Monday, July 24, 2023

बेशर्म और निर्दयी कुकर्मी लेकिन कुमाता माँ

 परसों देर रात की यह रिपोर्ट है-गजनेर पुलिस थाना अन्तर्गत कोडमदेसर गांव की रोही में नवजात बालिका मिली। जिसे मिली उसके हवाले से पुलिस ने रिपोर्ट दर्ज की है कि कोई अज्ञात महिला इसे छोड़ गई है। समझ से परे पहली बात तो यही है कि यह मान ही कैसे लिया गया कि उस बच्ची को वहां छोडऩे का काम किसी महिला ने ही किया होगा? दूसरी यह कि किसी भी ऐसे रिहायशी इलाके-जहां प्रसव की व्यवस्था वाला चिकित्सालय या स्वास्थ्य केन्द्र हो-से इतनी दूर कोई अकेली महिला वह भी आधी रात को नवजात को छोडऩे आने का साहस या जतन कर सकती है? क्योंकि उसकी नाभि नाल पर टेगा लगा था जिससे पुष्टि होती है कि बच्ची का जन्म घर या रोही में नहीं हुआ है।

सामान्यत: देखा-सुना और जाना गया है कि इस तरह के नवजात की अधिकतर बरामदगियां इसलिए होती हैं कि किसी किशोरी से उसके किसी निकृष्ट निकटस्थ या परिचित ने दुष्कर्म किया हो जिससे उसे गर्भ ठहर गया-वह किशोरी पहले तो किसी भय या संकोच में किसी से अपने साथ हुई इस दुर्घटना का जिक्र नहीं करती और जब तक घर-परिवार को पता चलता है तब तक गर्भपात का समय निकल जाता है।

यह विज्ञानसिद्ध है कि किशोरावस्था में हारमोनल परिवर्तनों के चलते विपरीत लिंगियों के प्रति आकर्षण बढ़ता है। न केवल आकर्षण बल्कि स्पर्श की आकांक्षा या स्पर्श किसी कौतुक से कम नहीं लगते हैं। लोक में इस अवस्था को रजस्वला शुरू होने के बाद से माना जाता है। बाल्यकाल समाप्त हुआ-हुआ होता है-युवा या परिपक्व या देश-दुनिया को समझने की उम्र अभी दूर होती है। इसी नासमझी का और मिले अवसर का दुरुपयोग युवक या पुरुष करते हैं-और लगभग यह तय है कि किसी किशोरी के साथ ऐसी पहली हरकत किसी पुरुष की पहल पर ही होती है-हो सकता है उसकी पुनरावृत्ति की इच्छा छद्म-सुख पाने या उसके परिणामों से अनभिज्ञ वह किशोरी कर सकती है।

पूर्व और पश्चिम की मानसिकता के बीच अधर झूलते हमारे इस समाज में ऐसी घटनाएं ज्यादा होने लगी हैं। पहले तो रजस्वला शुरू होने के बाद ही किशोरियों की शादी कर दी जाती थी जिससे दूसरी तरह की समस्याएं पैदा होतीं जो ज्यादा खतरनाक थी। अब तो कानूनी तौर पर अठारह से कम उम्र में शादी करना जायज नहीं है-कानून के डंडे के चलते ही कहें या सामाजिक जागरूकता के चलते लड़कियां पढऩे तो लगी हैं-और पढ़ेंगी तो धीरे-धीरे नागरिकता की अपनी दोयम हैसियत से ऊपर भी उठेंगी। लेकिन तब तक नादान उम्र का नाजायज फायदा उठाने वाले दरिन्दों का क्या किया जाए!

इन दरिन्दों को तो हमारे टीवी अखबार भी नहीं भुंडाते हैं। खबरें लगतीं हैं 'माता कुमाता हुई, निर्दयी मां छोड़ गई नवजात को', 'ममता हुई शर्मिन्दा', 'अपने कुकर्म को छुपाने को किया एक और कुकृत्य' या 'नवजात को छोड़ते मां का मन ही नहीं पसीजा' अरे भाई! पसीजता है-बहुत पसीजता है-मां ही क्यों उसके मां-बाप का मन भी बहुत पसीजता है तभी कल कोडमदेसर की रोही में जो कोई भी उस बच्ची को छोड़कर गये-यह सोच-समझ कर ही बस्ती के पास छोड़ कर गये होंगे कि रोएगी तो बस्ती वाले सम्हाल लेंगे और वक्त-जरूरत अस्पताल भी पहुंचा देंगे।

पत्रकार मित्रों से निवेदन है कि हमारे यहां लिखने को परकाया प्रवेश की संज्ञा दी गई है। इस तरह की 'मां' की काया में प्रवेश चाहे न कर सको तो कभी उसके पास से ही गुजर कर देखो-सिहर उठोगे और इस तरह के जुमलों का प्रयोग करना जिन्दगी भर के लिए भूल जाओगे।

—दीपचन्द सांखला

24 अगस्त, 2012

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