा-पार्टी में फांक दिखने लगी। 1967 के चुनावों में कांग्रेस ने संघीय सरकार तो बना ली लेकिन राज्यों की कई विधानसभाओं में स्थिति अच्छी नहीं रहीं। इन्दिरा पार्टी और सरकार दोनों को आम सहमति से नहीं आपमते चलाना चाहती थी। 1969 के राष्ट्रपति चुनावों में इन्दिरा गांधी ने कांग्रेसी प्रत्याशी नीलम संजीव रेड्डी को हरवाकर पार्टी में अपने से असहमतों को इसका सन्देश दे दिया था। राष्ट्रपति के उम्मीदवार के रूप में वी वी गिरि का जीतना आजादी बाद के लोकतान्त्रिक भारत में बड़ी घटना के रूप में देखा गया। पार्टी दो फाड़ हो गई। इन्दिरा अपनी ऊर्जा के गुणात्मक रूप को दिखाने को आतुर थी-इसी आतुरता में उन्होंने चमत्कार घटित करने शुरू किये-समाजवाद-कई बड़े उपक्रमों और बैंकों का राष्ट्रीयकरण किया, पूर्व रियासतों के शासकों और उनके वारिसों के विशेषाधिकार और हाथखर्ची समाप्त की।

सामंती व्यवस्था का अभ्यस्त भारतीय मतदाता इन्दिरा गांधी में अपना हीरो देखने लगा-1971 में हुए चुनावों में पुराने कांग्रेसियों और विरोधियों को पछाड़कर इन्दिरा गांधी की अपनी कांग्रेस ने लोकसभा में भारी बहुमत हासिल किया। इसी बीच एक और चमत्कार घटित करने का अवसर पड़ोसी पाकिस्तान ने भी इन्दिरा को दिया। पूर्वी पाकिस्तान की आबादी के साथ पाकिस्तान सरकार के लगातार सौतेल व्यवहार से वहां की जनता में जबरदस्त असंतोष पैदा हो गया-इन्दिरा ने इसे अपनी कुछ कर दिखाने का अवसर माना। तब के पूर्वी पाकिस्तान की बांग्लादेश मुक्तिवाहिनी को भारत का सहयोग और इसी के चलते भारत-पाकिस्तान युद्ध और युद्ध में भारत की जीत से इन्दिरा ने न केवल एक बार फिर कांग्रेस में अपने विरोधियों का मुंह बंद करवा दिया बल्कि धुर विरोधी पार्टी जनसंघ के नेता अटलबिहारी वाजपेयी का मुंह कुछ ज्यादा ही खुलवा दिया। वाजपेयी इन्दिरा की तुलना दुर्गा-चण्डी से कर बैठे।

कहते हैं जितनी ज्यादा उम्मीदें बंधवाओगे उतना ही ज्यादा असंतोष पनपेगा। इन्दिरा के इस तरह के व्यवहार से शासक-प्रशासकों में नकारात्मक संदेश गया। भ्रष्टाचार, और भ्रष्टाचारी बे-लगाम होने लगे। चौतरफा बढ़ रहे भ्रष्टाचार के ताप से असंतोष खदबदाने लगा-बिहार से शुरू हुई इस आंच की ताप गुजरात तक पहुंच गई। 1974 तक आते-आते लोकनायक जयप्रकाश नारायण को बिहार के युवकों का नेतृत्व स्वीकार करने का आग्रह स्वीकार करना पड़ा। 5 जून, 1974 का बिहार विधानसभा का ऐतिहासिक घेराव और उसके बाद पटना के गांधी मैदान की ऐतिहासिक आमसभा को जेपी ने सम्बोधित किया और 'संपूर्ण क्रांति' का नारा दिया। इतनी बड़ी आमसभाएं देश में कम ही हुई हैं-इसका अंदाजा आप इसी से लगा सकते हैं कि बीकानेर के करणीसिंह स्टेडियम से लगभग छह गुना बड़ा गांधी मैदान न केवल ठसाठस भरा था बल्कि उसके चारों ओर की सौ फुट चौड़ी रोड पर भी पांव रखने को जगह नहीं थी। इस सभा में दिये गये 'संपूर्ण क्रान्ति' के नारे से देश उद्वेलित हुआ और इसी उद्वेलन ने इन्दिरा गांधी को हिला कर रख दिया। इस सभा के एक वर्ष में ही देश में स्थितियां ऐसी बनी कि इन्दिरा गांधी अपने को इतनी असुरक्षित महसूस करने लगी कि अपने शासन को बचाने भर को देश में सैंतीस वर्ष पहले आज की ही रात आपातकाल लागू कर दिया।

—दीपचन्द सांखला

25 जून, 2012

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